पूर्णिया बिहार 17 जून 25* कसबा में एक नया सियासी सूरज उगने को तैयार, जनता खुद बना रही है मोहम्मद शहबाज़ आलम को बदलाव का चेहरा
पूर्णिया से मोहम्मद इरफान कामिल की खास खबर यूपी आज तक न्यूज़ चैनल
पूर्णिया बिहार।कसबा विधानसभा क्षेत्र की राजनीति में इस बार कुछ अलग ही हवा बह रही है। वर्षों से जमी-जमाई सियासी व्यवस्था और चेहरों से ऊब चुकी जनता अब बदलाव की तलाश में है। यही कारण है कि एक नाम तेजी से उभर रहा है — मोहम्मद शहबाज़ आलम, जो न किसी पार्टी के इशारे पर, न किसी राजनीतिक विरासत के सहारे, बल्कि सिर्फ और सिर्फ जनता के समर्थन और जन सेवा के जज़्बे के दम पर आगे बढ़ रहे हैं।
सिर्फ नारे नहीं, संघर्षों की मिसाल बने शहबाज़
मोहम्मद शहबाज़ आलम कोई पेशेवर राजनेता नहीं हैं, बल्कि वे आम जनजीवन से जुड़े एक संघर्षशील समाजसेवी हैं। शिक्षा विभाग के आउटसोर्सिंग कर्मियों की बर्खास्तगी के खिलाफ उनके नेतृत्व में हुए आंदोलन ने उन्हें क्षेत्र में एक सशक्त जननेता के रूप में स्थापित कर दिया है। उन्होंने कई बार जनहित के मुद्दों पर प्रशासनिक तंत्र को सवालों के कठघरे में खड़ा किया, वह भी बिना किसी पद या संसाधन के।
बदलाव की इमारत कोई और नहीं जनता खुद बना रही है
यही वजह है कि आज मोहम्मद शाहबाज आलम की शख्सियत व मकबूलियत आसमानों की बुलंदियों तक छूटा हुआ नज़र आ रहा है क़सबा विधानसभा हलका पूर्व प्रत्याशी मोहम्मद शाहबाज आलम गरीबों दलितों बेसहारों का मसीहा बनकर उभरता हुआ चेहरा नजर आ रहा है शाहबाज आलम किसी परिचय का मोहताज नहीं पूर्णिया ही नहीं सीमांचल मैं उनकी एक अजीम शख्सियत है दुख की घड़ी में लोगों का सेवा करना शाहबाज आलम अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया है ,
गली-गली, चौराहों और पंचायतों में लोगों की जुबान पर एक ही नाम है — “अबकी बार शहबाज़ भाई”। यह कोई प्रायोजित प्रचार नहीं, बल्कि जनता के दिलों से निकली हुई पुकार है। महिलाएं, युवा, किसान, व्यापारी — हर वर्ग का समर्थन शहबाज़ भाई को मिल रहा है। यह समर्थन बताता है कि लोग अब जात-पात, धर्म और पार्टी से ऊपर उठकर, ईमानदारी और नेतृत्व क्षमता को वोट देना चाहते हैं।
राजनीति नहीं, समाज सेवा से बनी पहचान
मोहम्मद शहबाज़ आलम ने अपने क्षेत्र की जनता से वादा नहीं, विश्वास जीता है। उनकी सादगी, उनके विचार और आम लोगों से उनका व्यवहार, उन्हें एक राजनेता नहीं बल्कि जन प्रतिनिधि और जनभावनाओं का प्रतीक बनाता है। उन्होंने सिखाया कि राजनीति सेवा का माध्यम हो सकती है, अगर नीयत साफ हो और मकसद सिर्फ सत्ता नहीं, सेवा हो।
‘नेता वो नहीं जो कुर्सी पर बैठे, नेता वो जो जनता के दिलों में जिए’
कस्बा की जनता का यह समर्थन एक नई राजनीतिक चेतना का संकेत है — जहां अब वोट सिर्फ जातीय समीकरणों पर नहीं, बल्कि उम्मीदवार के व्यक्तित्व, संघर्ष और ईमानदारी पर दिया जा रहा है। मोहम्मद शहबाज़ आलम आज कस्बा की उस उम्मीद का नाम हैं जो वर्षों से लोगों के भीतर पल रही
कसबा में इस बार की लड़ाई सत्ता पाने की नहीं, भरोसा जीतने की है — और उस भरोसे का नाम है
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