कौशाम्बी20अक्टूबर23*शिव धनुष टूटते ही सारे ब्रह्माण्ड में जय-जयकार की ध्वनि छा गई*।
कौशाम्बी से यशवंत सिंह की रिपोर्ट यूपीआजतक।
*जनक जी के बिलाप को सुनकर रामलीला देखने आए दर्शकों की आंखों में छलक आए आँसू*।
*मूर्ख राजा तमककर किटकिटाकर धनुष को पकड़ते हैं, परन्तु जब नहीं उठता तो लजाकर चले जाते हैं*
*मनौरी कौशांबी* मनौरी में श्री रामलीला समिति के तत्वाधान में हो रहे रामलीला में गुरुवार को कलाकारों ने सीता स्वयंवर व धनुष यज्ञ की लीला का शानदार मंचन किया। सीता स्वयंवर में भगवान श्री राम ने शिव धनुष को उठाया तो पूरा ब्रह्मांड कांप उठा। पंडाल जय श्रीराम के जयकारे से गूंज उठा। सीता ने प्रभु श्री राम के गले में जयमाला डाल दी
रामलीला की शुरूआत में जनकपुरी में राजा जनक अपनी पुत्री सीता के स्वयंवर के लिए देश देशांतर के राजाओं को बुलवाते हैं, और शिव धनुष को उठाने व प्रत्यंचा चढ़ाने की शर्त रखते हैं, कोई भी राजा धनुष को हिला नहीं पाता है।राजाओं से धनुष न उठना, जनक की निराशाजनक वाणी जनक जी बिलाप करने लगे रामलीला देखने आए दर्शकों की आंखों में आंसू छलक आए हे पृथ्वी की पालना करने वाले सब राजागण! सुनिए। हम अपनी भुजा उठाकर जनकजी का विशाल प्रण कहते हैं राजाओं की भुजाओं का बल चन्द्रमा है, शिवजी का धनुष राहु है, वह भारी है, कठोर है, यह सबको विदित है। बड़े भारी योद्धा रावण और बाणासुर भी इस धनुष को देखकर गौं से चुपके से चलते बने उसे उठाना तो दूर रहा छूने तक की हिम्मत न हुई उसी शिवजी के कठोर धनुष को आज इस राज समाज में जो भी तोड़ेगा, तीनों लोकों की विजय के साथ ही उसको जानकीजी बिना किसी विचार के हठपूर्वक वरण करेंगी प्रण सुनकर सब राजा ललचा उठे। जो वीरता के अभिमानी थे, वे मन में बहुत ही तमतमाए। कमर कसकर अकुलाकर उठे और अपने इष्टदेवों को सिर नवाकर चले वे तमककर बड़े ताव से शिवजी के धनुष की ओर देखते हैं और फिर निगाह जमाकर उसे पकड़ते हैं, करोड़ों भाँति से जोर लगाते हैं, पर वह उठता ही नहीं। जिन राजाओं के मन में कुछ विवेक है, वे तो धनुष के पास ही नहीं जाते
सब राजा तमककर किटकिटाकर धनुष को पकड़ते हैं, परन्तु जब नहीं उठता तो लजाकर चले जाते हैं, मानो वीरों की भुजाओं का बल पाकर वह धनुष अधिक-अधिक भारी होता जाता है तब दस हजार राजा एक ही बार धनुष को उठाने लगे, तो भी वह उनके टाले नहीं टलता। शिवजी का वह धनुष कैसे नहीं डिगता था, जैसे कामी पुरुष के वचनों से सती का मन कभी चलायमान नहीं होता सब राजा उपहास के योग्य हो गए, जैसे वैराग्य के बिना संन्यासी उपहास के योग्य हो जाता है। कीर्ति, विजय, बड़ी वीरता- इन सबको वे धनुष के हाथों बरबस हारकर चले गए जनकु अकुलाने। बोले बचन रोष जनु साने राजा लोग हृदय से हारकर श्रीहीन हतप्रभ हो गए और अपने-अपने समाज में जा बैठे। राजाओं को असफल देखकर जनक अकुला उठे और ऐसे वचन बोले जो मानो क्रोध में सने हुए थे मैंने जो प्रण ठाना था, उसे सुनकर द्वीप-द्वीप के अनेकों राजा आए। देवता और दैत्य भी मनुष्य का शरीर धारण करके आए तथा और भी बहुत से रणधीर वीर आए परन्तु धनुष को तोड़कर मनोहर कन्या, बड़ी विजय और अत्यन्त सुंदर कीर्ति को पाने वाला मानो ब्रह्मा ने किसी को रचा ही नहीं कहिए, यह लाभ किसको अच्छा नहीं लगता, परन्तु किसी ने भी शंकरजी का धनुष नहीं चढ़ाया। अरे भाई! चढ़ाना और तोड़ना तो दूर रहा, कोई तिल भर भूमि भी छुड़ा न सका अब कोई वीरता का अभिमानी नाराज न हो। मैंने जान लिया, पृथ्वी वीरों से खाली हो गई। अब आशा छोड़कर अपने-अपने घर जाओ, ब्रह्मा ने सीता का विवाह लिखा ही नहीं यदि प्रण छोड़ता हूँ, तो पुण्य जाता है, इसलिए क्या करूँ, कन्या कुँआरी ही रहे। यदि मैं जानता कि पृथ्वी वीरों से शून्य है, तो प्रण करके उपहास का पात्र न बनता॥ओर देखती हुई सीताजी के चंचल नेत्र इस प्रकार शोभित हो रहे हैं, मानो चन्द्रमंडल रूपी डोल में कामदेव की दो मछलियाँ खेल रही हों सीताजी की वाणी रूपी भ्रमरी को उनके मुख रूपी कमल ने रोक रखा है। लाज रूपी रात्रि को देखकर वह प्रकट नहीं हो रही है। नेत्रों का जल नेत्रों के कोने कोये में ही रह जाता है। जैसे बड़े भारी कंजूस का सोना कोने में ही गड़ा रह जाता है अपनी बढ़ी हुई व्याकुलता जानकर सीताजी सकुचा गईं और धीरज धरकर हृदय में विश्वास ले आईं कि यदि तन, मन और वचन से मेरा प्रण सच्चा है और श्री रघुनाथजी के चरण कमलों में मेरा चित्त वास्तव में अनुरक्त हो तो सबके हृदय में निवास करने वाले भगवान मुझे रघुश्रेष्ठ श्री रामचन्द्रजी की दासी अवश्य बनाएँगे।
जिसका जिस पर सच्चा स्नेह होता है, वह उसे मिलता ही है, इसमें कुछ भी संदेह नहीं है जैसे-प्रभु की ओर देखकर सीताजी ने शरीर के द्वारा प्रेम ठान लिया अर्थात् यह निश्चय कर लिया कि यह शरीर इन्हीं का होकर रहेगा या रहेगा ही नहीं कृपानिधान श्री रामजी सब जान गए। उन्होंने सीताजी को देखकर धनुष की ओर कैसे ताका, जैसे गरुड़जी छोटे से साँप की ओर देखते हैं इधर जब लक्ष्मणजी ने देखा कि रघुकुल मणि श्री रामचन्द्रजी ने शिवजी के धनुष की ओर ताका है, तो वे शरीर से पुलकित हो ब्रह्माण्ड को चरणों से दबाकर वचन बोले-दिसिकुंजरहु कमठ अहि कोला। धरहु धरनि धरि धीर न डोला॥रामु चहहिं संकर धनु तोरा। होहु सजग सुनि आयसु मोरा॥हे दिग्गजो! हे कच्छप! हे शेष! हे वाराह! धीरज धरकर पृथ्वी को थामे रहो, जिससे यह हिलने न पावे। श्री रामचन्द्रजी शिवजी के धनुष को तोड़ना चाहते हैं। मेरी आज्ञा सुनकर सब सावधान हो जाओ॥चाप समीप रामु जब आए। नर नारिन्ह सुर सुकृत मनाए॥सब कर संसउ अरु अग्यानू। मंद महीपन्ह कर अभिमानू श्री रामचन्द्रजी जब धनुष के समीप आए, तब सब स्त्री-पुरुषों ने देवताओं और पुण्यों को मनाया। सबका संदेह और अज्ञान, नीच राजाओं का अभिमान,भृगुपति केरि गरब गरुआई। सुर मुनिबरन्ह केरि कदराई॥सिय कर सोचु जनक पछितावा। रानिन्ह कर दारुन दुख दावा॥परशुरामजी के गर्व की गुरुता, देवता और श्रेष्ठ मुनियों की कातरता भय सीताजी का सोच, जनक का पश्चाताप और रानियों के दारुण दुःख का दावानल, संभुचाप बड़ बोहितु पाई। चढ़े जाइ सब संगु बनाई॥राम बाहुबल सिंधु अपारू। चहत पारु नहिं कोउ कड़हारू ये सब शिवजी के धनुष रूपी बड़े जहाज को पाकर, समाज बनाकर उस पर जा चढ़े। ये श्री रामचन्द्रजी की भुजाओं के बल रूपी अपार समुद्र के पार जाना चाहते हैं, परन्तु कोई केवट नहीं है राम बिलोके लोग सब चित्र लिखे से देखि।चितई सीय कृपायतन जानी बिकल बिसेषि श्री रामजी ने सब लोगों की ओर देखा और उन्हें चित्र में लिखे हुए से देखकर फिर कृपाधाम श्री रामजी ने सीताजी की ओर देखा और उन्हें विशेष व्याकुल जाना देखी बिपुल बिकल बैदेही। निमिष बिहात कलप सम तेही।तृषित बारि बिनु जो तनु त्यागा। मुएँ करइ का सुधा तड़ागा उन्होंने जानकीजी को बहुत ही विकल देखा।उनका एक-एक क्षण कल्प के समान बीत रहा था। यदि प्यासा आदमी पानी के बिना शरीर छोड़ दे, तो उसके मर जाने पर अमृत का तालाब भी क्या करेगा का बरषा सब कृषी सुखानें। समय चुकें पुनि का पछितानें अस जियँ जानि जानकी देखी। प्रभु पुलके लखि प्रीति बिसेषी सारी खेती के सूख जाने पर वर्षा किस काम की?
समय बीत जाने पर फिर पछताने से क्या लाभ? जी में ऐसा समझकर श्री रामजी ने जानकीजी की ओर देखा और उनका विशेष प्रेम लखकर वे पुलकित हो गए गुरहि प्रनामु मनहिं मन कीन्हा। अति लाघवँ उठाइ धनु लीन्हा दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ। पुनि नभ धनु मंडल सम भयऊ॥मन ही मन उन्होंने गुरु को प्रणाम किया और बड़ी फुर्ती से धनुष को उठा लिया। जब उसे हाथ में लिया, तब वह धनुष बिजली की तरह चमका और फिर आकाश में मंडल जैसा मंडलाकार हो गया॥लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें। काहुँ न लखा देख सबु ठाढ़ें॥तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुनि घोर कठोरा लेते, चढ़ाते और जोर से खींचते हुए किसी ने नहीं लखा अर्थात ये तीनों काम इतनी फुर्ती से हुए कि धनुष को कब उठाया, कब चढ़ाया और कब खींचा, इसका किसी को पता नहीं लगा), सबने श्री रामजी को धनुष खींचे खड़े देखा। उसी क्षण श्री रामजी ने धनुष को बीच से तोड़ डाला। भयंकर कठोर ध्वनि से सब लोक भर गए भे भुवन घोर कठोर रव रबि बाजि तजि मारगु चले।चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरुम कलमले॥सुर असुर मुनि कर कान दीन्हें सकल बिकल बिचारहीं।कोदंड खंडेउ राम तुलसी जयति बचन उचारहीं घोर, कठोर शब्द से सब लोक भर गए, सूर्य के घोड़े मार्ग छोड़कर चलने लगे। दिग्गज चिग्घाड़ने लगे, धरती डोलने लगी, शेष, वाराह और कच्छप कलमला उठे। देवता, राक्षस और मुनि कानों पर हाथ रखकर सब व्याकुल होकर विचारने लगे श्री रामजी ने धनुष को तोड़ डाला, तब सब ‘श्री रामचन्द्र की जय’ बोलने लगे संकर चापु जहाजु सागरु रघुबर बाहुबलु।बूड़ सो सकल समाजु चढ़ा जो प्रथमहिं मोह बस शिवजी का धनुष जहाज है और श्री रामचन्द्रजी की भुजाओं का बल समुद्र है। धनुष टूटने से वह सारा समाज डूब गया, जो मोहवश पहले इस जहाज पर चढ़ा था। जिसका वर्णन ऊपर आया है प्रभु दोउ चापखंड महि डारे। देखि लोग सब भए सुखारे॥कौसिकरूप पयोनिधि पावन। प्रेम बारि अवगाहु सुहावन॥प्रभु ने धनुष के दोनों टुकड़े पृथ्वी पर डाल दिए। यह देखकर सब लोग सुखी हुए। विश्वामित्र रूपी पवित्र समुद्र में, जिसमें प्रेम रूपी सुंदर अथाह जल भरा है,रामरूप राकेसु निहारी। बढ़त बीचि पुलकावलि भारी बाजे नभ गहगहे निसाना। देवबधू नाचहिं करि गाना राम रूपी पूर्णचन्द्र को देखकर पुलकावली रूपी भारी लहरें बढ़ने लगीं। आकाश में बड़े जोर से नगाड़े बजने लगे और देवांगनाएँ गान करके नाचने लगीं ब्रह्मादिक सुर सिद्ध मुनीसा। प्रभुहि प्रसंसहिं देहिं असीसा॥बरिसहिं सुमन रंग बहु माला। गावहिं किंनर गीत रसाला ब्रह्मा आदि देवता, सिद्ध और मुनीश्वर लोग प्रभु की प्रशंसा कर रहे हैं और आशीर्वाद दे रहे हैं। वे रंग-बिरंगे फूल और मालाएँ बरसा रहे हैं। किन्नर लोग रसीले गीत गा रहे हैं रही भुवन भरि जय जय बानी। धनुषभंग धुनिजात न जानी मुदित कहहिं जहँ तहँ नर नारी। भंजेउ राम संभुधनु भारी सारे ब्रह्माण्ड में जय-जयकार की ध्वनि छा गई, जिसमें धनुष टूटने की ध्वनि जान ही नहीं पड़ती। जहाँ-तहाँ स्त्री-पुरुष प्रसन्न होकर कह रहे हैं कि श्री रामचन्द्रजी ने शिवजी के भारी धनुष को तोड़ डाला इस दौरान शंभू लाल केसरवानी,राधे श्याम केसरवानी,दीपू केसरवानी, रतन केशरवानी,सुधीर कुमार केसरवानी,नरोत्तम दास केसरवानी,सतीश कुमार,हिमांशु जी,भारत लाल,धीरेंद्र कुमार,अवधेश कुमार,हरजीवन लाल,सुशील कुमार मंत्रीजी, आदि लोग रहे
More Stories
चित्रकूट13अगस्त25*चित्रकूट से प्रयागराज होते हुए वाराणसी तक बनेगा 6-लेन हाईस्पीड ग्रीनफील्ड कॉरिडोर*
चित्रकूट13अगस्त25*चित्रकूट से प्रयागराज होते हुए वाराणसी तक बनेगा 6-लेन हाईस्पीड ग्रीनफील्ड कॉरिडोर*
जोधपुर13अगस्त25*ब्रेकिंग ख़बर: 21 अगस्त को हमेशा के लिए थम जायेगे 108 एम्बुलेंस जीवन वाहिनी के पहिये!*