झांसी मऊरानीपुर12अप्रैल*भदरवारा गांव में विराजमान आदि शक्ति मां भद्रकाली। आलौकिक शक्ति माँ भद्रकाली का वर्णन
बुन्देलखण्ड क्षेत्र के ख्याति प्राप्त प्राचीन मन्दिरों में से एक मन्दिर मावली माता के नाम से भदरवारा गांव में स्थित है। जो झाँसी जिले से 75 तथा मऊरानीपुर से 8 किलोमीटर दूरी पर झांसी खजुराहो राष्ट्रीय राजमार्ग फोरलेन से तीन किलोमीटर अंदर स्थापित है। भदरवारा ग्राम से पहले एक नया प्रमुख पताका द्वार बना है जिस पर अंकित है “प्रविस नगर कीजै सब काजा, हृदय राखि कौशलपुर राजा”। बने पताका तोरण द्वार पर माँ अष्ट भुजाधारी, लक्ष्मी जी, सरस्वती जी की देव प्रतिमायें स्थापित है। मुख्य द्वार पर (जय माँ भद्रकाली शक्ति पीठ भदरवारा अंकित है) मुख्य सड़क मार्ग से माँवली माता के मन्दिर से गाँव तक डामरीकृत सड़क और गाँव के बाहर से मन्दिर तक सीसी रोड के रास्ते पहुँचते है। जिसमें मन्दिर से कुछ कदम पहले पूरब दिशा में कई बड़े, छोटे मन्दिर बने हुए है जिसमें हनुमानजी, भोलेनाथ के साथ अन्य देवी, देवताओं के मन्दिर व चबूतरे भी बने हुए है। प्राचीन भद्रकाली मंदिर के पहले बने तृतीय पताका द्वार पर एक कुंतल से अधिक का घण्टा लगा हुआ है जिसे बजाकर श्रद्धालुजन मंदिर प्रांगण में प्रवेश करते है। चार वर्ष पूर्व मंदिर कमेटी द्वारा मंदिर का पुनः उद्धार करा देने से मावली माता मंदिर और अधिक रुप से मनमोहक लगने लगा है। प्रांगण में अनेक देवी, देवताओं की प्रतिमायें विराजमान है जिसमें सर्व प्रथम प्रांगण के बीचों बीच शंकर जी का मंदिर स्थापित है, बगल में यज्ञ शाला, इसके बाद बाद महाबलि हनुमान जी, माँ अन्जनी का मन्दिर बना हुआ है। दूर दराज से आने वाले भक्तजनों को ठहरने के लिए एक बड़ी दालान बनी हुई है, और उसी के बाजू में पूरव मुखी गणेश भगवान, ठीक बगल में आदि शक्ति मां भद्रकाली का मंदिर स्थापित है। दायीं ओर विष्णु भगवान का तथा बगल में सन्तोषी माता, दुर्गा शक्ति का मन्दिर है। धर्मप्रेमी बन्धुओं द्वारा भद्रकाली मंदिर को माँवली माता के नाम से भी जाना जाता है। वही मंदिर के अंदर व बाहर पुराने पीपल, अशोक, नीम, बरगद के छाया वृक्ष लगे हुए है। मंदिर सेवा समिति द्वारा पेयजल व्यवस्था के लिए पानी की टंकी तथा एक हैण्डपम्प लगावाया गया है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में स्थित प्राचीन मन्दिरों में से एक मन्दिर भदरवारा ग्राम में भद्रकाली के नाम से जाना जाता है जो अपनी आलौकिक शक्ति के कारण पिछले कई वर्षों से हिन्दू समाज की आस्था का प्रतीक है। प्राचीन मंदिर के बारे में ग्राम के जानकारों का व्याख्यान है कि यहाँ सच्चे मन से आने वाले हर भक्त की मनोकामना की पूर्ति माँ भद्रकाली अवश्य पूर्ण करती है। माँ के दरबार में क्या बडा क्या छोटा सभी बराबर माने जाते है। कोई कितना भी दुःख का मारा हो वह माँ के दर्शन पाकर कृतार्थ हो जाता है और सच्चे मन से जो भी भक्त मुराद मांगता है तो माता रानी उसे कभी खाली हाथ नही लौटाती है। जिससे भारत देश के कोने-कोने से माँवली माता के दर्शन के लिए भक्तजन आकर मां के चरणों में शीश झुकाते है। जिसमें कहा गया है कि तमन्ना लाख करते है पर तमन्ना अधूरी रहती है, पर माँ के दरवार में वही लोग आते है जिन पर मां भद्रकाली की कृपा होती है। माता के दरबार में अनेक भक्तजन अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए छोटे से लेकर बड़ों उपहारों को समर्पित करने की भावना प्रकट करते है जिससे माँ अपने भक्तजनों की पुकार सुनती है। मावली माता के दरबार से कोई भी जनमानस आज तक खाली हाथ नही लौटा है। जानकारों का मानना है कि माँ भद्रकाली का अवतार हजारों वर्ष पहले एक दिव्य शक्ति के रूप में हुआ था जिसकी महिमा अपार है आज तक किसी भी व्यक्त्ति को यह पता नही है कि माँ का अवतरण इस जगह किस तरह से हुआ भदरवारा गाँव के बुजुर्ग भी यह बताने में असमर्थ है। माँ की प्रत्यक्ष तीन कलायें देखकर श्रद्धालुजन माँ की अपार महिमा का गुणगान करते हैं। माँवली माँ आज भी अपने भक्तजनों को अपनी प्रत्यक्ष तीन कलाओं के दर्शन देकर कृतार्थ करती हैं। जिसमें ब्रम्हमुहूर्त से लेकर सुबह की आरती तक कन्या ,दोपहर में मंगलकारी महिला और शाम को वृद्ध रूपी महिला की तीन कलायें आज भी दिखाती है। माँ की आरती सुबह एवं शाम को साढे सात होती है जिसमें ग्राम के साथ-साथ क्षेत्र के लोग भी अधिक शामिल होते है। मन्दिर के प्रधान पुजारी विजय तिवारी एवं अजय तिवारी द्वारा मखमली वस्त्र से माँ का श्रंगार किया जाता है। माँ के दरबार में आने वाले हर भक्त को माता के दर्शन सहज रूप से प्राप्त हो जाते है। महा भारत ग्रन्थ में एक ऐतिहासिक वर्णन है कि एक बार जब पांडवों पर विप्पती आयी तो सभी पांडव जंगलों में छुपते फिर रहे थे। भटकते-भटकते भदरवारा के समीप वाले जंगल में आए और अपनी रक्षा के लिए माँ की पूजा अर्चना की तो सनसनाहट हुई और माँ प्रकट हो गई। माँ ने कहा कि आप सभी मेरे आगे-आगे चलेंगे और मैं पीछे-पीछे चलूँगी। तुम लोग पीछे मुड़कर नहीं देखना अगर देखोगे तो मैं वहीं रूक जाऊँगी और वहीं से में रक्षा करूंगी। पांडवों ने माँ की बात को स्वीकारते हुए सभी पांडव आगे-आगे चलने लगे और पीछे-पीछे माँ चल रहीं थी कि अचानक माता को घनघोर जंगल मिला तो पांडवों को संसय हुआ कि जंगल की घनघोर झाडियों में माँ की चुनरिया कही अटक ना जाए तभी पांडवों ने पीछे मुडकर देखा तो आदि शक्ति मां मॉवली पेड के नीचे ठहर गयी और पांडवों को आर्शीवाद स्वरूप वरदान देकर कहा कि तुम लोग केदारेश्वर पहाड़ वाले शिवजी मन्दिर में जाओ में तुम्हारी यही से सुरक्षा करुंगी। तभी से जनमानस भदरवारा ग्राम को भद्रकाली के नाम से भी जानने लगे और धर्म प्रेमी बन्धु सिद्ध मूर्ति की पूजा के लिए दूर दराज से आने लगे और करीब नब्बे वर्षों से लगातार यहाँ चैत्र नवरात्रि की नौ वीं तिथि से भव्य मेले का आयोजन शुरू हुआ जो आज भी चल रहा है। कीर्ति शेष मेले में अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम होते है। नवमी तिथि को भगवान श्रीरामचन्द्र जी का जन्मोत्सव रामनवमी पर्व के रूप में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। जिसमें रात्रि में नौ देवी देवताओं तथा दसवाँ विमान अम्बे माता भद्रकाली का पूरे ग्राम में निकाला जाता है। उसी दिन को जवारों का विसर्जन भी किया जाता है चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्ण मासी तिथि पर विशाल ताड़का वध का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है जिसमें हाथी, घोड़े मिलकर ताड़का का वध करते है ताड़क वध का आनन्द लेने के लिए दूर दूर से दर्शाथी है। इससे पहले ताड़का के पुतले का निर्माण एक माह पहले कुशल कारीगरों द्वारा किया जाता है। ताड़का वध का मतलब असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है। मेले की सुरक्षा व्यवस्था के लिए एक सेवा समिति हर वर्ष गठित की जाती है। जिसमें विशेष तौर पर नवयुवकों को शामिल किया जाता है। माँ भद्रकाली सेवा समिति का मुख्य उद्देश्य मन्दिर की सुरक्षा तथा साफ सफाई है। और समय-समय पर ग्राम के बुद्धिजीवियों से भी विशेष सहयोग लिया जाता है। इसी के चलते आज मेला एक ऐतिहासिक रूप ले चुका है मेले का मुख्य आकर्षण नौटंकी का मंचन होता है। जिससे मऊरानीपुर कोतवाली पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था भी एक सहानीय होती है। इस वर्ष लोकसभा चुनाव की आचार संहिता के चलते चुनाव आयोग के नियमों का पालन कमेटी द्वारा किया जायेगा।
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