अनूपपुर 26 जून 24*हिन्दू पदपादशाही के संस्थापक छत्रपति शिवाजी का जीवन अनुकरणीय — राजेन्द्र तिवारी
अनूपपुर में मंडल स्तर पर मनाया गया हिन्दू साम्राज्य दिवस
अनूपपुर (ब्यूरो राजेश शिवहरे )छत्रपति वीर शिवाजी को हिन्दुस्तान में हिन्दु पद पादशाही का संस्थापक माना जाता है। उन्होंने मुगलों के विरुद्ध मराठा साम्राज्य की स्वतंत्रता को वीरता पूर्वक बनाए रखा। वे भारत में शौर्य , समर्पण और हिन्दू एकता के सच्चे ध्वज वाहक थे।
छत्रपति वीर शिवाजी महाराज जी के जन्मोत्सव के 350 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य मे हिंदू साम्राज्य दिवस का कार्यक्रम 20 से 23 जून तक पूरे देश में मनाया जाना गया । इसी तारतम्य में अनूपपुर जिले के सभी मंडलों में इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला संघ चालक राजेन्द्र तिवारी,जिला व्यवस्था प्रमुख हरिशंकर वर्मा,सामाजिक समरसता के जिला संपर्क प्रमुख मनोज कुमार द्विवेदी, दिलीप शर्मा, दिनेश तिवारी सहित अन्य लोगों की उपस्थिति में जिला मुख्यालय सहित चचाई , मण्डल पिपरिया, बरबसपुर एवं मेडियारास मे कार्यक्रम का अयोजन किया गया।
बरबसपुर स्थित कोल समाज के शिव मन्दिर में उक्त पदाधिकारियो के साथ आनंद राम जी कोल की अध्यक्षता एवं बिसाहूलाल रौतेल, ज्ञानेन्द्र सिंह परिहार, फणिदास जी, भैया लाल राठौर,संतोष रजक, रामजी, सुजीत नापित, राजन यादव,लखन लाल कोल,सेजराम कोल, भोले, रासु सिंह ,पुरुषोत्तम पटेल, नर्मदा पटेल सहित अन्य लोगो की उपस्थिति में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जिला संघ चालक ने उपरोक्त विचार व्यक्त किये ।
वीर शिवाजी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए श्री तिवारी ने कहा कि
शिवाजी का जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग, पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था। उनका पूरा नाम शिवाजी राजे भोंसले था। उनके पिता का नाम शाहाजी और माता का नाम जीजाबाई था। शिवाजी पर उनकी मां के धार्मिक गुणों का गहरा प्रभाव था।
शिवाजी की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। उन्हें धार्मिक, राजनीतिक, और युद्ध विद्या की शिक्षा दी गई। शिवाजी की मां जीजाबाई और कोंडदेव ने उन्हें महाभारत, रामायण और अन्य प्राचीन भारतीय ग्रंथों का पूरा ज्ञान दिया। उन्होंने बचपन में ही राजनीति और युद्ध नीति सीख ली थी। उनका बचपन राजा राम, गोपाल, संतों तथा रामायण, महाभारत की कहानियों और सत्संग के बीच बीता। वह सभी कलाओ में माहिर थे।
शिवाजी द्वारा लड़े गए प्रमुख युद्ध
तोरणा फोर्ट की लड़ाई (1645) पुणे में स्थित तोरणा किला प्रचंडगढ़ के नाम से भी जाना जाता है। 1645 में यहां हुई लड़ाई का हिस्सा शिवाजी भी थे। तब उनकी उम्र 15 साल थी। छोटी उम्र में ही अपना युद्ध कौशल दिखाते शिवाजी ने इसमें जीत दर्ज की थी। प्रतापगढ़ का युद्ध (1659) ये महाराष्ट्र के सतारा के पास प्रतापगढ़ किले पर लड़ा गया था। इस युद्ध में शिवाजी ने आदिलशाही सुल्तान के साम्राज्य पर आक्रमण किया और प्रतापगढ़ का किला जीत लिया। पवन खींद की लड़ाई (1660) महाराष्ट्र के कोल्हापुर के पास विशालगढ़ किले की सीमा में ये युद्ध बाजी प्रभु देशपांडे और सिद्दी मसूद आदिलशाही के बीच लड़ा गया। सूरत का युद्ध (1664) गुजरात के सूरत शहर के पास ये युद्ध छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगल सम्राट इनायत खान के बीच लड़ा गया। शिवाजी की जीत हुई। पुरंदर का युद्ध (1665) इसमें शिवाजी ने मुगल साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की।सिंहगढ़ का युद्ध (1670) इसे कोंढाना के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है। मुगलों के खिलाफ लड़कर शिवाजी की फौज ने पुणे के पास सिंहगढ़ किला जीता था। संगनेर की लड़ाई (1679) मुगलों और मराठाओं के बीच लड़ी गई ये आखिरी लड़ाई थी जिसमें मराठा सम्राट शिवाजी लड़े थे।
लोगों को संबोधित करते हुए हरिशंकर वर्मा ने कहा कि शिवाजी को कई उपाधियां मिली थीं। 6 जून, 1674 को रायगढ़ में उन्हें किंग ऑफ मराठा से नवाजा गया। इसके अलावा छत्रपति, क्षत्रिय कुलवंतस, हिन्दवा धर्मोद्धारक जैसी उपाधियां उनकी वीरता के कारण दी गईं।
उनकी नीतियों, सैन्य योजनाओं और युद्ध प्रतिभा की वजह से सब उनका लोहा मानते थे।
उनकी शक्तिशाली सेना की वजह से वे महाराष्ट्र के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता बने। औरंगजेब ने शिवाजी को धोखे से कैद कर लिया था। लेकिन अपनी अक्लमंदी और चतुराई से वे कैद से छूट गए और फिर औरंगजेब की सेना के खिलाफ युद्ध किया। पुरंदर संधि के तहत दिए हुए 24 किलों को वापस जीत लिया।
3 अप्रैल 1680 को महान छत्रपति शिवाजी की मृत्यु हो गयी।
इस अवसर पर सर्वप्रथम वीर शिवाजी की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर दीप प्रज्वलन किया गया। कार्यक्रम को ज्ञानेन्द्र सिंह परिहार,मनोज द्विवेदी, बिसाहूलाल रौतेल, आनंद राम कोल सहित अन्य लोगों ने भी संबोधित कर शिवाजी को नमन् किया । कार्यक्रम का संचालन हरिशंकर वर्मा ने किया।
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