झांसी 22 नवंबर। बुंदेलखंड की संस्कृति तथा विधाओं को पढ़ने एवं उस पर रिसर्च करने की आज की पीढ़ी के लिए प्रबल आवश्यकता है ।
अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के उपाध्यक्ष राज्य मंत्री हरगोविंद कुशवाहा ने बताया कि बुंदेलखंड की संस्कृति से बढ़कर कहीं कोई संस्कृति नहीं है। जन्म से लेकर मृत्यु तक के 16 संस्कारों का गीतों के द्वारा अनुवाद करते हुए कहा कि बुंदेलखंड की ऐसी विशाल संस्कृति है जिसमें कुछ भी छोड़ा नहीं गया है । जिन्होंने बुंदेलखंड की संस्कृति के अध्ययन पर प्रवेश कर लिया और उसको पढ़ लिया उसको और अन्य कहीं किसी चीज के पढ़ने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। तपस्वी, वेद पुराण लिखने वाले हुए उन सभी की यह भूमि रही है। बड़े-बड़े महर्षि महापुरुषों ने यहां जन्म लिया। इसी के साथ उन्होंने कहा कि शास्त्रीय संगीत एवं बुंदेली संगीत का ऐसा समन्वय है कि कोई भी गीत बिना राग रागिनी या ताल के नहीं गाया जा सकता है इसको युवा पीढ़ी को समझने की बहुत जरूरत है ।उन्होंने बताया कि कालपी, एरच, गरौठा तहसील के झारखंड आदि पर रिसर्च किया जाए। उन्होंने ग्राम खड़ौरा निवासी संगीत के साधक सितार वादक पंडित परशुराम पाठक, की सितार के साथ एवं पूर्व प्राचार्य साहित्यकार कवि नारायणदास बरसैया, गुरसराय की पंक्तियों को गाया करते थे वह आज विलुप्त होती जा रही है। ग्राम खड़ौरा के
परसोकर धाम पर विगत 62 साल से चल रहे होली के कार्यक्रम को भी उन्होंने सराहा। इसी के साथ खैर इंटर कॉलेज गुरसरांय तथा सर्वोदय विचारक समाजसेवी पं कृष्णचंद्र पालीवाल गुरसरांय के विचारों से भी उन्होंने अपनी यादें ताजा की। उन्होंने बताया कि गांव से लेकर शहर तक जितनी भी बुंदेलखंड की संस्कृति की परंपराएं हैं उनको लोग पढ़ें एवं जाने जिस से नई पीढ़ी बुंदेली संस्कृति से परिचित होती रहे इस मौके पर प्रसिद्ध सितार वादक पं सरजू शरण पाठक गुरसरांय मौजूद रहे।
झांसी से सुरेन्द्र द्विवेदी की रिपोर्ट यूपी आजतक।
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