लखनऊ6नवम्बर25*यूपीआजतक न्यूज चैनल पर*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*
*!! ढोल की पोल !!*
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
एक बार एक जंगल के निकट दो राजाओं के बीच घोर युद्ध हुआ। एक जीता दूसरा हारा। सेनाएं अपने नगरों को लौट गई। बस, सेना का एक ढोल पीछे रह गया। उस ढोल को बजा-बजाकर सेना के साथ गए भांड व चारण रात को वीरता की कहानियां सुनाते थे।
युद्ध के बाद एक दिन आंधी आई। आंधी के जोर में वह ढोल लुढकता-पुढकता एक सूखे पेड के पास जाकर टिक गया। उस पेड की सूखी टहनियां ढोल से इस तरह से सट गई थी कि तेज हवा चलते ही ढोल पर टकरा जाती थी और ढमाढम ढमाढम की गुंजायमान आवाज होती।
एक सियार उस क्षेत्र में घूमता था। उसने ढोल की आवाज सुनी। वह बड़ा भयभीत हुआ। ऐसी अजीब आवाज बोलते पहले उसने किसी जानवर को नहीं सुना था। वह सोचने लगा कि यह कैसा जानवर है, जो ऐसी जोरदार बोली बोलता है ‘ढमाढम’। सियार छिपकर ढोल को देखता रहता, यह जानने के लिए कि यह जीव उड़ने वाला है या चार टांगों पर दौडने वाला।
एक दिन सियार झाड़ी के पीछे छुप कर ढोल पर नजर रखे था। तभी पेड से नीचे उतरती हुई एक गिलहरी कूदकर ढोल पर उतरी। हलकी-सी ढम की आवाज भी हुई। गिलहरी ढोल पर बैठी दाना कुतरती रही।
सियार बडबडाया, “ओह! तो यह कोई हिंसक जीव नहीं है। मुझे भी डरना नहीं चाहिए।”
सियार फूंक-फूंककर कदम रखता ढोल के निकट गया। उसे सूंघा। ढोल का उसे न कहीं सिर नजर आया और न पैर। तभी हवा के झुंके से टहनियां ढोल से टकराईं। ढम की आवाज हुई और सियार उछलकर पीछे जा गिरा।
“अब समझ आया।” सियार उढने की कोशिश करता हुआ बोला, “यह तो बाहर का खोल है। जीव इस खोल के अंदर है। आवाज बता रही हैं कि जो कोई जीव इस खोल के भीतर रहता हैं, वह मोटा-ताजा होना चाहिए। चर्बी से भरा शरीर। तभी ये ढम-ढम की जोरदार बोली बोलता है।”
अपनी मांद में घुसते ही सियार बोला “ओ सियारी! दावत खाने के लिए तैयार हो जा। एक मोटे-ताजे शिकार का पता लगाकर आया हूँ।”
सियारी पूछने लगी, “तुम उसे मारकर क्यों नहीं लाए?”
सियार ने उसे झिडकी दी, “क्योंकि मैं तेरी तरह मूर्ख नहीं हूँ। वह एक खोल के भीतर छिपा बैठा है। खोल ऐसा है कि उसमें दो तरफ सूखी चमडी के दरवाजे हैं। मैं एक तरफ से हाथ डाल उसे पकडने की कोशिश करता तो वह दूसरे दरवाजे से न भाग जाता?”
चांद निकलने पर दोनों ढोल की ओर गए। जब वह निकट पहुंच ही रहे थे कि फिर हवा से टहनियां ढोल पर टकराईं और ढम-ढम की आवाज निकली। सियार सियारी के कान में बोला, “सुनी उसकी आवाज? जरा सोच जिसकी आवाज ऐसी गहरी है, वह खुद कितना मोटा ताजा होगा।”
दोनों ढोल को सीधा कर उसके दोनों ओर बैठे और लगे दांतों से ढोल के दोनों चमडी वाले भाग के किनारे फाडने। जैसे ही चमडियां कटने लगी, सियार बोला, “होशियार रहना। एक साथ हाथ अंदर डाल शिकार को दबोचना है।” दोनों ने ‘हूं’ की आवाज के साथ हाथ ढोल के भीतर डाले और अंदर टटोलने लगे। अदंर कुछ नहीं था। एक दूसरे के हाथ ही पकड में आए। दोंनो चिल्लाए “हैं! यहां तो कुछ नहीं हैं।” और वे माथा पीटकर रह गए।
*शिक्षा:-*
शेखी मारने वाले ढोल की तरह ही अंदर से खोखले होते हैं।
*सदैव प्रसन्न रहिये – जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है – उसके पास समस्त है।।*
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

More Stories
पूर्णिया बिहार 16 नवंबर 25* जिलाधिकारी द्वारा बाल दिवस 2025 का दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का किया गया शुभारंभ:–
मथुरा 16 नवंबर 25*थाना राया पुलिस टीम द्वारा घर से बिना बताये गये व्यक्ति/गुमशुदा को सकुशल बरामद कर परिवारिजनो के किया सुपुर्द ।*
ममथुरा 16 नवंबर 2025*राष्ट्रीय लोक दल के राष्ट्रीय अधिवेशन आदरणीय जयंत चौधरी जी राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने ओ पर खुशी की लहर