June 23, 2025

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कानपुर नगर9अक्टूबर*एम एस एम ई का पूर्ण विश्लेषण:-

कानपुर नगर9अक्टूबर*एम एस एम ई का पूर्ण विश्लेषण:-

कानपुर नगर9अक्टूबर*एम एस एम ई का पूर्ण विश्लेषण:-

एम एस एम ई और जनसंचार के बीच गहरा संबंध है होमो सेपियंस जबसे उद्यम की ओर अभिमुख हुआ तथा सभ्यता की ओर जब से उसने कदम बढ़ाना आरंभ किया तभी से उसे जनसंचार की आवश्यकता पड़ी बिना जनसंचार ना तो मनुष्य उद्यम कर सकता है, ना सीख सकता है, ना सिखा सकता है और ना ही उसे आगे बढ़ा सकता है । जनसंचार तब से हो रहा है जब भाषा के विकसित रूप का जन्म भी नहीं हुआ था इसके प्रमाण ज्ञात अज्ञात इतिहास में दर्ज है सभ्यता और संस्कृति अनेक ज्ञात तथ्य इसी ओर इशारा करते हैं।

भारत सरकार का एमएसएमई मंत्रालय समय की गति के साथ कदमताल कर रहा है लघु उद्योग समाचार के इस विशेषांक एवं संयुक्तांक में भी इसके प्रमाण देखे जा सकते हैं देश के विभिन्न क्षेत्रों में फैले टूल रूम्स की गतिविधियों और लगभग हर माह लगने वाले मेलों के संचार में भी इसकी बानगी देखी जा सकती है।

भारत सिर्फ उत्सवो और मेलों का ही देश नहीं है यह उद्यम का भी देश है। उत्सव और मेले भी उद्यम से ही आयोजित किए जाते हैं जिस विधाता या सर्वशक्तिमान ने सृष्टि की रचना की है वह सबसे बड़े उद्यमी है और उनके संचार तंत्र का की एक छोटा सा स्टेशन है यह सृष्टि जिसके ज्ञात अज्ञात रहस्य को जानने समझने के लिए आधुनिक होमो सेपियंस दिन रात कर रहे हैं इन तमाम आधुनिक प्रयासों और जीवन शैली के बीच एक यथार्थ यह भी है कि दुर्गम या सुदूर इलाकों में रहने वाले अनेक भारतीय ही नहीं बल्कि अनेक शिक्षित भारतीय भी एम एस एम ई के नाम तक से वाकिफ नहीं है और वह जनसंचार के महत्व से अनजान हैं इससे भी कटु यथार्थ यह है कि देश और प्रदेश में एम एस एम आई की योजनाओं की संख्या इतनी अधिक है और उनका नाम का इतना जटिल है कि आम नागरिक या लक्षित युवा वर्ग अथवा विद्यमान उद्यमी तो दूर स्वयं एम एस एम ई के मंत्रालयों और विभागों में रोज कार्य करने वाले विशेषज्ञ भी सब का नाम नहीं बता सकते हैं यही है वह जटिल कड़ी जिसे आसान बनाने की आवश्यकता है ताकि एमएसएमआई अपने जनसंचार को स्वयं समझ सके और जनसंचार एस एम एस एम ई को संपूर्णता में समझ सके।

एम एस एम ई और जनसंचार इतने करीब होते हुए भी एक अपार्टमेंट में उन दो अजनबी फ्लैट की तरह से दशकों से बसे हुए हैं और आज उस शैली और भाषा में जान पहचान फिर से बढ़ाना चाह रहे हैं जिनसे दोनों लंबे समय से अनभिज्ञ है नीति निर्माताओं, विशेषज्ञों, एमएसएमई विकास संस्थानों और जिला उद्योग केंद्रों को इस ओर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए। यह प्रयास लंबे समय से वांछनीय है।

यूपी आज तक के संपादक कमल गुप्ता के साथ सुनील त्रिपाठी।

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