रायबरेली17जनवरी25*श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन कथा व्यास ने विभिन्न प्रसंगों का किया वर्णन श्रोता हुए मंत्र मुग्ध
महराजगंज/रायबरेली: मऊ शर्की गांव समस्त ग्रामीणों के तत्वावधान में चल रही श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन गुरुवार को अयोध्या धाम से पधारे कथा वाचक विपिन बिहारी दास जी महराज द्वारा शुकदेव जन्म, परीक्षित श्राप और अमर कथा का वर्णन करते हुए बताया कि “नारद जी के कहने पर पार्वती जी ने भगवान शिव से पूछा कि, उनके गले में जो मुंडमाला है वह किसकी है तो भोलेनाथ ने बताया कि, वह मुंड किसी और के नहीं बल्कि स्वयं पार्वती जी के हैं। हर जन्म में पार्वती जी विभिन्ना रूपों में शिव की पत्नी के रूप में जब भी देह त्याग करती, शंकर जी उनके मुंड को अपने गले में धारण कर लेते। पार्वती ने हंसते हुए कहा हर जन्म में क्या मैं ही मरती रही, आप क्यों नहीं।
आपको बता दें कि, कथा व्यास विपिन बिहारी दास जी महराज ने बताया कि, शंकर जी ने कहा- हमने अमर कथा सुन रखी है। पार्वती जी ने कहा मुझे भी वह अमर कथा सुनाइए। शंकर जी पार्वती जी को अमर कथा सुनाने लगे। शिव-पार्वती के अलावा सिर्फ एक तोते का अंडा था जो कथा के प्रभाव से फूट गया उसमें से श्री सुखदेव जी का प्राकट्य हुआ। कथा सुनते सुनते पार्वती जी सो गई। पूरी कथा श्री सुखदेव जी ने सुनी और अमर हो गए। शंकर जी सुखदेव जी के पीछे उन्हें मृत्युदंड देने के लिए दौड़े। सुखदेव जी भागते-भागते व्यास जी के आश्रम में पहुंचे और उनकी पत्नी के मुंह से गर्भ में प्रविष्ट हो गए। 12 वर्ष बाद श्री सुखदेव जी गर्व से बाहर आए इस तरह श्री सुखदेव जी का जन्म हुआ।
कथा व्यास ने बताया कि, भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। राजा परीक्षित के कारण भागवत कथा पृथ्वी के लोगों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं, किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और ना ही बदले जा सकते हैं।
कथा व्यास विपिन बिहारी दास जी महराज ने कहा कि, भागवत के चार अक्षर इसका तात्पर्य यह है कि, भा से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त त्याग जो हमारे जीवन में प्रदान करे उसे हम भागवत कहते है। इसके साथ-साथ भागवत के छह प्रश्न, निष्काम भक्ति, 24 अवतार श्री नारद जी का पूर्व जन्म, परीक्षित जन्म, कुन्ती देवी के सुख के अवसर में भी विपत्ति की याचना करती है। क्योंकि दु:ख में ही तो गोविन्द का दर्शन होता है। जीवन की अन्तिम बेला में भीष्म गोपाल का दर्शन करते हुये अद्भुत देह त्याग का वर्णन किया, साथ-साथ परीक्षित को श्राप कैसे लगा तथा भगवान श्री शुकदेव उन्हे मुक्ति प्रदान करने के लिये कैसे प्रगट हुये इत्यादि कथाओं का भावपूर्ण वर्णन किया।
कथा व्यास ने कहा कि, श्रीमद् भागवत तो दिव्य कल्पतरु है यह अर्थ, धर्म, काम के साथ साथ भक्ति और मुक्ति प्रदान करके जीव को परम पद प्राप्त कराता है। उन्होंने कहा कि, श्रीमद् भागवत केवल पुस्तक नही साक्षात श्रीकृष्ण स्वरुप है। इसके एक-एक अक्षर में श्रीकृष्ण समाये हुये है। उन्होंने कहा कि, कथा सुनना समस्त दान, व्रत, तीर्थ, पुण्यादि कर्मो से बढ़कर है।
कथा सुनकर पांडाल में उपस्थित श्रद्धालु भाव विभोर हो गए। कथा के मध्य में भक्ति से ओत-प्रोत भजनों सुनकर भक्त आत्मसात होकर झूमने लगे।
दूसरे दिन के मुख्य यजमान- मोतीलाल सोनी, विजय सोनी, वासुदेव यादव, राकेश मिश्रा, शिव मोहन सोनी, रामकुमार शर्मा, राजाराम यादव, शीतला प्रसाद मौर्य, राजेन्द्र सिंह, सुशील सिंह, हरिकेश सिंह, वंश बहादुर सिंह, आशीष सिंह, आनन्द प्रताप रावत समेत ग्रामीण श्रद्धालु पूजन के मुख्य यजमान-रहे। पूजन का सभी कार्य आचार्यों द्वारा विधिवत कराया गया। कथा स्थल में यजमानों सहित कई गणमान्य अतिथियों ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज करवाई। कथा में मुख्य रूप से ग्राम के समस्त भक्त जनों की उपस्थिति रही।
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