कानपुर देहात08जून25*यूपीआजतक न्यूज़ चैनल पर कानपुर देहात की कुछ महत्वपूर्ण खबरें……
*कुछ स्कूलों का अच्छा होना पूरे शिक्षा विभाग में सुधार लाने के लिए पर्याप्त नहीं होता*
बैनर न्यूज़ ब्यूरो
कानपुर देहात। शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की बात हो तो अक्सर चर्चा केवल कुछ विशेष और सुसज्जित स्कूलों और गिने-चुने उत्कृष्ट शिक्षकों तक सीमित रह जाती है। यह सच है कि कुछ बेहतरीन शिक्षक और शानदार स्कूल एक मिसाल बनते हैं परंतु यह भी उतना ही सत्य है कि पूरे शिक्षाक्षेत्र की हालत इन थोड़े से उदाहरणों के भरोसे नहीं सुधारी जा सकती। इनकी प्रशंसा में किसी प्रकार की कमी नहीं होनी चाहिए पर यह भी समझना जरूरी है कि शिक्षा का दायरा अत्यंत विस्तृत है जिसमें केवल कुछ हिस्सों की चमक बाकी हिस्सों के अंधकार को मिटा नहीं सकती। पिछले कुछ वर्षों में, शिक्षा के क्षेत्र में कुछ उत्कृष्ट उदाहरणों को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाएं और नीतियां बनाई गईं। इनसे कुछ स्कूलों और शिक्षकों को जरूर आगे बढ़ने का अवसर मिला लेकिन व्यापक सुधार के लिए इन नीतियों का प्रभाव सीमित रहा। यह ठीक वैसे ही है जैसे एक बड़े फसल क्षेत्र में केवल कुछ पौधों को पानी और खाद दी जाए और बाकी पौधे सूखे रह जाएं। समग्र फसल के लिए समग्र देखभाल आवश्यक है केवल कुछ पौधों की नहीं। समग्र परिवर्तन के लिए शिक्षा क्षेत्र में सभी स्कूलों और शिक्षकों को साथ लेकर चलने की जरूरत है। यह परिवर्तन छोटे और सीमित दायरे में नहीं बल्कि बड़े और विस्तृत स्तर पर होना चाहिए। शिक्षा प्रणाली को एक मजबूत और सक्षम आधार देने के लिए व्यापक स्तर पर नीतिगत बदलावों की जरूरत है। इस संदर्भ में शिक्षक प्रशिक्षण, संसाधनों का उचित वितरण और पाठ्यक्रम में व्यापक सुधार की आवश्यकता है। इसके अलावा ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में स्कूलों की स्थिति में सुधार लाना भी अत्यंत आवश्यक है कुल मिलाकर केवल कुछ उत्कृष्ट उदाहरणों पर ध्यान केंद्रित करना शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक सुधार नहीं ला सकता। इसके लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें सभी विद्यालयों और शिक्षकों को साथ लेकर चलने की क्षमता हो। शिक्षा क्षेत्र में एक व्यापक और विस्तृत सुधार की आवश्यकता है ताकि हर बच्चा एक समान और उत्कृष्ट शिक्षा प्राप्त कर सके।
[6/8, 6:43 AM] +91 96283 30454: *बच्चों की तरह बेसिक शिक्षा अधिकारी भी पांच दिन तक करेंगे पढ़ाई*
*बेसिक शिक्षा अधिकारियों को दिया जाएगा पांच दिवसीय प्रशिक्षण*
बैनर न्यूज़ ब्यूरो
कानपुर देहात। उत्तर प्रदेश में परिषदीय स्कूलों में निपुण भारत मिशन को प्रभावी बनाने के लिए जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों (बीएसए) को 5 दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण सेण्टर फॉर डेवलपमेण्ट ऑफ फाइनेंशियल एडमिनिस्ट्रेशन लखनऊ में दिया जायेगा। यह प्रशिक्षण दो चरणों में पूर्ण होगा। परिषदीय स्कूलों में निपुण भारत मिशन को और प्रभावी बनाने के लिए प्रदेश के सभी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। प्रथम बैच का प्रशिक्षण दिनांक 9 से 13 जून एवं द्वितीय बैच का प्रशिक्षण दिनांक 23 से 27 जून तक चलेगा। प्रशिक्षण के दौरान अधिकारियों को यह बताया जाएगा कि निपुण भारत मिशन को जमीनी स्तर पर बेहतर ढंग से कैसे लागू किया जाए, बच्चों की पढ़ाई में सुधार के लिए कौन-कौन से उपाय किए जा सकते हैं और मिशन के लक्ष्यों की निगरानी कैसे की जाए। वित्तीय एवं विभागीय प्रक्रियाओं को बेहतर तरीके से कहसे किया जाए। सीखने की प्रक्रिया को रोचक और प्रभावी बनाने के लिए प्रशिक्षण में गतिविधियां, केस स्टडी और समूह चर्चा जैसे तरीके कैसे अपनाए जाएं। इसके लिए विषय विशेषज्ञों और अनुभवी प्रशिक्षकों को आमंत्रित किया गया है। हर प्रशिक्षण बैच के लिए आवश्यक संसाधनों और सुविधाओं की पूरी तैयारी की जा रही है। विभाग का कहना है कि प्रशिक्षण की गुणवत्ता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी। स्कूल शिक्षा महानिदेशक कार्यालय से सभी बीएसए को निर्देश जारी किए गए हैं जिसमें कहा गया है कि वे गर्मी की छुट्टियों के दौरान यह प्रशिक्षण पूरा करें। प्रथम मैच में अमेठी, बागपत, बलरामपुर, बांदा, बस्ती, बुलंदशहर, चंदौली, देवरिया, फिरोजाबाद, गौतम बुद्ध नगर, गाजियाबाद, हमीरपुर, हाथरस, जालौन, झांसी, कन्नौज, कानपुर देहात, कासगंज, कौशांबी, खेरी, कुशी नगर, ललितपुर, महाराजगंज, महोबा, मैनपुरी, मेरठ, प्रतापगढ़, रामपुर, संभल, संत कबीर नगर, श्रावस्ती, सिद्धार्थ नगर, सीतापुर, सोनभद्र, सुल्तानपुर एवं द्वितीय बैच में जनपद आगरा, अलीगढ़, अंबेडकर नगर, अमरोहा, औरैया, अयोध्या, आजमगढ़, बहराइच, बलिया, बाराबंकी, बरेली, भदोही, बिजनौर, बदायूं, चित्रकूट, एटा, इटावा, फर्रुखाबाद, फतेहपुर, गाजीपुर, गोण्डा, गोरखपुर, हापुड़, हरदोई, जौनपुर, कानपुर नगर, लखनऊ, मथुरा, मऊ, मिर्जापुर, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, पीलीभीत, प्रयागराज, रायबरेली, सहारनपुर, शाहजहांपुर, शामली, उन्नाव, वाराणसी जनपदों के बीएसए प्रतिभाग करेंगे।
[6/8, 6:43 AM] +91 96283 30454: *डिजिटल छवि बनाने में जुटा इंसान, हर कोई दिखावे में परेशान*
*सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोग जो दिखते हैं वह होते नहीं जो होते हैं वह दिखते नहीं*
बैनर न्यूज़ ब्यूरो
कानपुर देहात। जिस सोशल मीडिया को अभिव्यक्ति, जानकारी साझा करने और नवाचार का अहम मंच समझा जाता है वह आज लोगों की परेशानी की वजह बन रहा है। सोशल मीडिया के जरिए अफवाह फैलाकर सामाजिक सद्भाव को बिगाडऩे और सकारात्मक सोच को संकीर्ण करने का कार्य किया जा रहा है। सामाजिक और धार्मिक स्वार्थ के साथ राजनीतिक स्वार्थ के लिए भी गलत जानकारियां परोसी जा रही हैं। सोशल मीडिया के जरिए तथ्यों को भी तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। सोशल मीडिया के प्रभाव के कारण लोगों के सोचने का दायरा भी संकुचित होता जा रहा हैै।साइबर अपराध सोशल मीडिया से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या है। सोशल मीडिया का अत्यधिक प्रयोग हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। सोशल मीडिया सामाजिक समरसता को बिगाडऩे लगा है। सकारात्मक सोच की जगह समाज को बांटने वाली सोच को बढ़ावा देने लगा है। सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर सख्ती की आवश्यकता लगातार महसूस की जा रही है। समाजशास्त्री राजेश कटियार का कहना है कि सोशल मीडिया पर 90 फीसदी से ज्यादा दिखावा हो रहा है, पता नही क्यो लोग सच्चाई से दूर भाग रहे हैं। सोशल मीडिया का इस्तेमाल लोगो मे नकारात्मक बाते फैलाने के लिए किया जा रहा है जबकि सोशल मीडिया एक बहुत अच्छा प्लेटफार्म है जहाँ हम दुनिया के किसी भी जगह बैठे हुए आदमी से बात करते है और सम्पर्क में रह सकते है लेकिन अब इसका बिल्कुल उल्टा हो रहा है इसको नकारत्मक सोच फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, लोगो को बेवकूफ बनाने के लिये इस्तेमाल किया जा रहा है और दिखावे के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है हालांकि कुछ लोग सच्चे भी होते हैं लेकिन ज्यादातर लोग दिखावा करते हैं और बहुत बड़ी बडी फेकते हैं। अपनी बातो को बहुत बड़ा चढ़ा कर बताते हैं जोकि असल मे होती ही नहीं। इन्हीं दिखावे वाली बातो से ये लोग नए रिश्ते बनाने की कोशिश भी करते हैं और उसका गलत फायदा उठाना भी चाहते हैं वैसे तो अब बहुत लोग यह बात जान गए हैं फिर भी सावधान रहने की आवश्यकता है। शिक्षाशास्त्री प्रवीण त्रिवेदी का इस संदर्भ में कहना है कि काश लोग सच में वैसे होते जैसे वे अपने स्टेटस में दिखते हैं। विचारों से गहन, भावनाओं से भरे, समाज के लिए जागरूक और आत्मा से संत लेकिन अफसोस! आजकल स्टेटस इंसान का नहीं उसकी डिजिटल छवि का आईना है। असल जिंदगी में वही लोग दूसरों की पीठ पीछे वार करते हैं। रिश्तों को जरूरत की सीढ़ी मानते हैं और जमीर को लाइक और फॉलोअर्स में गिरवी रख चुके होते हैं। स्टेटस में दिखने वाले संत असल में अंदर से स्वार्थ का स्तूप बन चुके हैं। ऐसे में सवाल ये नहीं कि लोग क्या लिखते हैं सवाल ये है कि क्या वो उस लिखे हुए के लायक भी हैं? इस पर मंथन करने की आवश्यकता है।
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