March 28, 2024

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अजमेर31अक्टूबर*यूपीआजतक न्यूज़ से अजमेर की खास खबरे

अजमेर31अक्टूबर*यूपीआजतक न्यूज़ से अजमेर की खास खबरे

[31/10, 3:43 PM] +91 98290 71511: #8402
अजमेर के पेट्रोल पंप पर फायरिंग करने वाले मोनू और पप्पू को पुलिस ने गिरफ्तार किया। दोनों आरोपी फरीदकोट की जेल में बंद कुख्यात अपराधी भूपेंद्र सिंह खरवा की पहचान वाले हैं।

फरीदकोट की जेल से 30 अक्टूबर तक पंप मालिक नवीन गर्ग और उनके बेटे को धमकियां देता रहा भूपेंद्र सिंह।
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गत 20 अक्टूबर को अजमेर के कचहरी रोड स्थित अजमेर ऑटोमोबाइल पेट्रोल पंप पर फायरिंग करने वाले दोनों आरोपियों मोनू और पप्पू को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। जिला पुलिस अधीक्षक विकास शर्मा ने बताया कि 20 अक्टूबर को जिस मोटर साइकिल पर मोनू आया उसे पप्पू चला रहा था। रात 9 बजे मोटरसाइकिल से उतर कर मोनू ने पेट्रोल पंप परिसर में गोली चलाई। मोनू ने ही पंप के मालिक नवीन गर्ग के बेटे नमन गर्ग की केबिन के कांच पर भी गोली चलाई। फायरिंग के बाद दोनों आरोपी मौके से फरार हो गए। लेकिन पुलिस ने अलग अलग टीमें गठित कर दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। मोनू ने स्वीकार किया है कि उसने पेट्रोल पंप पर गोलियां चलाई थी। मोनू का कहना रहा कि पेट्रोल भरवाने को लेकर पूर्व में विवाद हुआ था। इसके अलावा इन दोनों आरोपियों की मंशा दहशत फैलाने की थी और पंप मालिक से वसूली का भी इरादा भी था। एसपी शर्मा ने बताया कि आरोपियों को पकडऩे के लिए अनेक मार्गों के सीसीटीवी फुटेज की भी गहनता के साथ जांच की गई। दोनों आरोपी अजमेर के ही रहने वाले हैं और उनकी पहचान पंजाब के फरीदकोट में जेल में बंद कुख्यात बदमाश भूपेंद्र सिंह खरवा से भी है। एसपी ने कहा कि दोनों बदमाशों को पकडऩे में अनेक पुलिस अधिकारियों और जवानों ने रात-दिन मेहनत की है। उन्होंने कहा कि अपराधियों के विरुद्ध पुलिस का सख्त रवैया है। हालांकि बीस अक्टूबर को दोनों आरोपी चेहरे पर नकाब लगाकर आए थे, लेकिन इसके बावजूद भी पुलिस ने 9 दिनों में आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया।
30 अक्टूबर तक मिली धमकियां:
पुलिस ने भले ही फायरिंग करने वाले दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया हो, लेकिन 30 अक्टूबर तक पेट्रोल पंप मालिक नवीन गर्ग और उनके बेटे नमन गर्ग को धमकियां मिलती रहीं। पहले मोबाइल फोन पर वाट्सएप पर धमकियां दी गई और 30 अक्टूबर को लिखित में धमकी दी गई। पिता-पुत्र को भेजी गई धमकी में कहा गया कि हमने तेरे को प्यार से समझाया पर तेरे कुछ समझ में नहीं आया, अब इस केस की जिम्मेदारी हम ले रहे हैं। आपको को पता चल ही जाएगा कि हम कौन हैं? अब यह प्रोटेक्शन मनी नहीं चाहिए। वक्त के साथ मुलाकात करेंगे, जय बलकारी। 20 अक्टूबर को फायरिंग के बाद पंप मालिक ने नवीन गर्ग ने भ पुलिस को बताया था कि धमकियां देने वाले पांच करोड़ रुपए की राशि की मांग कर रहे हैं। पुलिस ने इसी आधार पर अपनी जांच की शुरुआत की थी। जिन दो आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है वे पिछले दो तीन दिन से पुलिस की गिरफ्त में ही थे। यानी जब पुलिस मोने और पप्पू से पूछताछ कर रही थी, तब पंप मालिक को धमकियां मिल रही थी। माना जा रहा है कि इन धमकियों को भिजवाने में पंजाब की फरीदकोट जेल में बंद कुख्यात बदमाश भूपेंद्र सिंह खरवा की भूमिका है। खरवा ने ही अपनी फेसबुक पर फायरिंग को लेकर पोस्ट भी डाली थी। जानकार सूत्रों के अनुसार गिरफ्तार पप्पू और मोनू भूपेंद्र सिंह के पहचान वाले हैं। भूपेंद्र सिंह यह नहीं चाहता कि मोनू और पप्पू किसी आरोप में फंसे, इसलिए अब वह फायरिंग की जिम्मेदारी स्वयं पर ले रहा है, लेकिन पुलिस दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर भूपेंद्र सिंह खरवा को भी यह संदेश दे दिया है कि अपराधियों को बक्शा नहीं जाएगा। पुलिस ने अपनी जांच को पप्पू और मोनू तक ही सीमित रखा है। दोनों की गिरफ्तारी पुलिस के लिए बड़ी सफलता है।
S.P.MITTAL BLOGGER (31-10-2021)
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चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा के गृह जिले अजमेर में ही एसडीपी किट नहीं मिल रहा तो राजस्थान भर की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।

डेंगू के मरीजों को हो रही है भारी परेशानी। सवाल आखिर कहां है चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा?
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अजमेर राजस्थान के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा का गृह जिला है। लेकिन प्रदेशभर की तरह अजमेर में भी डेंगू मरीजों का इलाज के लिए एसडीपी (सिंगल डोनर प्लेटलेट्स) किट नहीं मिल रहा है। सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती डेंगू के मरीजों की सांसों को बनाए रखने के लिए एसडीपी ब्लड की जरूरत है, लेकिन इस ब्लड के लिए जरूरी है, लेकिन इस ब्लड के लिए जरूरी किट नहीं मिल रहा है। जब चिकित्सा मंत्री के गृह जिले में ऐसी स्थिति है तो फिर प्रदेशभर की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। एक ओर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मीडिया में प्रतिदिन कोरोना काल के मैनेजमेंट को लेकर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, लेकिन मौजूदा समय में प्रदेशवासियों को एसडीपी किट तक नहीं मिल रहा है। असल में एक स्वस्थ मनुष्य के शरीर के रक्त में न्यूनतम डेढ़ लाख प्लेटलेट्स होनी चाहिए, लेकिन डेंगू रोग के कारण मनुष्य के शरीर में प्लेटलेट्स घटने लगती हैं। यह स्थिति मरीज के लिए जानलेवा होती है। प्लेटलेट्स को बढ़ाने के लिए ही संबंधित ब्लड ग्रुप वाले व्यक्ति के शरीर के रक्त में से प्लेटलेट्स निकाल कर मरीज के शरीर में चढ़ाए जाते है। ब्लड में से प्लेटलेट्स निकालने वाली मशीन अजमेर जिले में सिर्फ एक प्राइवेट विद्यापति ब्लड बैंक में ही है। अब इस एकमात्र ब्लड बैंक के पास भी प्लेटलेट्स निकालने वाले किट नहीं है। इस ब्लड बैंक के मालिक मोहित का कहना है कि जयपुर की जो फार्म किट सप्लाई करती थ, वह फर्म यह किट नहीं दे रही है। ऐसे में संस्थान पर लगी मशीन भी बेकार पड़ी है। गंभीर बात तो यह है कि प्लेटलेट्स वाले किट पर चिकित्सा विभाग की कोई निगरानी नहीं है, इसलिए लोगों को ज्यादा परेशानी हो रही है। किट की किल्लत के चलते पीडि़त परिवार मुंह मांगी कीमत भी देने को तैयार है। ब्लड से निकले प्लेटलेट्स को बाहर से भी नहीं मंगवाया जा सकता है, क्योंकि प्लेटलेट्स को हाथों हाथ डेंगू के मरीज को चढ़ाया जाता है। अजमेर के सरकारी जेएलएन अस्पताल में ब्लड से प्लेटलेट्स निकालने वाली मशीन है, लेकिन यह मशीन अब हाफने लगी हे। टेक्नीशियन के अभाव में सरकारी मशीन रात के समय बंद रहती है, जबकि दिन भर में अधिकतम 15 मरीजों के लिए ही प्लेटलेट्स निकालने जाते हैं। जब सैकड़ों मरीजों को प्रतिदिन प्लेटलेट्स चाहिए, तब 15 प्लेटलेट्स की उपलब्धता कितनी मददगार होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है, सरकारी अस्पताल में सुबह नंबर लगाया जाता है तो रात तक प्लेटलेट्स मिल पाते हैं। यानी ब्लड देने वाले व्यक्ति को भी दिनभर अस्पताल में बैठे रहना पड़ता है। कई बार सरकारी अस्पताल में भी किट का अभाव हो जाता है। एक व्यक्ति के ब्लड में से प्लेटलेट्स निकालने में करीब डेढ़ घंटा लगता है। हालांकि प्लेटलेट्स निकालने के बाद ब्लड को पुन: रक्तदाता के शरीर में डाल दिया जाता है, लेकिन मरीज के परिजनों के लिए रक्तदाता का इंतजाम करना भी मुश्किल होता है। निजी अस्पतालों में भर्ती मरीजों की जब प्लेटलेट्स गिरने लगता है तो डॉक्टर तत्काल प्लेटलेट्स की मांग करते हैं। अफसोस तो तब होता है जब कई निर्दयी डॉक्टर परिजन को दो टूक कह देते हैं कि प्लेटलेट्स नहीं लाए तो मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है। कोई भी डॉक्टर अपने मरीज के लिए प्लेटलेट्स का इंतजाम करवाने में मदद नहीं करता है। इधर डॉक्टर निर्दयी है तो उधर प्लेटलेट्स का इंतजाम नहीं हो रहा, ऐसी स्थिति में मरीज और परिजन की मानसिक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। गंभीर बात तो यह है कि सरकारी अस्पताल में भी एक यूनिट प्लेटलेट्स के 10 हजार रुपए वसूले जा रहे हैं। हालांकि अजमेर प्रदेश के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा का गृह जिला है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि अजमेर का चिकित्सा विभाग अब रघु शर्मा को चिकित्सा मंत्री नहीं मानता है। असल में कांग्रेस हाईकमान ने रघु शर्मा को गुजरात का प्रभारी बना दिया है। इसलिए पिछले 15 दिनों से रघु शर्मा दिल्ली और गुजरात के दौरे पर हैं। चिकित्सा अधिकारियों को भी पता है कि दीपावली बाद होने वाले मंत्रिमंडल फेरबदल से रघु शर्मा की मंत्री पद से छुट्टी हो जाएगी। इसलिए चिकित्सा विभाग ने भी डेंगू मरीजों को अपने हाल पर छोड़ दिया है। एक ओर डेंगू मरीज और परिजन परेशान हो रहे हैं तो दूसरी ओर सरकार में बैठे जिम्मेदार किसी भी व्यक्ति को शर्म नहीं आ रही है। परेशान लोगों की कोई सुध लेने वाला नहीं है।
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तो अपनी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी की नीतियों पर अमल क्यों नहीं कर रहे राहुल गांधी।

इंदिरा जी ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए बांग्लादेश बनवाया तो खालिस्तान की मांग को सख्ती के साथ दबाया।
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कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे राहुल गांधी भारत की दमदार प्रधानमंत्री रही श्रीमती इंदिरा गांधी के पोते हैं। इसलिए 31 अक्टूबर को पुण्य तिथि पर राहुल गांधी ने ट्वीट किया-मेरी दादी अंतिम घड़ी तक निडरता से देश सेवा में लगी रहीं, उनका जीवन हमारे लिए प्रेरणा स्त्रोत है। नारी शक्ति की बेहतरीन उदाहरण श्रीमती इंदिरा गांधी जी के बलिदान दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि। राहुल गांधी ने अपनी दादी के बारे में लिखा उस पर किसी को भी एतराज नहीं है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या राहुल गांधी स्वयं अपनी दादी जी की नीतियों पर अमल कर रहे हैं? सब जानते हैं कि पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए इंदिरा गांधी बांग्लादेश को अलग करवाया। युद्ध में पाकिस्तान की सेना को उसकी औकात बता दी। यह भारतीय फौज का पराक्रम ही था कि पाकिस्तान के एक लाख सैनिकों को बंदी बना लिया गया। इसी प्रकार पंजाब में खालिस्तान की मांग करने वालों को भी इंदिरा जी ने सख्ती से दबाया। तब उन्होंने अपनी जान की परवाह भी नहीं की। चाहे पाकिस्तान के दो टुकड़े करना हो या फिर खालिस्तान की आवाज को कुचलना हो, सभी में इंदिरा जी ने देश की एकता और अखंडता को सर्वोपरि माना। इसलिए देशवासियों ने इंदिरा जी को आयरन लेडी की संज्ञा दी। इंदिरा गांधी की निडरता पर राहुल गांधी गर्व कर सकते हैं। लेकिन राहुल गांधी कौन सी नीति पर अमल कर रहे हैं? जिस खालिस्तान की आवाज को दबाने के लिए इंदिरा गांधी को बलिदान देना पड़ा, उसकी खालिस्तान की आवाज एक बार फिर पंजाब में उठने लगी है। किसान आंदोलन की आड़ में भी खालिस्तान के समर्थक सक्रिय हैं। खुफिया एजेंसियों के पास इसके सबूत भी हैं। लेकिन राहुल गांधी ने खालिस्तान के समर्थकों की कभी भी निंदा नहीं की। उल्टे किसान आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना की। विपक्ष का नेता होने के कारण राहुल गांधी को सरकार की आलोचना करने का अधिकार हैं, लेकिन इंदिरा जी के पोते को यह भी देखना चाहिए कि आंदोलन में कौन से तत्व सक्रिय हैं। किसी आंदोलन की आड़ में खालिस्तान की आवाज मजबूत होती हैं तो इंदिरा जी की आत्मा क्या कहेगी इसका जवाब राहुल गांधी को ही देना चाहिए। गत वर्ष नागरिकता कानून में संशोधन किया गया तो ऐसे तत्व सक्रिय हुए जो पाकिस्तान के समर्थक माने गए। राहुल गांधी ने ऐसे तत्वों की भी हौसला अफजाई की। सवाल उठता है कि यदि धर्म के आधार पर पाकिस्तान से प्रताड़ित होकर आ रहे हिन्दू, सिख, जैन, ईसाई और पारसी समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता दी जा रही है तो फिर एतराज क्यों किया जा रहा है। श्रीमती इंदिरा गांधी होती तो संशोधित कानून का पूरा समर्थन करतीं। इंदिरा जी कभी भी ऐसा काम नहीं करती जिसकी वजह से पाकिस्तान के समर्थकों को मजबूत मिलती हो। जहां तक देश में हिन्दू मुस्लिम एकता का सवाल है तो इस पर भी दो राय नहीं हो सकती है। भारत की तरक्की हिन्दू मुस्लिम एकता में ही निहित है। भारत उन देशों में से हैं जहां सूफीवाद का अपना महत्व है। कोई कितनी भी कट्टरता फैला ले, लेकिन देश की प्रमुख दरगाहों पर बड़ी संख्या में हिन्दू समुदाय के लोग जाते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है। यहां के खादिम समुदाय के लोग भी मानते हैं कि सामान्य दिनों में 60 प्रतिशत जियारत हिन्दू समुदाय के होते हैं। ख्वाजा साहब की दरगाह को देशभर में हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है। दुनिया में सबसे ज्यादा मुसलमान भारत में रह रहे है। भारत के मुसलमान न केवल समृद्ध हुए हैं बल्कि सरकारी योजनाओं का लाभ भी बिना भेदभाव के ले रहे हैं। ऐसे में राहुल गांधी को भी चाहिए कि वे अपनी दादी की नीतियों का अनुसरण करें।
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तो क्या अशोक गहलोत की सरकार के बचे रहने पर ओएसडी देवाराम सैनी ने खोले के हनुमानजी के मंदिर में प्रसादी का आयोजन किया?

इस प्रसादी के आयोजन में खुद सीएम अशोक गहलोत, कांग्रेस के निर्दलीय विधायक, आईएएस, आईपीएस आदि बड़ी संख्या में शामिल हुए। सात घंटे तक अफसरों और विधायकों का मेला।

सरकार गिराने के प्रयासों के आरोपी भाजपाइयों को नहीं बुलाया।
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30 अक्टूबर को जयपुर में खोले के हनुमान जी के मंदिर में एक भव्य प्रसादी का आयोजन हुआ। इस प्रसादी प्रोग्राम में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी पत्नी श्रीमती सुनीता गहलोत के साथ उपस्थित हुए। मुख्यमंत्री की उपस्थिति की वजह से ही अनेक मंत्री भी शामिल हुए। हालांकि यह धार्मिक आयोजन बताया गया, लेकिन इसमें सत्तारूढ़ कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों को भी बुलाया गया। जयपुर में जो भी आईएएस और आईपीएस तैनात है वे भी सभी इस प्रसादी में शामिल हुए। आईएएस और आईपीएस इस प्रसादी में शामिल होकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे थे। दोपहर एक बजे से शुरू होकर शाम सात बजे तक चले इस प्रोग्राम में दिन भी राजनीति और प्रशासनिक तंत्र का मेलजोल चलता रहा। सवाल उठता है कि आखिर इतना बड़ा आयोजन किसने किया? और ऐसा कौन सा ताकतवर व्यक्ति है जिसके निमंत्रण पर खुद सीएम और मंत्री तथा आईएएस, आईपीएस लाइन बनाकर खड़े रहे? दमदार बात तो यह है कि इस प्रसादी की सूचना वाट्सएप पर मुख्यमंत्री गहलोत के ओएसडी देवाराम सैनी ने दी। सैनी ने अपने नाम के नीचे सीएम का ओएसडी भी नहीं लिखा, क्योंकि जिन मंत्रियों,विधायकों और बड़े अधिकारियों के मोबाइल पर सूचना दी गई, उन सबके फोनों में देवाराम सैनी का नंबर दर्ज है। सबको पता है कि सीएमआर में देवाराम के बिना पत्ता भी नहीं हिलता है। सीएम गहलोत वो ही देखते और सुनते हैं जो देवाराम सैनी चाहते हैं। हालांकि देवाराम आरएएस स्तर के अधिकारी है, लेकिन सरकार में उनकी मुख्य सचिव निरंजन आर्य से भी ज्यादा चलती है। देवाराम सैनी ने वाट्सएप पर जो सूचना भिजवाई उसमें यह नहीं बताया कि किस वजह से हनुमानजी के मंदिर में प्रसादी रखी गई है। पारिवारिक कारणों से प्रसादी होती तो कांग्रेस और सभी निर्दलीय विधायकों को क्यों बुलाया जाता? पारिवारिक प्रसादी में आईएएस और आईपीएस भी इतनी संख्या में भाग नहीं लेते। जहां तक सीएम गहलोत के शामिल होने का सवाल है तो सैनी के पारिवारिक कार्यक्रम में वे शामिल हो सकते थे, क्योंकि दोनों एक ही जाति के हैं। हर बड़ा आदमी अपनी जाति के लोगों का ख्याल तो रखना ही है। चूंकि निमंत्रण में प्रसादी का कारण नहीं लिखा, इसलिए यही माना जा रहा है कि अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार के बचे रहने पर यह भव्य आयोजन किया गया। सब जानते हैं कि गत वर्ष जुलाई अगस्त में सचिन पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस के 18 विधायकों के दिल्ली चले जाने के कारण गहलोत सरकार के गिरने की नौबत आ आई थी। तब गहलोत सरकार के बचे रहने के लिए मुख्यमंत्री के ओएसडी देवाराम सैनी ने भी हनुमान जी से मन्नत मांगी थी। न केवल सरकार बची, बल्कि एंजियोप्लास्टी के बाद अशोक गहलोत के अगले 20 वर्ष तक जिंदा रहने की गारंटी भी हो गई। इतना ही नहीं 2023 में भी गहलोत ही मुख्यमंत्री बनेंगे, इसकी घोषणा भी हो गई। जब हनुमान जी कृपा से इतनी सारी खुशियां एक साथ मिल गई तो, तब भव्य प्रसादी का आयोजन तो बनता ही है। सीएम गहलोत आज तक कह रहे हैं कि भाजपा के नेताओं के इशारे पर उनकी सरकार गिराने के प्रयास हुए। यही वजह रही कि 30 अक्टूबर की प्रसादी में किसी भी भाजपा विधायक को नहीं बुलाया गया। जहां तक देवाराम सैनी के रुतबे का सवाल है तो इस प्रसादी के बाद रुतबे में और वृद्धि होगी। यह सही है कि गत वर्ष जुलाई अगस्त में राजनीतिक घमासान में देवाराम सैनी की मुख्यमंत्री के पक्ष में महत्वपूर्ण भूमिका थी। विधायकों को एकजुट करने में सैनी ने पूरी रणनीति बनाई। यही वजह है कि कांग्रेस और निर्दलीय विधायक तो सीएमआर में सैनी से मिलकर ही स्वयं को धन्य समझ लेते हैं। यदि किसी कार्य के लिए सैनी ने स्वीकृति दे दी है तो काम होने की सौ प्रतिशत गारंटी है। मंत्रियों को भी अपनी बात सीएम तक पहुंचाने के लिए देवाराम की मदद लेनी पड़ती है। देवाराम की बदौलत ही अनेक आईएएस आईपीएस, आरएएस, आरपीएस महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हैं।
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