वाराणसी13सितम्बर24*हिंदी दिवस पर,राष्ट्र भाषा के रूप में हिन्दी की स्थिति *
वाराणसी से प्राची राय की खास खबर यूपीआजतक
हिंदी है हम हिंदुस्तान हमारा गीत की पंक्तियां सुनने में हम सबको अच्छा अच्छा लगता है, पर वास्तविकता अर्थों में क्या हम भारतीयता के साथ न्याय कर पाते हैं ? क्या हम स्वयं को भारतीय का कर गौरवान्वित होते हैं क्या हमारे देश में व्यक्ति को हिंदी बोलकर वह आदर मिल पाता है जो विदेशों में उनके निज की भाषा बोलने पर मिल पाता है । हम स्वतंत्र हैं पर क्या हम मानसिक स्तर पर आज भी अंग्रेजी या अंग्रेजी के गुलाम नहीं है। शिक्षा के व्यापक प्रसार के बाद भी निरक्षरता है ,बेरोजगारी है। उच्च पदों पर विशिष्ट वर्ग के लोग ही पहुंच पाते हैं क्योंकि प्राय सभी प्रतियोगी परीक्षाओं का माध्यम अंग्रेजी को रखा जाता है जिनमें अंग्रेजी माध्यम से पढने वाले विद्यालयों के विद्यार्थी ही सफल हो पाते हैं ।अंग्रेजी के संस्कार ओढें ये लोग उच्च पदों पर पहुंचकर निम्न पदों पर ऐसे लोगों की नियुक्ति करना पसंद करते हैं जिनसे उनके संपर्क में बच्चे बिगड़ ना जाए।
दूसरी भाषाओं को जानना, सोचना बुरा नहीं है पर उसको श्रेष्ठ और अपनी भाषा को हीन समझकर अपनाना अच्छा नहीं है ।कोई भी राष्ट्र अपनी भाषा को अपनाकर आगे बढ़ सकता है जो अपनत्व, जो आत्मविश्वास अपनी भाषा दिला सकती है वह उधार ली हुई भाषा से संभव नहीं है अच्छा खासा पढ़ा लिखा तोता अंत में टे टे बोल पाता है ।
हिंदी को बढ़ावा देने के लिए नई-नई योजनाएं शुरू की गई है कितनी हैरानी की बात है कि यह सब आयोजन उसे भाषा के लिए हो रहा जो भाषा है हमारी ।इन सब आयोजनों से साबित होता है कि हम उस भाषा को खो चुके हैं जो है ही हमारी जो चीज है ही हमारी पर उसके लिए अगर डिढोरा पीट-पीट कर कहना पड़े कि यह भाषा हमारी है तो यह अफसोस वाली बात ही तो है। बच्चों को पहले दिन ही जो भाषा सुनाई पड़ती है वह हिंदी है पर चाहे अंग्रेजियत थोपने की कोशिश करें पर बच्चों को माहौल तो हिंदी का ही मिलता है गड़बड़ होती है स्कूल जाने पर आज तो यह तय मान लिया गया है की अंग्रेजी स्कूलों में पड़े बिना जिंदगी बेकार है पढ़ते अंग्रेजी है और इस चक्कर में ना अच्छी तरह से हिंदी आती है और न अंग्रेजी मतलब जब किसी के जबरदस्ती कपड़े पहनेंगे तो कहीं वह कपड़े ढीले होंगे और कहीं फंसेगे।
ऐसे मे परेशानी तो होगी ही यह समस्या सिर्फ भारत वर्ष में ही है कि जहां लोगों को बच्चों को यह कहना पड़ रहा है कि अपने देश की भाषा का इस्तेमाल करो दुनिया में कोई भी देश ऐसी मुश्किल से नहीं जूझ रहा है जरूरत इस बात की बात की है कि हिंदी को हम अपनाये और ये समझे कि हमारी यही भाषा है क्या अपनी चीज को अपने में कोई बुराई है । कोई भी राष्ट्र अपनी भाषा को अपनाकर आगे बढ़ सकता है जो अपनत्व, आत्मविश्वास और जो सम्मान अपनी भाषा दिला सकती है वह उधार ली हुई भाषा से संभव नहीं है।
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