मथुरा06मई2025*वन ब्रज के 36 प्राचीन वनों का बदलेगा स्वरूप
बबूल को हटाकर लगाए जाएंगे कृष्ण कालीन पौधे,90 करोड़ की योजना पर काम शुरु
*मथुरा से लक्ष्मी शर्मा की खास ख़बर यूपीआजतक*
मथुरा छटीकरा । अब वह दिन दूर नहीं जब ब्रज में प्राचीन वन नजर आएंगे। यहाँ बबूल के स्थान पर कृष्ण कालीन वृक्ष होंगे। ब्रज के प्राचीन 36 वनों को पुनर्जीवित करने की योजना की शुरुआत मंगलवार को 119 एकड़ में फैले वृंदावन स्थित सुनरख वन में करते रोपण के साथ हुई।
इस मौके पर उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद के उपाध्यक्ष शैलजाकांत मिश्र ने कहा कि ब्रज की पहचान वनों से है, जो अब नजर नहीं आते हैँ। इसी पहचान को पुनर्जीवित करना है। यह योजना ब्रज के प्राचीन वनों की कल्पना को साकार करेगी। उन्होंने कहा ब्रज को सिंगापुर नहीं बनाना है, ब्रज को ब्रज बनाना है। इस मौके पर उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद के सीईओ श्याम बहादुर सिंह ने ब्रज के प्राकृतिक संसाधनों को पुनर्स्थापित करने का काम उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद द्वारा किया जा रहा है।
पर्यावरण विशेषज्ञ मुकेश शर्मा और डीएफओ रजनीकांत मित्तल ने ब्रज के 36 वनों को पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया में आई दुश्वरियों को बताया। कहा कि ब्रज के प्राचीन वनों को सरकारी रिकॉर्ड में ढूढ़ने से लेकर यहाँ बबूल के वृक्षों को काटने की सुप्रीम कोर्ट की अनुमति में लम्बा वक्त लगा। अब वन विभाग यहाँ बबूल काटकर कृष्ण कालीन पौधे लगाए जाएंगे। इस मौके पर
अपर प्रमुख वन संरक्षक आगरा जोन भीमसेन, वन संरक्षक अनिल पटेल आगरा ने योजना की सफलता के लिए विभागीय विश्वास जताया। कार्यक्रम में सांसद प्रतिनिधि जनार्दन शर्मा सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।
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खास बिंदु
पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन के माध्यम से ब्रज के प्राचीन वनों (पौराणिक वन) का पुनरुद्धार
1. आचार्य नारायण भट्ट द्वारा रचित 14वीं शताब्दी के एक पुराने धार्मिक ग्रंथ ‘भत्क्तिः वेदांत विलाम’ के अनुनार, ब्रज क्षेत्र में अत्यंत धार्मिक महत्व के 137 पौराणिक वन थे।
2. इन 137 पौराणिक वनों में से 48 वन (12 वग, 12 उपवन, 12 प्रतिवन, 12 अधिवन) का वर्णन किया गया है।
3. इन 137 स्थलों में से 36 को यूपीबीटीवीपी ने इन स्थलों को उनके प्राचीन गौरव में पुनर्जीवित करने के लिए चिन्हित किया था। ये स्थल भक्तों और तीर्थयात्रियों द्वारा परिभ्रमण और पूजनीय हैं।
4. ये स्थल ज्यादातर पी. जूलीफ्त्रोरा (बिलायती बबूल) से आच्छादित थे।
5. यूपीबीटीबीपी और वन विभाग द्वारा इन स्थलों के पारिस्थितिकी पुनरुद्धार के लिए एक योजना तैयार की गई, जिसमें पी. जूलीफ्लोरा के स्थान पर देशी चौड़ी पत्ती वाली प्रजातियों को लगाया गया, ताकि भगवान कृष्ण की प्रिय प्रजातियों से भरे सुंदर वन स्थलों को लाखों तीर्थयात्रियों के लिए विकसित किया जा सके।
6. यह यूपीबीटीवीपी द्वारा व्रज के विकास की समग्र योजना के सबसे महत्वपूर्ण घटकों में से एक है। व्रज के प्रत्येक लता-पता को देवताओं और संतों का अवतार माना जाता है।
7. चूंकि यह क्षेत्र टीटीजेड क्षेत्र में आता है, इसलिए पी. जूलीफ्लोरा के उन्मूलन और देशी प्रजातियों के रोपण के लिए भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय की अनुमति प्राप्त करने के लिए रिट याचिका संख्या 13381/1984 में एक आई.ए. दायर किया गया था।
8. माननीय सीईसी द्वारा क्षेत्रों का दौरा करने के बाद, 12.12.2023 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक अनुकूल आदेश पारित किया गया।
9. आदेश के अनुपालन में, वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून के वैज्ञानिकों के साथ विस्तृत सर्वेक्षण और तकनीकी चर्चा के बाद साइट विशिष्ट योजनाएं (एसएसपी) तैयार की गई। एसएसपी को मंजूरी दे दी गई और भारत सरकार ने इको-रेस्टोरेशन की प्रक्रिया को भी मंजूरी दे दी।
10. रोपित की जाने वाली प्रमुख प्रजातियाँ इस प्रकार होंगी:-
कृष्ण कदंब, तमाल, बरगद (फ़िकस बेंघालेंसिस), पाकड़ (फ़िकस विरेन्स), पीपल, पीलू, मौलश्री, खिरानी एएएम, बेल्, आंवला, बहेड़ा , अर्जुन , पलास आदि।
11. 487 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करने वाली 36 स्थानों को तीन चरणी में अर्थात् 150 हेक्टेयर, 175 हेक्टेयर और 162 हेक्टेयर में लगातार तीन वर्षों में पारिस्थितिकी पुनर्स्थापना की जाएगी। 2 फीट फुटबॉल और 6 फीट चेन लिंक बाड़ लगाने और 5 गाल के रखरखाव का प्रावधान किया गया है ताकि पी. जूलीफ्लोरा वापस न आए।
12. यह ताज ट्रेपेजियम जोन (टीटीजेड) क्षेत्र में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदित पारिस्थितिकी पुनर्स्थापना की पहली परियोजना है।
13. पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन हेतु चिन्हित क्षेत्रों का विवरण इस प्रकार है:-
(ए) वन क्षेत्र (25):- सुनरख (वृंदावन), अहिल्यागंज (मथुरा), धौरेरा (मथुरा), बरोठ बादर (कराह वन), फरह (अप्सरा वन), पीरपुर (वृषभानुपुर), शेरनगर (प्रेम वन), बराल (मयूर वन), रूपनगर (नंद प्राच्छन), अगरवाना (कृष्ण छीपन वन), नंदगांव (नंदगांव), कामर (बिहार वन), चटेन कलां (कोकिलावन), कोटवन (कौटवन), आजहाई (सुरभि वन), अजनौठी (शिक्षा वन), बनेड़ा (नारद बन),, भदीश्वर (ललिता ग्राम), गाजीपुर (संकेत वन), कुरकंडा (गंधर्व), कोयला अलीपुर (ब्रह्म वन), जतीपुरा (विच्युवन), मकीतरा (चंद्रावनी यन), राधाकुंड (राधाकुंड), गोवर्धन गोरवा (गोवर्धन)।
(बी) ग्राम सभा भूमि (11):- मांट मूला (भंडीर वन), मुबारकपुर (महावन), गोकुल (गोकुल), बरसाना (पदर वन), बड़हरा (बछवन माही), कमई (करहला/कमई), आजनोख (अजनोख), तारमी (तालवन), ऊंचागांव (कुमुदवन), सिहोरा (लोहवन), खेड़िया (खिदरबन)।
14. इस परियोजना से प्राचीन वनों को उनके प्राचीन गौरव के अनुरूप पुनर्स्थापित करने के साथ-साथ मृदा संरक्षण, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं, जैव विविधता में वृद्धि, वायु की गुणवत्ता में सुधार, आजीविका को समर्थन और इको-पर्यटन के लाभ भी प्राप्त होंगे।
15. दिनांक 06.05.2025 को उत्तर प्रदेश बृज तीर्थ विकास परिषद के उपाध्यक्ष की अध्यक्षता में सुनरख बन ब्लॉक में पुनर्स्थापना की प्रक्रिया के औपचारिक शुभारंभ के अवसर पर एक क्षेत्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है। इस अवसर पर श्री भीम सेन, एडिशनल पीसीसीएफ, आगरा जोन, आगरा मुख्य अतिथि थे। कार्यशाला में डॉ. अनिल कुमार पटेल, वन संरक्षक, आगरा वृत्त, आगरा, थी एस.बी. सिंह, सीईओ, यूपीबीटीबीपी, श्री रजनीकांत मित्तल, डीएफओ, मथुरा, श्री मुकेश शर्मा, पर्यावरण सलाहकार, यूपीबीटीवीपी और वन विभाग, वन निगम, यूपीबीटीबीपी और प्रशासन के अन्य अधिकारी उपस्थित थे।
श्री शैलजा कांत मिश्र बोले मैं एक बात सार्वजनिक करना चाहता हूं, मेरे गुरु देव ब्रह्मार्षि देवराहा बाबा ने ब्रज की सेवा का आदेश दिया था। उसे पूरा करने का जिम्मा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुझे दिया। 1990 में होली से चार दिन पहले संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी महाराज ने सुनरख वन में एक आयोजन रखा और मुझे बुलाया, मुझसे मुलाकात करते हुए कहा था कि सुनरख वन प्राचीन वृंदावन है। यहीं यमुना किनारे भगवान श्रीकृष्ण ने कालीय नाग का मंथन किया था। महर्षि सौभरि ने कड़ी तपस्या की थी, उन्हीं के नाम पर इस वन का नाम पड़ा है। इसे पुन:स्थापित व्यवस्थित करना है, ये जिम्मेदारी तुम्हें संभालनी है। उस समय एसपी था और मेरे बस की बात नहीं थी। चुप हो गया। लेकिन, अब 2017 में मौका मिला, तो इस वन के सुंदरीकरण का बीड़ा उठाया।
कोई भी काम धीरे से शुरू किया जाए भगवद कृपा से उसके पूरे होने की संभावना बनती है। मैंने 2017 में जिम्मेदारी संभाली तो मैं यहां आया, तो देखा सबकुछ उजड़ चुका है। कोई भी वृक्ष कृष्णकालीन नहीं है। 1990 में हर ओर कृष्णकालीन वृक्ष दिखाई देते थे, लेकिन, 27 वर्ष बाद सब नष्ट नजर आया। अंग्रेज आए और हमारे यहां सभ्यता के रूप में अंग्रेजी छोड़ गए और तमाम विदेशी प्रजातियां यहां समा गईं। जलकुंभी आई, गाजर घास, विदेशी बबूल ने सबकुछ नष्ट कर दिया। 2017 में फोरेस्ट इंस्टीट्यूट से अधिकारियों को बुलाया, तो उन्होंने रिपोर्ट दी कि जब तक विदेशी बबूल खत्म नहंी होगा, तब तक कोई कोई प्रजाति ठहरेगी नहीं। हमने विदेशी बबूल को हटाने की प्रक्रिया शुरू की। बड़ा कठिन था, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा लगे रहो, काम संपन्न होगा।
वृंदावन में बार बार बात होती बंदरों की, समस्या तो है। लेकिन, हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि हमने बंदरों के लिए समस्या खड़ी की है। जंगल में बंदर रहते थे और घने जंगल में पीपल, पाखर, गूगल, पाटर, की नीम कौड़ी जो बंदर खाकर बीज, फल, मुलायम पत्तियों से बंदर अपना पेट भरते थे। लोग कहते हैं फलदार वृक्ष चाहिए। लेकिन, फल आदमी खाता है। बंदर तो यही खाते हैं। हजारों साल से बंदरों का जिस स्थान पर वास था, वहां आदमी पहुंच गया। तो बंदर कहां जाएंगे। उनके लिए यही वृक्ष चाहिए। बंदर कहां जाएंगे। वन विकसित होगा, तो बंदरों की समस्या भी खत्म होगी। अब 1200 एकड़ भूमि पर जब आरंभिक तौर पर कृष्णकालीन वृक्ष लगाएंगे तो चिड़िया, बंदर, हिरन सारे वन्य पशु आकर वास करेंगे। ये पुण्य का कार्य है। हम सोचते हैं अपनी, यदि हमें कृष्णकालीन विरासत की बात करनी है तोसारे वन्य पशुओं का वृक्षावलियों का सोचना होगा। तभी हम उस दिशा में एक कदम ले पायंगे। नहीं तो हम गिट्टी मिट्टी का धर्म ही अपनाते रहेंगे। हमें ब्रज को सिंगापुर नहीं बनाना है, अगर हमें भगवान श्रीृकष्ण कालीन दिशा में जाना है, तो ये छोटा नहीं बड़ा कदम है। वन विभाग का आभार है।
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