नई दिल्ली18सितम्बर25*थिप्पिरी तिरुपति उर्फ देवुजी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के नए महासचिव
कमल सिंह
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी ने थिप्पिरी तिरुपति उर्फ देवुजी (Thippiri Tirupathi, alias Devuji) को पार्टी का नया महासचिव नियुक्त किया है। पार्टी के पूर्व महासचिव बसवराज उर्फ नंबाल्ला केशव राव (BASAVRAJU Nambala Keshava Rao) की शहादत छत्तीसगढ़ में 27 कामरेडों के साथ अर्द्ध-सैन्यबलों के साथ एक 50 घंटे चली एक मुठभेड़ में हुई थी। इंडियन एक्सप्रेस की सह संपादक सुश्री निखिला हेनरी (बीबीसी, द क्विंट, अमेरिका (न्यूयॉर्क) की समचार वेबसाइट हफपोस्ट, द हिंदू, द टाइम्स ऑफ इंडिया में भी कार्य कर चुकी हैं) ने 9 सितंबर,2025 को प्रकाशित लेख में तेलंगाना गुप्तचर सूत्रों के हवाले से कामरेड थिप्पिरी तिरुपति उर्फ देवुजी के पार्टी के महासचिव पद पर नियुक्ति के बारे में समाचार प्रकाशित किया है। रिपोर्ट के अनुसार 62 वर्षीय देवुजी (थिप्पिरि तिरुपति) पार्टी की केंद्रीय समिति के राजनितिक मंडल (Polit Bureau) सदस्य, केंद्रीय सैन्य संगठन (Military Wing of Central Military Commission) के प्रभारी और पार्टी में बसवराज के बाद दूसरे नंबर के नेता रहे हैं।
पोलिट ब्यूरो के अन्य सदस्यों में पार्टी के पूर्व महासचिव, 76 वर्षीय, मुप्पला लक्ष्मण राव ‘गणपति’ (Muppalla Laxman Rao alias Ganapathy) भी हैं परंतु उन्होंने स्वास्थ्य समस्या के कारण महासचिव के कार्यभार के निर्वाह में 2018 में असर्थता जाहिर की थी। लेकिन वे पार्टी के पोलिट ब्यूरो के सदस्य के रूप में भूमिगत रूप से कार्यरत हैं। पोलिट ब्यूरो के एक अन्य सदस्य, 70 वर्षीय, मल्लोजुला वेणुगोपाल राव (अभय) हैं। वे पार्टी के केंद्रीय सैन्य आयोग के भी सदस्य हैं। वे पार्टी के प्रमुख नेता कोटेश्वर राव उर्फ़ किशन जी के छोटे भाई हैं। सरकार ने उन पर 1 करोड़ रुपए इनाम की घोषणा की है। किशन जी की शहादत ममता बनर्जी सरकार द्वारा पश्चिम बंगाल में 24 नवंबर 2011 को मुठभेड़ में हुई थी। पार्टी की पोलिट ब्यूरो के एक अन्य दिवंगत सदस्य चेरुकुरी राजकुमार उर्फ आजाद जो पार्टी के प्रवक्ता भी थे, शांति वार्ता के भुलावे में मनमोहनसिंह-चिदंबरम सरकार द्वारा 1 जुलाई,2010 में फर्जी एनकाउंटर में शहीद हुए थे। उनके साथ यत्रा कर रहे हेमचंद पांडे की भी आंध्र प्रदेश पुलिस द्वारा हत्या किए जाने का आरोप है। बासवराजू, देवु जी (थिप्पिरि तिरुपति) किशन जी और आजाद ये सभी आंध्र प्रदेश की रेडिकल स्टूडेंट यूनियन के महत्वपूर्ण नेता रहे हैं।
देवुजी (थिप्पिरि तिरुपति) का जन्म तेलंगाना के जगतियाल जिला (करीमनगर) में चर्मकार जाति (मडिगा) में हुआ है। पूंजीवादी विचारक उनकी पार्टी के सर्वोच्च पद पर नियुक्ति को वर्ग संघर्ष की क्रांतिकारी राजनीति (मार्क्सवादी- लेनिनवादी- माओवादी) से विचलन और पहचान की बुर्जुआ राजनीति (Identity politics) से जोड़कर प्रचारित कर रहे हैं। वास्तविकता यह है कि थिप्पिरि तिरुपति भी बासवराजू की ही तरह रेडिकल स्टूडेंट यूनियन के छात्र नेता रहे हैं। यह छात्र संगठन कामरेड चारू मजूमदार के नेतृत्व में नक्सलबाड़ी क्रांतिकारी कम्युनिस्ट आंदोलन की कड़ी में श्रीकाकुलम आंदोलन से प्रभावित विद्यार्थियों का संगठन था।
कामरेड चारू मजूमदार ने श्रीकाकुलम पार्टी के कार्यकर्ताओं की बैठक में दुर्गम पहाड़ और जंगल (terrain) और जनजाति प्रधान शोषित पीड़ित भूमिहीन-गरीब किसानों को सशस्त्र संघर्ष में संगठित करने के आह्वान के साथ नवजनवादी क्रांति के सशस्त्र संघर्ष के आधार इलाके की स्थापना का परिप्रेक्ष्य रखा था। श्रीकाकुलम में इस घोषणा के साथ चारू मजूमदार ने कहा था, “जिस दिन देश का गरीब-भूमिहीन किसान हाथ में बंदूक लेकर सशस्त्र क्रांति के लिए उठ खड़ा होगा, आंख के आंसू पोंछ कर मुस्कताएगा.. जगमगा उठेगा हमारा देश!” येनान चीन का वह इलाका था जहां 1937 से चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने मुख्य आधार इलाका कायम किया था।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने रेडिकल स्टूडेंट यूनियन से संबंधित रहे छात्र नेताओं ने उच्च शिक्षा हासिल कर बेहतर वेतन-पद–प्रतिष्ठा हासिल कर शोषण-उत्पीड़न की पूंजीवादी करियर का रास्ता छोड़कर गांव के गरीब-भूमिहीन किसानों के साथ वर्ग संघर्ष के जरिए एकाकार होकर भारत में नवजनवादी क्रांति के संघर्ष के लिए समर्पित हो जिस रास्ते पर कदम बढ़ाए(कांग्रेस-भाजपा नेताओं, शासक वर्ग की शब्दावली में लाल गलियारा (Red Corridor) उसकी ही एक तस्वीर है। इसके अंतर्गत आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के कुछ भागों सम्मिलित हैं जहां माओवादी सक्रिय हैं।
देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए प्रमुख चुनौती वामपंथी उग्रवाद (left wing extremism) को चिन्हित करने के बाद अब प्रधानमंत्री और गृह मंत्री मार्च 2026 तक देश को माओवादी (नक्सलबाड़ी) से मुक्त करने की घोषणा कर रहे हैं। दूसरी ओर वामपंथी दलों, सामाजिक जनवादियों (Social Democrats) तथा कुछ नागरिक अधिकार संगठन शांतिपूर्ण प्रतिरोध के महत्व को रेखांकित कर रहे हैं। “फासीवाद बनाम लोकतंत्र” के नाम पर भारत के शासक वर्ग की आपसी प्रतिस्पर्धा, हिंदुत्ववादी फासीवाद से “संविधान बचाओ” और “लोकतंत्र बचाओ” की कार्यनीति पर केंद्रित है। भारत के वामपंथी आंदोलन में संसदीय वामपंथ, यहां तक की समाजवादी क्रांति के पैरोकार भी भारत को स्वतंत्र पूंजीवादी राष्ट्र मानते हैं। मार्क्सवादी- लेनिनवादी संगठनों (LWE) के अनुसार, भारत 1947 के बाद भी साम्राज्यवादी शोषण और उत्पीड़न का शिकार है। अर्थव्यवस्था पर साम्राज्यवादी पूंजी का शिकंजा बदस्तूर है। इनकी रणनीति नव औपनिवेशिक-अर्द्ध सामंती भारतीय सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था को साम्राज्यवादी कॉरपोरेट पूंजी, उनके साथ नत्थी पूंजीवाद लूट से मुक्त करने के लिए मजदूर वर्ग के नेतृत्व में नवजनवादी क्रांति है। इसके लिए समाज के तमाम मूल अंतर्विरोधों के इस्तेमाल के लिए आवश्यक कार्यनीति, राष्ट्रीय स्तर की ऐसी सर्वहारा वर्ग पार्टी, जो सशस्त्र संघर्ष सहित संघर्ष के कानूनी, गैरकानूनी, खुले व गुप्त, सभी का प्रयोग करने में सक्षम हो विकसित करने की चुनौती है।
बेशक, यह सही है कि बसवराजु की शहादत और माओवादी पार्टी के खिलाफ जारी सैन्य दमन अभियान क्रांतिकारी आंदोलन के लिए गंभीर आघात है। ऐसे में गलतियां दुरुस्त करने के नाम पर दक्षिणपंथी भटकाव, क्रांतिकारी संघर्ष को तिरोहित कर देता है, मुख्य खतरा है। लेकिन खून बहाकर हासिल अनुभवों से सबक सीखने में चूक, गलती को दोहराती है, इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता। कहना आसान होता है परिष्कार कठिन। सिद्धांत पर अविचल रहकर, आर्थिक या आंशिक संघर्ष या स्वत:स्फूर्त की पिछलग्गू की जगह राजसत्ता के लिए सशस्त्र संघर्ष, निरंतर आत्मालोचना, कार्यकर्ताओं का जनता के साथ घनिष्ठ संबंध, जनता से सीखने की कुशलता, भूल को स्वीकार कर सुधार करते रहना यही रास्ता है ,जिस पर चलकर क्रांति संपन्न की जा सकती है।
(लेखक एडवोकेट, स्वतंत्र पत्रकार, नागरिक एवं जनवादी अधिकार फोरम (CDRF) के राष्ट्रीय संयोजक, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) के आजीवन सदस्य तथा उसकी उत्तर प्रदेश कमेटी के पूर्व महासचिव रहे हैं। लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं।)
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