सहारनपुर08अप्रैल24*भारी भरकम किताबों तले दबा बचपन—*
*▶️इंडिया डाँन /बेबाक खबर तेज असर-*
*▶️बच्चों की शिक्षा व उनके उज्जवल भविष्य के लिए उधार व कर्ज एवं खुद का खून भी बेचना पड़े तो वह पीछे नहीं हट रहें अभिभावक..!!*
*▶️प्राइवेट स्कूलों की हो रही मनमानी पर क्यों नही लगा पा रही लग़ाम..?*
*▶️अभिभावकों को स्कूलों व पुस्तक विक्रेताओं की मनमानी रोकने के लिए होना होगा एकजुट..!!*
*▶️बढ़ती मंहगी शिक्षा के कारणों से बहुत सारे बच्चे स्कूली पढ़ाई बीच में ही छोड़ रहे हों तो यह सोचने की जरूरत कि नीतियां बनाने और उन्हें अमल में लाने के तौर-तरीकों में क्या खामी..!!*
*▶️अगर बच्चे शिक्षा माफियाओं के कारण स्कूल नही जा पा रहें तो समूचे सरकारी तंत्र की विफलता.!!*
*✅✍️देश में शिक्षा की सूरत में सुधार के लिए समय-समय पर की जाने वाली तमाम कवायदों के बावजूद हालत यह है कि बहुत सारे माता पिता अपने बच्चे को बीच में पढ़ाई छुड़वाने पर मजबूर हो जाते हैं! खासतौर पर जब किसी राज्य में संसाधनों की कमी न हो फिर भी बढ़ती मंहगी शिक्षा के कारणों से बहुत सारे बच्चे स्कूली पढ़ाई बीच में ही छोड़ रहे हों तो यह सोचने की जरूरत है कि नीतियां बनाने और उन्हें अमल में लाने के तौर-तरीकों में क्या खामी है!एक आम आदमी अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए कैसे कैसे पापड़ बेलता है वह उसको ही पता होता है क्योंकि उसकी सैलरी कभी बढ़ती नहीं है!और खर्चे समय के अनुसार बढ़ते जाते हैं!अब तो शिक्षा भी बहुत ज्यादा महंगी होती जा रही है स्कूल प्रबंधक हर साल फीस में बढ़ोतरी करते हैं और आमजन का जीना मुहाल करते है!लेकिन सरकार की ओर से प्राइवेट स्कूलों की हो रही मनमानी पर कभी भी अंकुश नहीं लगाया जाता है! लेकिन बेचारा अभिभावक क्या करें उसको तो अपने बच्चों की शिक्षा के लिए व उनके उज्जवल भविष्य के लिए उधार व कर्ज एवं खुद का खून भी बेचना पड़े तो वह पीछे नहीं हटता है!एक बार फिर नया सत्र शुरू होते ही अभिभावकों की परेशानी बढ़ जाती है एक से दो माह की फीस के साथ स्कूलों में डेवलपमेंट फीस के नाम पर ली जाने वाली मोटी रकम भरनी है तो कॉपी-किताब भी खरीदनी है कॉपी- किताब का सेट इतना महंगा है कि उसे खरीदने में अभिभावकों के पसीने निकल जा जाते हैं कई निजी स्कूलों में तो पहली से लेकर आठवीं कक्षा की किताबों का सेट तीन से आठ दस हजार रुपये पड़ रहा है! उधर सरकार व प्रशासन और शिक्षा विभाग इस लूट पर चुप्पी साधे हुए नजर आ रहा है! इन दिनों सभी पुस्तक विक्रेताओं के यहां लंबी लंबी लाइनें लग रहीं हैं।अगर पुस्तक विक्रेताओं व स्कूल फीस पर सरकार का नियंत्रण होगा तो किसी अभिभावक को कोई परेशानी नहीं होगी बच्चे भी अच्छे से पढ़ सकेंगे उनका भविष्य भी बनेगा!एक तरफ भारी भरकम फीस के अभाव में कई बच्चे बड़े स्कूलों का मुंह तक नहीं देख पाते हैं ऐसे में उन बच्चों के बारे में भी सरकार को सोचने की जरूरत है!फीस की सीमा निर्धारित होनी चाहिए लेकिन इससे पहले अभिभावकों को आगे आना होगा! जब व एकजुट रहेंगे तभी अपनी समस्या उठा सकेंगे और उसके समाधान के लिए दवाब बना सकेंगे! बढ़ती फीस व पुस्तक विक्रेताओं को लेकर अभिभावक समस्या की बात तो करते हैं लेकिन आवाज बुलंद करने की बात होती है तो अधिकतर लोगों के पास समय या व लोग सामने नहीं आ पाते हैं आखिर यह उनकी सालों भर की समस्या है इसके लिए उन्हें आगे आना ही होगा और सरकार को भी इस पर गंभीरतापूर्वक ध्यान देना चाहिए!हम लोग कई सालों से सुन रहे हैं कि सरकार प्राइवेट स्कूलों की फीस बढ़ाने पर कोई कानून लेकर आने वाली है लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो पाया है अगर ऐसा होता है तो अच्छी बात होगी इससे सभी को फायदा होगा खासकर गरीबवर्ग व मध्यमवर्ग इससे काफी परेशान है! उसके कई तरह के खर्चे होते हैं फिर उसमें स्कूल की फीस भी होती है वह भी बढ़ी हुई होती है नहीं देने पर स्कूल से निकालने का नोटिस आ जाता है इससे बचने के लिए अभिभावक कहीं से भी उधार लेकर फीस भर देते हैं उसके बाद व कर्ज में डूबे रहते हैं सरकार को इस और ध्यान देना चाहिए कि प्राइवेट स्कूल की फीस कम होनी चाहिए जिससे कि देश का गरीब हो मीडियम वर्ग अपने बच्चों को उच्चशिक्षा दिला सके हैं और वह बच्चा अपना भविष्य बना सकें!अब अगर महंगी शिक्षा के कारण व अन्य परिस्थितियों की वजह से अगर बच्चे स्कूली पढ़ाई बीच में छोड़ रहे हैं तो एक तरह से यह समूचे सरकारी तंत्र की विफलता है!इसमें विकास में असंतुलन की वजह से एक ऐसा सामाजिक तबका खुद को इस बात के लिए लाचार पा रहा है कि वह अपने बच्चों को स्कूल में बिना बाधा के पढ़ा-लिखा सके।
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