March 28, 2024

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औरैया 23 जनवरी *श्रद्धा के साथ मनाई गई आजादी के महानायक नेताजी की 126 वी जयंती*

औरैया 23 जनवरी *श्रद्धा के साथ मनाई गई आजादी के महानायक नेताजी की 126 वी जयंती*

औरैया 23 जनवरी *श्रद्धा के साथ मनाई गई आजादी के महानायक नेताजी की 126 वी जयंती*

*औरैया।* तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा।ब्रितानी हुकूमत में इस नारे को बुलंद करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस कि आज 126 वीं जयंती सुभाष विचार मंच के तत्वावधान में श्रद्धा के साथ मनाई गई। इस मौके पर मंच के पदाधिकारियों ने सुभाष चौक स्थित जंगे आजादी के महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा पर माल्यार्पण कल श्रद्धांजलि दी। इसके साथ ही अपने विचार व्यक्त किए हैं।
इस मौके पूर्व पालिकाध्यक्ष एडवोकेट धर्मेश दुबे ने कहा कि आज सारा देश नेताजी को नमन कर रहा है। जय हिन्द! जैसे नारों से आजादी की लड़ाई को नई ऊर्जा प्रदान करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा, बंगाल डिवीजन के कटक में हुआ था। इनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और मां का नाम प्रभावती था। जानकी नाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे। प्रभावती और जानकी नाथ बोस की कुल मिलाकर 14 संतानें थी। जिसमें 6 बेटियां और 8 बेटे थे। सुभाष चंद्र उनकी 9वीं संतान और 5वें बेटे थे। नेताजी की प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में हुई। इसके बाद उनकी शिक्षा कोलकाता के प्रेजीडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई। इसके बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा (इंडियन सिविल सर्विस) की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया।
सन 1920 में उन्होंने इंग्लैंड में सिविल सर्विस परीक्षा पास की। लेकिन भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में हिस्सा लेने के लिए उन्होंने जॉब छोड़ दी थी। सिविल सर्विस छोड़ने के बाद वह देश के अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए।
इसी तरह से मंच के पदाधिकारी समाजसेवी आनंद कुशवाहा ने कहा कि जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना से वह काफी विचलित थे। कांग्रेस में महात्मा गांधी उदार दल का नेतृत्व करते थे। वहीं सुभाष चंद्र बोस जोशीले क्रांतिकारी दल के प्रिय थे। इसलिए नेताजी गांधी जी के विचार से सहमत नहीं थे। हालांकि, दोनों का मकसद सिर्फ और सिर्फ एक था कि भारत को आजाद कराया जाए। नेताजी का ऐसा मानना था कि अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए सशक्त क्रांति की आवश्यकता है। वर्ष 1938 में नेताजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित किए गए। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया। 1939 के कांग्रेस अधिवेशन में नेताजी ने गांधी जी के समर्थन से खड़े पट्टाभी सीतारमैया को हराकर विजय प्राप्त की। इस पर गांधी और बोस के बीच अनबन बढ़ गई। जिसपर नेताजी ने खुद ही कांग्रेस को छोड़ दिया। नेताजी ने वर्ष 1937 में अपनी सेक्रेटरी और ऑस्ट्रियन युवती एमिली से शादी की। दोनों की एक बेटी अनीता हुई जो वर्तमान में जर्मनी में अपने परिवार के साथ रहती हैं। अंग्रेजों से भारत को आजाद कराने के लिए नेताजी ने 21 अक्टूबर 1943 को ‘आजाद हिंद सरकार’ की स्थापना करते हुए ‘आजाद हिंद फौज’ का गठन किया। इसके बाद सुभाष चंद्र बोस अपनी फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा (अब म्यांमार) पहुंचे। यहां उन्होंने नारा दिया ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।’ वर्ष 1921 से 1941 के दौरान वो पूर्ण स्वराज के लिए कई बार जेल भी गए थे। उनका मानना था कि अहिंसा के जरिए स्वतंत्रता नहीं पाई जा सकती। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने सोवियत संघ, नाजी जर्मनी, जापान जैसे देशों की यात्रा की और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सहयोग मांगा। उन्होंने आजाद हिंद रेडियो स्टेशन जर्मनी में शुरू किया। और पूर्वी एशिया में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व किया। सुभाष चंद्र बोस भगवत गीता को प्रेरणा का मुख्य जरिया मानते थे।
इसी तरह से समाजसेवी मंच के पदाधिकारी प्रवीण गुप्ता ने कहा कि नेताजी के अंतिम समय को लेकर काफी विवादों की स्थिति रही है जिसमें 18 अगस्त 1945 को ताइपेई में हुई एक विमान दुर्घटना के बाद नेताजी लापता हो गए थे। घटना को लेकर तीन जांच आयोग बैठे। इनमें से दो जांच आयोगों ने दावा किया कि दुर्घटना के बाद नेताजी की मृत्यु हो गई थी। जबकि न्यायमूर्ति एमके मुखर्जी की अध्यक्षता वाले तीसरे जांच आयोग का दावा था कि घटना के बाद नेताजी जीवित थे। इस विवाद ने बोस के परिवार के सदस्यों के बीच भी विभाजन ला दिया था। वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी सौ गोपनीय फाइलों का डिजिटल संस्करण सार्वजनिक किया। ये दिल्ली स्थित राष्ट्रीय अभिलेखागार में मौजूद हैं। लेकिन नेताजी के बारे में अभी तक कोई प्रमाणिक जानकारी सार्वजनिक न किए जाने से देश की युवा पीढ़ी अपने आप को असहज महसूस कर रही है। इस अवसर पर सभासद कुल्लन नेता, ओंकार अग्निहोत्री, इकबाल खान, अखिलेश चतुर्वेदी, आनन्द कुशवाहा, विवेक पोरवाल आदि ने भी नेताजी को श्रद्धा सुमन अर्पित किये।

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