December 23, 2024

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नई दिल्ली12अक्टूबर*तहरीर’ संस्था ने सूचना का अधिकार कानून की 16वीं वर्षगाँठ मना जारी किया रिपोर्ट कार्ड.

नई दिल्ली12अक्टूबर*तहरीर’ संस्था ने सूचना का अधिकार कानून की 16वीं वर्षगाँठ मना जारी किया रिपोर्ट कार्ड.

नई दिल्ली12अक्टूबर*तहरीर’ संस्था ने सूचना का अधिकार कानून की 16वीं वर्षगाँठ मना जारी किया रिपोर्ट कार्ड.

सूचना आयोगों की उदासीनता से बिना दांत का बाघ बना सूचना कानून 16 वर्षों में ले चुका है सैकड़ों आरटीआई एक्टिविस्टों की बलि – ‘तहरीर’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय शर्मा का बयान – ‘तहरीर’ संस्था ने सूचना का अधिकार कानून की 16वीं वर्षगाँठ मना जारी किया रिपोर्ट कार्ड.

 

( सूचना का अधिकार दिवस पर विशेष रिपोर्ट ).

 

लखनऊ / 12 अक्टूबर 2021 ………………

12 अक्टूबर 2005 को पूरे देश में लागू हुआ पारदर्शिता का कानून यानि कि सूचना का अधिकार अधिनियम आज 17वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है. आरटीआई एक्ट की 16वीं सालगिरह के अवसर पर यूपी की राजधानी लखनऊ स्थित सामाजिक संगठन ‘तहरीर’ के सदस्यों ने संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय शर्मा की अगुआई में संस्था के राजाजीपुरम कार्यालय में आयोजित एक सादा समारोह में पारदर्शिता और जबाबदेही की जंग में शहीद हो चुके देश भर के सैकड़ों सूचना का अधिकार कार्यकर्ताओं की निःस्वार्थ वीरता को नमन करते हुए श्रद्धा सुमन अर्पित किये और एक्ट के क्रियान्वयन के विभिन्न आयामों पर विस्तृत परिचर्चा की.

 

तहरीर के राष्ट्रीय अध्यक्ष और इंजीनियर संजय शर्मा ने बताया कि गैर-सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब तक देश में 100 से अधिक आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है और 500 से अधिक आरटीआई कार्यकर्ता गंभीर उत्पीड़न का शिकार हो चुके हैं. सूचना का अधिकार कानून को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत हथियार बताते हुए संजय ने कहा कि हालांकि यह अधिकार देश के प्रत्येक नागरिक को प्राप्त है लेकिन आम जनमानस की उदासीनता के कारण ही इस कानून के लागू होने के 16 साल बाद भी देश की पांच फीसदी (5%) से कम आबादी ही इस कानून का प्रयोग कर पाई है जिनमें से ग्रामीण आबादी द्वारा एक्ट के प्रयोग के मामले शहरी आबादी के मुकाबले बहुत कम हैं जबकि आज भी देश की अपेक्षाकृत अधिक आबादी गांवों में ही रह रही है .

 

बताते चलें कि ‘तहरीर’ (पारदर्शिता, जबाबदेही और मानवाधिकार क्रांति के लिए एक पहल ) उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित एक पंजीकृत सामाजिक संस्था है जो लोकजीवन में पारदर्शिता और जबाबदेही की सुनिश्चितता स्थापित करने के साथ-साथ मानवाधिकारों के संरक्षण के क्षेत्रों में विगत कई वर्षों से कार्यशील है . संस्था जमीनी स्तर पर कार्य करते हुए सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के विरुद्ध व्यापक स्वर मुखरण हेतु सतत संघर्षरत एवं कटिबद्ध है. संस्था द्वारा भ्रष्टाचार विरोधी हेल्पलाइन 7991479999, लीगल हेल्पलाइन 8004560000 और आरटीआई हेल्पलाइन 9451036633 संचालित हैं जिनके माध्यम से अब तक असंख्य पीड़ितजन निःशुल्क राय लेकर अपनी समस्याओं का समाधान करा चुके हैं.

 

 

 

कार्यक्रम में बोलते हुए संजय ने कहा कि भारत का आरटीआई कानून लागू होते समय विश्व रैंकिंग में दूसरे स्थान पर था लेकिन देश भर के सूचना आयोगों की लचर कार्यप्रणाली के चलते भारत इस विश्व रैंकिंग में लगातार नीचे गिरता चला आ रहा है जो चिंताजनक है.

 

संजय ने कहा कि आरटीआई एक्ट का क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पाने के लिए हालाँकि आरटीआई एक्ट के क्रियान्वयन के सभी स्टेकहोल्डर्स यानि कि आम जनता, लोक प्राधिकारी, सूचना आयोग, सरकार आदि सभी जिम्मेवार हैं किन्तु वर्तमान में सबसे खराब स्थिति देश भर के सूचना आयोगों की हो गई है जो अब खुद ही भ्रष्टाचार और भाई-भातीजाबाद की गिरफ्त में आ चुके हैं. बकौल संजय सूचना आयोगों की उदासीनता के कारण ही बिना दांत का बाघ बना सूचना कानून विगत 16 वर्षों में सैकड़ों आरटीआई एक्टिविस्टों की बलि ले चुका है.

 

यूपी के मुख्य सूचना आयुक्त भावेश कुमार द्वारा खुले सुनवाई कक्ष में आरटीआई एक्ट की धारा 20 का उल्लंघन करने के मामलों में दण्ड नहीं लगाने की सार्वजनिक घोषणा करने के कृत्य की सार्वजनिक भर्त्सना करते हुए संजय ने भावेश सरीखे आयुक्तों को आरटीआई एक्टिविस्टों की हत्याओं और उत्पीडन का सीधे-सीधे जिम्मेवार बताया है. बकौल संजय आज देश में आरटीआई एक्ट की धारा 20 के उल्लंघन के महज 5 फीसदी मामलों में ही दण्ड लगाया जा रहा है जो चिंताजनक है. बताते चलें कि आरटीआई एक्ट के तहत मांगी सूचना अधिकारी को 30 दिन के भीतर देना होता है. उसके बाद सूचना में देरी होने पर प्रतिदिन 250 रुपये और अधिकतम 25,000 रुपये जुर्माने का प्रविधान है.

 

संजय ने कहा कि लोक प्राधिकरणों द्वारा सही जानकारी देने में गैर-अनुपालन, नागरिकों के प्रति जन सूचना अधिकारियों के शत्रुतापूर्ण दृष्टिकोण,जानकारी छिपाने के लिए अधिनियम के प्रावधानों की गलत व्याख्या, सार्वजनिक हित क्या है, इस पर स्पष्टता की कमी, निजता का अधिकार और सूचना आयुक्तों के खाली पड़े पद आरटीआई अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन के रास्ते में मुख्य बाधाएं हैं.

 

 

आरटीआई एक्ट को नागरिकों और सरकारों के बीच पारस्परिक पंहुच के लिए एक पुल जैसा बताते हुए संजय ने निजी स्वार्थ के लिए आरटीआई एक्ट का दुरुपयोग करने वाले लोगों की भर्त्सना भी की और सरकार से आरटीआई कार्यकर्ताओं को सुरक्षा और संरक्षण देने की नीति के साथ-साथ एक्ट का दुरुपयोग रोकने के लिए भी नीति बनाने की मांग की है. संजय ने बताया कि एक्ट के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए संस्था के माध्यम से देश के राष्ट्रपति,प्रधान मंत्री तथा सभी प्रदेशों के राज्यपाल व मुख्यमंत्रियों को 10 सूत्रीय ज्ञापन भेजा जाएगा ताकि एक्ट विश्व रैंकिंग में पहले स्थान पर आ सके.

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