झाँसी04अप्रैल24*जिस बस्ती से एक भी शख्स एतकाफ का एहतमाम करता है तो उस बस्ती पर वर्ष भर तक अल्लाह का अजाब नाजिल नही होता
मऊरानीपुर । रमजान का आखिरी अशरा शुरु होते ही रोजेदार रोजा रखकर मस्जिद में एतकाफ एकांत में इबाद करते है। ईद के चांद का दीदार होते ही एतकाफ खत्म होता है। ग्राम पंचायत भण्डरा स्थित जामा मस्जिद में हाफिज मोहम्मद नईम कादरी ने रोजेदारों को नवाज अता करते हुए बताया कि जिस बस्ती से एक भी शख्स एतकाफ का एहतमाम करता है तो उस बस्ती पर वर्ष भर तक अल्लाह का अजाब नाजिल नही होता है वही महिलाएं घरों में एतकाफ करती है। मुकद्दस रमजान इबादत का महीना होता है। इस पाक महीने में सवाब का दर्जा 70 गुना अधिक रमजान के आखिरी अशरे में मस्जिद में एकांत में रहकर रोजेदार रोजा रखकर परवरदिगार की इबादत में मशगूल हो जाते है। रमजान के महीने को तीन अशरों भाग में बांटा गया है। पहले रोजे से दसवें रोजे तक रमजान का पहला अशरा होता है जिसे रहमत का अशरा कहा जाता है। ग्यारहवें रोजे से बीसवें रोजे तक रमजान का दूसरा अशरा मगफिरत का होता है। इसी तरह इक्कसीवें रोजे से ईद के चांद के दीदार तक रमजान का आखिरी अशरा होता है। इस अशरे को जहन्नुम से आजादी का अशरा कहा जाता है। आखिरी अशरा शुरू होते ही रोजेदार एतकाफ कर परवरदिगार की इबादत में मशगूल हो जाते है। ईद का चांद दिखाई देने पर ही एतकाफ खत्म होता है। वही ग्राम पंचायत खिलारा के मोलवी अब्दुल रहमान ने रोजेदारों को बताया कि वैसे तो रमजान का हर लम्हा बड़ा ही कीमती होता है। लेकिन आखिरी अशरे की फजीलत अधिक होती है इसी अशरे में एतकाफ किया जाता है। जिस गांव से एक भी शख्स एतकाफ करता है तो उस बस्ती पर वर्ष भर तक अल्लाह का अजाब नाजिल नही होता है। इस दौरान हनीफ मंसूरी, फिरोज खान जुम्मन, नबी अहमद, आजाद खां, सकूर, मुहम्मद आरिफ खान, मुहम्मद जावेद, साजिद खां, करीम बक्स, सलीम खान, रहीश, रहीम, सद्दू मिस्त्री, अहमद खान, नजीर हाफिज, मौरम खां फकरुद्दीन, हाजी अहमद , इब्राहीम खां, मुमताज़ खां,अब्दुल सफी, इस्माइल खां, अनीश राईन, मुजफ्फर, अरमान खां, रहमान खां आदि मौजूद रहे।
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