जयपुर11मार्च25*13-साल की रेप पीड़ित 7 महीने की प्रेग्नेंट, अबॉर्शन मंजूर:राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा- अगर डिलीवरी के लिए मजबूर किया तो वह जिंदगीभर तकलीफ झेलेगी..!!*
*जयपुर*
राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बेंच ने 13 साल की रेप पीड़ित को 7 महीने की प्रेग्नेंसी में गर्भपात (अबॉर्शन) कराने की अनुमति दे दी है। जस्टिस सुदेश बंसल की अदालत ने अपने आदेश में कहा- अगर पीड़ित को डिलीवरी के लिए मजबूर किया गया तो उसे जीवनभर तकलीफ का सामना करना पड़ेगा। इसमें बच्चे के भरण-पोषण से लेकर अन्य मुद्दे भी शामिल हैं।
कोर्ट ने ये भी कहा कि बच्चे को जन्म देने से पीड़ित के मानसिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचने की आशंका है। इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अदालत ने महिला चिकित्सालय सांगानेर (जयपुर) की अधीक्षक को निर्देश दिया कि वे मेडिकल बोर्ड से नाबालिग लड़की के गर्भपात कराने की व्यवस्था करें।
कोर्ट ने कहा कि अगर भ्रूण जीवित मिलता है तो उसे जिंदा रखने के सारे इंतजाम किए जाएंगे। भविष्य में राज्य सरकार के खर्च पर भ्रूण का पालन-पोषण किया जाएगा। यदि भ्रूण मृत पाया जाता है, तो उसके टिश्यू डीएनए रिपोर्ट के लिए स्टोर किए जाएंगे।
*अबॉर्शन के लिए माता-पिता सहमत थे*
पीड़ित लड़की की वकील सोनिया शांडिल्य ने बताया- पीड़ित 27 हफ्ते 6 दिन (7 महीने) की गर्भवती है। उसके माता-पिता भी गर्भपात कराना चाह रहे थे। हमने कोर्ट को बताया कि ऐसे कई मामले हैं, जहां हाईकोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट ने 28 हफ्ते (7 महीने) की प्रेग्नेंट को भी अबॉर्शन की अनुमति दी है।
पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने तीन एक्सपर्ट के मेडिकल बोर्ड से पीड़ित की जांच करके रिपोर्ट देने के निर्देश दिए थे। मेडिकल बोर्ड ने 8 मार्च को रिपोर्ट दी थी। इसमें कहा गया था कि अबॉर्शन में हाई रिस्क है, लेकिन इसे कराया जा सकता है।
हमने कोर्ट से कहा कि पीड़ित बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के अनुसार, रेप के कारण प्रेग्नेंसी से होने वाली पीड़ा को गर्भवती महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर माना जाएगा।
दिसंबर 2024 में एक अन्य मामले में हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच रेप पीड़ित के मामले में गाइडलाइन जारी करने की मंशा जता चुकी है। बेंच ने कहा था- मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 में साफ कहा गया है कि 24 हफ्ते की प्रेग्नेंसी से पहले अबॉर्शन के लिए अदालत की अनुमति की जरूरत नहीं होती। 24 हफ्ते के गर्भ के बाद अदालत से अनुमति लेनी होती है।
यह भी कहा गया था कि रेप विक्टिम्स को उनके अधिकारों के बारे में बताया नहीं जाता। ऐसे में बड़ी संख्या में अदालत में याचिकाएं दायर होती हैं। चाहे वह बालिग हो या नाबालिग। अधिकतर महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हैं।
खासतौर पर यौन उत्पीड़न की शिकार नाबालिग को पुलिस और संबंधित एजेंसी उनके अधिकार के बारे में नहीं बताती हैं। इसके चलते उन्हें न चाहते हुए भी मजबूरी में बच्चे को जन्म देना पड़ता है। ऐसे में अब अदालत इस मामले में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी करेगी। इस मामले में रेप पीड़ित 31 सप्ताह की गर्भवती थी। कोर्ट ने गर्भपात की अनुमति नहीं दी थी।
*प्रेग्नेंसी अबॉर्शन का नियम क्या कहता है?*
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट के तहत, किसी भी शादीशुदा महिला, रेप विक्टिम, दिव्यांग महिला और नाबालिग लड़की को 24 हफ्ते तक की प्रेग्नेंसी अबॉर्ट करने की इजाजत दी जाती है। 24 हफ्ते से ज्यादा प्रेग्नेंसी होने पर मेडिकल बोर्ड की सलाह पर कोर्ट से अबॉर्शन की इजाजत लेनी पड़ती है। MTP एक्ट में बदलाव साल 2020 में किया गया था। उससे पहले 1971 में बना कानून लागू होता था।
More Stories
पूर्णिया बिहार 12 मार्च 25*कुम्हार, ततमा एवं अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग सदन में उठाया :विजय खेमका ।
लखनऊ11मार्च25*यूपीआजतक न्यूज चैनल पर कुछ महत्वपूर्ण खबरें
सीतापुर11मार्च25*सीतापुर में दिन दहाड़े गोली मारकर पत्रकार राघवेंद्र की हत्या।