हरदोई19मई2023*बट सावित्री व्रत अमावस्या पूजन पर नव निर्वाचित चेयर पर्सन शाहीन बेगम का सराहनीय कदम, पूजन कर रही महिलाओं ने की प्रशंसा
महिलाओं ने रखा पति की दीर्घायु के लिए वट सावित्री व्रत
नवनिर्वाचित नगर पालिका परिषद चेयर पर्सन शाहीन बेगम ने अपने निजी खर्चे पर कस्बे के प्रसिद्ध शिव मंदिर भूरेश्वर महादेव ,बाबा मनसा नाथ मंदिर व मुरीद खानी वटवृक्ष के पास बट सावित्री व्रत अमावस्या पूजन के अवसर पर महिलाओं के लिए बैठने की कुर्सियों की व्यवस्था की। चेयरमैन पर्सन की ओर से की गई व्यवस्था पर सभी ने प्रशंसा की।
वट सावित्री व्रत शुक्रवार को मनाया गया। महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए व्रत रख विधि-विधान से पूजन-अर्चन कीं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, माता सावित्री अपने पति के प्राणों को यमराज से छुड़ाकर ले आई थीं। ऐसे में महिलाएं अपनी पति की लंबी आयु के लिए इस व्रत को रखती हैं।
कस्बे के मोहल्ला मिश्राना निवासी उमा देवी ने कहा कि परंपरा का निर्वहन हम सभी का कर्तव्य है। शादी करके जब ससुराल आयी तो मेरी सास वट सावित्री व्रत रखती थीं। उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए मैंने भी इस व्रत रखना शुरू किया। व्रत से आत्म संतुष्टि मिली। अब मेरी बहू भी इस व्रत को रखती है।
रामलीला रोड निवासी रीता ने कहा कि वट सावित्री व्रत पति के प्रति सम्मान प्रकट करने का माध्यम है। साथ ही व्रत से हम अपनी परंपरा को भी आगे बढ़ाते हैं। सुहाग की लंबी आयु के लिए वट सावित्री व्रत रखा जाता है। व्रत को रखने से मन को शांति भी मिलती है। आने वाली पीढ़ी को भी इस व्रत को करना चाहिए।
पारुल निवासी मुरीद खानी ने कहा कि पति की लंबी उम्र को देखते हुए इस व्रत को रखने की परंपरा है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि बरगद के पेड़ में त्रिदेव का वास होता है। त्रिदेव से अपने पति की लंबी उम्र की कामना के साथ ये व्रत शादी के बाद से ही रख रही हूं।
मीना शर्मा निकट विकासखंड ने कहा कि सिर्फ वट सावित्री ही नहीं सभी तरह के व्रत और त्योहार हमारी जिंदगी, समाज और राष्ट्र के लिए मायने रखते हैं। वट सावित्री का व्रत पति-पत्नी के बीच में विश्वास को बढ़ाता है। आज के समय में जब रिश्ते कमजोर हो रहे हैं तो ये तीज-त्योहार इसे और मजबूती देते हैं। पति-पत्नी के बीच विश्वास बढ़ता है तो उसका सकारात्मक असर पूरे परिवार पर पड़ता है। आने वाली पीढ़ी यानी बेटे-बेटियां भी जब रिश्तों की इस मजबूती को करीब से महसूस करते हैं तो उन्हें भी इसके मायने समझ आते हैं। आगे चलकर जब वे भी मुखिया की भूमिका में आते हैं तो ये संस्कार, अपने बच्चों को हस्तांतरित करते हैं।

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