जोधपुर10अक्टूबर* सौतन और कफन*प्रेमचंद रंग महोत्सव के दूसरे दिन हुआ दो नाटकों का सफल मंचन
शहर के टाउन हॉल में प्रेमचंद रंग महोत्सव के दूसरे दिन नाट्यांश नाटकीय एवं प्रदर्शनीय कला संस्थान उदयपुर की ओर से दो लघु नाटकों सौत एवं कफ़न का स्मरणीय मंचन अमित श्रीमाली के सधे हुए निर्देशन में किया गया. मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी सौत नारी हृदय के अनेक भावों को सामने लाती है। स्वामित्व, अधिकार, ईर्ष्या, जलन, दुःख, गुस्सा, दया आदि भाव इस कहानी में उभरते दिखाई पड़ते है। पाई-पाई जोड़कर बनाई गृहस्थी जब उजड़ने लगती है, जब अपने घर व अपने पति पर से स्त्री का स्वामित्व खोने लगता है, तो टूट कर बिखरने के बावजूद स्त्री अपने को इतना सक्षम बनाने की ताकत रखती है कि न केवल स्वयं का जीवनयापन कर सके बल्कि अपने पर आश्रित लोगों को भी सम्भाल सके। महिला अपने में पूर्ण और स्वतंत्र है। यही बात मुंशी जी की इस कहानी में दिखाई देती है। सौत नाटक में रेखा सिसोदिया पहली पत्नी राजिया के, आस्था नागदा सौत दासी के, महेश कुमार जोशी पति रामू के अहम् किरदारों में नज़र आये. अन्य चरित्रों में नेहा श्रीमाली, पियूष गुरुनानी जंचे. मंच निर्माण अगस्त्य हार्दिक नागदा, वेश भूषा व रूप सज्जा रेखा सिसोदिया, संगीत संयोजन महेश कुमार जोशी, राघव गुर्जरगौड़ व संगीत संचालन मोहम्मद रिजवान मंसुरी, रंगदीपन व निर्देशन अमित श्रीमाली का था.
आकांक्षा संस्थान के सचिव और समारोह के संयोजक डॉ. विकास कपूर ने दोनों नाटकों के निर्देशक अमित श्रीमाली को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित सम्मानित किया. मध्यान्तर के बाद मंचित कहानी कफ़न सामाजिक व्यवस्था की एक ऐसी कहानी है जो मेहनत के प्रति आदमी को हतोत्साहित करती है, क्योंकि उसे मेहनत की कोई सार्थकता दिखायी नहीं देती है। यह कहानी अत्यंत सुगठित एवं सुव्यवस्थित ढंग से मानव मनोवैज्ञानिक धरातल पर उकेरी गई है। इस कहानी की मूल संवेदना यह है कि आधुनिक आर्थिक विषमता, बेरोजगारी और निकम्मी समाज-व्यवस्था के कारण व्यक्ति कितना स्वार्थी, कामचोर और जड़ हो सकता है। कहानी के मुख्य किरदार, पिता और पुत्र अपने जीवन के प्रति इतने उदासीन हो जाते हैं की दोनों अपनी मृतक पुत्रवधू और पत्नी के कफ़न के लिए एकत्र चन्दे के धन को शराब पीने में व्यय कर डालते हैं और अन्त में अपने इस कुकृत्य का समर्थन करने के लिए समाज की रीति-रिवाज को कोसते हुए कहते हैं कि – ‘‘कैसा बुरा रिवाज है कि जिसे जीते जी, तन ढकने को भले चीथड़ा न मिले उसे मरने पर कफन चाहिए, वो भी नया।’’ इस कहानी के माध्यम से वास्तविकता और समाज के आडम्बर के बीच का संघर्ष दिखाया गया है। कफ़न नाटक में राघव गुर्जरगौड़ बाप घीसू के, अगस्त्य हार्दिक नागदा बेटा माधव के अहम् किरदारों में नज़र आये. मंच निर्माण अशफ़ाक नूर खान, संगीत संयोजन महेश कुमार जोशी, राघव गुर्जरगौड़ व रंगदीपन मोहम्मद रिजवान मंसुरी, संगीत संचालन व निर्देशन अमित श्रीमाली का रहा.
नाटक के बाद में आज भी दर्शकों ने नाटक के कलाकारों और निर्देशक से नाटक, कहानी, चरित्र व अभिनय के बारे में सवांद किया, जो दर्शकों को बांधे रखती है और सोचने पर विवश करती है. एक साथ दो नाटकों के मंचन के बाद भी कलाकारों ने दर्शकों को बांधे रखा और मुंशी जी की याद को पुन: जीवित कर दिया.
कल रंग महोत्सव के समापन दिवस पर सेतु सांस्कृतिक केंद्र वाराणसी की नाट्य प्रस्तुति बूढ़ी काकी का मंचन सलीम राजा के निर्देशन में किया जायेगा.जोधपुर
‘* सौतन और कफन*
प्रेमचंद रंग महोत्सव के दूसरे दिन हुआ दो नाटकों का सफल मंचन
शहर के टाउन हॉल में प्रेमचंद रंग महोत्सव के दूसरे दिन नाट्यांश नाटकीय एवं प्रदर्शनीय कला संस्थान उदयपुर की ओर से दो लघु नाटकों सौत एवं कफ़न का स्मरणीय मंचन अमित श्रीमाली के सधे हुए निर्देशन में किया गया. मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी सौत नारी हृदय के अनेक भावों को सामने लाती है। स्वामित्व, अधिकार, ईर्ष्या, जलन, दुःख, गुस्सा, दया आदि भाव इस कहानी में उभरते दिखाई पड़ते है। पाई-पाई जोड़कर बनाई गृहस्थी जब उजड़ने लगती है, जब अपने घर व अपने पति पर से स्त्री का स्वामित्व खोने लगता है, तो टूट कर बिखरने के बावजूद स्त्री अपने को इतना सक्षम बनाने की ताकत रखती है कि न केवल स्वयं का जीवनयापन कर सके बल्कि अपने पर आश्रित लोगों को भी सम्भाल सके। महिला अपने में पूर्ण और स्वतंत्र है। यही बात मुंशी जी की इस कहानी में दिखाई देती है। सौत नाटक में रेखा सिसोदिया पहली पत्नी राजिया के, आस्था नागदा सौत दासी के, महेश कुमार जोशी पति रामू के अहम् किरदारों में नज़र आये. अन्य चरित्रों में नेहा श्रीमाली, पियूष गुरुनानी जंचे. मंच निर्माण अगस्त्य हार्दिक नागदा, वेश भूषा व रूप सज्जा रेखा सिसोदिया, संगीत संयोजन महेश कुमार जोशी, राघव गुर्जरगौड़ व संगीत संचालन मोहम्मद रिजवान मंसुरी, रंगदीपन व निर्देशन अमित श्रीमाली का था.
आकांक्षा संस्थान के सचिव और समारोह के संयोजक डॉ. विकास कपूर ने दोनों नाटकों के निर्देशक अमित श्रीमाली को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित सम्मानित किया. मध्यान्तर के बाद मंचित कहानी कफ़न सामाजिक व्यवस्था की एक ऐसी कहानी है जो मेहनत के प्रति आदमी को हतोत्साहित करती है, क्योंकि उसे मेहनत की कोई सार्थकता दिखायी नहीं देती है। यह कहानी अत्यंत सुगठित एवं सुव्यवस्थित ढंग से मानव मनोवैज्ञानिक धरातल पर उकेरी गई है। इस कहानी की मूल संवेदना यह है कि आधुनिक आर्थिक विषमता, बेरोजगारी और निकम्मी समाज-व्यवस्था के कारण व्यक्ति कितना स्वार्थी, कामचोर और जड़ हो सकता है। कहानी के मुख्य किरदार, पिता और पुत्र अपने जीवन के प्रति इतने उदासीन हो जाते हैं की दोनों अपनी मृतक पुत्रवधू और पत्नी के कफ़न के लिए एकत्र चन्दे के धन को शराब पीने में व्यय कर डालते हैं और अन्त में अपने इस कुकृत्य का समर्थन करने के लिए समाज की रीति-रिवाज को कोसते हुए कहते हैं कि – ‘‘कैसा बुरा रिवाज है कि जिसे जीते जी, तन ढकने को भले चीथड़ा न मिले उसे मरने पर कफन चाहिए, वो भी नया।’’ इस कहानी के माध्यम से वास्तविकता और समाज के आडम्बर के बीच का संघर्ष दिखाया गया है। कफ़न नाटक में राघव गुर्जरगौड़ बाप घीसू के, अगस्त्य हार्दिक नागदा बेटा माधव के अहम् किरदारों में नज़र आये. मंच निर्माण अशफ़ाक नूर खान, संगीत संयोजन महेश कुमार जोशी, राघव गुर्जरगौड़ व रंगदीपन मोहम्मद रिजवान मंसुरी, संगीत संचालन व निर्देशन अमित श्रीमाली का रहा.
नाटक के बाद में आज भी दर्शकों ने नाटक के कलाकारों और निर्देशक से नाटक, कहानी, चरित्र व अभिनय के बारे में सवांद किया, जो दर्शकों को बांधे रखती है और सोचने पर विवश करती है. एक साथ दो नाटकों के मंचन के बाद भी कलाकारों ने दर्शकों को बांधे रखा और मुंशी जी की याद को पुन: जीवित कर दिया.
कल रंग महोत्सव के समापन दिवस पर सेतु सांस्कृतिक केंद्र वाराणसी की नाट्य प्रस्तुति बूढ़ी काकी का मंचन सलीम राजा के निर्देशन में किया जायेगा.
रिपोर्टर चेतन चौहान यूपी आजतक न्यूज़ जोधपुर से
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