औरैया16अगस्त21*वीरांगना अवंती बाई की जयंती धूमधाम से मनाई गई*
*औरैया।* वीरांगना अवंती बाई का 183 वीं जयंती समारोह इंडियन आयल स्थित अवंती बाई पार्क में सोमवार को धूमधाम से मनाया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बिधूना के पूर्व ब्लाक प्रमुख कौशलेंद्र राजपूत ने कहा कि देश की आजादी दिलाने में वीर और वीरांगनाओं की महती भूमिका रही है। उसमें प्रमुख रूप से 1857 की लड़ाई की प्रथम महिला वीरांगना अवंती बाई लोधी थी। जिन्होंने सबसे पहले अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने का बिगुल फूंका था , उन्होंने अपने स्वजातीय राजाओं से कहा था कि चूड़ियां पहन के घर बैठे , अन्यथा अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध के मैदान में आ जाएं। भारतवर्ष को आजादी दिलाने में बुंदेलखंड के राजाओं का योगदान रहा है। वीरांगना अवंती बाई का जन्म मन खेड़ी गांव मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में हुआ था। उनके 2 पुत्र थे। उनके पति विक्रमादित्य को अंग्रेजों ने पागल घोषित कर दिया था , और उनके साम्राज्य को अपने साम्राज्य में मिलाना चाहा , तो उन्होंने अंग्रेजों से संघर्ष छेड़ा , और मरते दम तक अंग्रेजों से मुकाबला करती रही। ऐसे वीरों के पद चिन्हों पर चलकर देश की आजादी को बनाए रखना है। विशिष्ट अतिथि प्रेमपाल सिंह जेई नगर पालिका परिषद औरैया ने कहा कि समाज के लोगों को शिक्षित होना चाहिए। शिक्षित होकर सही दिशा में कार्य करें , जिससे समाज और देश का उत्थान होगा। युवा आज पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण कर रहा है। इस कारण से परेशान हैं। युवा भारतीय सभ्यता में जीना सीख ले , तो उसका और उसके परिवार का जीवन सफल जाएगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अनिल राजपूत प्रदेश सचिव अखिल भारतीय लोधी राजपूत महासभा ने कहा लोग जीते जरूर हैं , जीने की कला अलग-अलग हुआ करती है , जो औरों के लिए जीते हैं उनकी जिंदगी हुआ करती है। वीरांगना अवंती बाई ने देश में नाम रोशन किया। उनका नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया। उन्होंने अपने लिए नहीं बल्कि समाज के लिए लड़ाई पूरे देश के लिए लड़ी। इस कारण से पूरा भारत वर्ष सम्मान देता है। एक बार लड़ाई के मैदान में लॉर्ड वाशिंगटन का लड़का लड़ाई लड़ते-लड़ते छूट गया , तो रानी ने दयालुता दिखाते हुए अपने सैनिकों के साथ भेज कर उसे अंग्रेजों घर भेजा , तो अंग्रेजों ने कहा कि अब युद्ध विराम कर दें , तो उनका साम्राज वापस कर दिया जाएगा। रानी ने कहा वह जीते जी संघर्ष करेंगी। जब तक भारत वर्ष से अंग्रेजों को भगा नहीं दिया जाएगा तब तक संघर्ष करती रहूंगी। अंत में रानी संघर्ष करते-करते 20 मार्च 18 58 में शहीद हो गई। उनकी अच्छे सेनापति उमराव सिंह लोधी साथ में रहे। अंग्रेजों ने यूविल पुस्तक में लिखा है , भारत में कोई वीरांगना हुई है तो वीरांगना अवंती बाई हैं। इस अवसर पर प्रमुख रूप से मनोहर लाल एडवोकेट , छात्र नेता शुभम राजपूत , अजीत राजपूत , अरविंद राजपूत , राज कुमार , शिवा राजपूत , पंकज सिंह , हुकुम सिंह , शिवा राजपूत , कन्हैया राजपूत , अशोक राजपूत , जनक सिंह , प्रधान टिल्लू राजपूत , प्रधान गिरजा शंकर , सोनू , राजू राजपूत आदि लोगों ने वीरांगना अवंती बाई की रैली निकालकर नगर में भ्रमण किया। अतिथियों का माल्यार्पण कर स्वागत किया गया। वीरांगना अवंतीबाई की प्रतिमा और अवंती बाई स्वरूप की भूमिका निभाने वाली छात्रा का भी फूल मालाओं से स्वागत किया गया।
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