नई दिल्ली08अप्रैल25*निजीकरण का तमाशा : अडानी का स्वर्ण युग, जनता का सवाल*
नई दिल्ली, 6 अप्रैल 2025: सरकार “विकास” का झंडा लहरा रही है, और इस विकास की चमक में निजीकरण का ऐसा खेल चल रहा है कि हवाई अड्डे, बंदरगाह, हाइवे—सब कुछ निजी हाथों में जा रहा है। इसे अडानी का स्वर्ण युग कहें या कुछ और, लेकिन जनता के मन में सवाल उठ रहे हैं—ये सब किसके लिए? सरकार कहती है, “देश तरक्की कर रहा है,” पर आम आदमी सोच रहा है कि उसकी मेहनत और टैक्स का फल आखिर कहाँ जा रहा है। आइए, इस निजीकरण के तमाशे पर एक नजर डालें।
*हवाई अड्डे से हाइवे तक : सब कुछ निजी जागीर*
हवाई अड्डों का निजीकरण अब कोई नई बात नहीं। दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद जैसे बड़े एयरपोर्ट्स अब अडानी समूह के पास हैं। बंदरगाह भी पीछे नहीं—मुंद्रा जैसे बड़े पोर्ट पर एक ही नाम का परचम लहरा रहा है। हाइवे की बात करें, तो सड़कें भी निजी कंपनियों के हवाले हैं, और दोनों ओर 100 मीटर तक की जमीन पर आम आदमी का कोई हक नहीं। सरकार कहती है, “इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत हो रहा है।” ठीक है, पर सड़कें जनता के टैक्स से बन रही हैं और टोल वसूल रहा है कोई और—ये कैसा हिसाब है?
*FCI गोदाम: अनाज आपका, मुनाफा उनका*
भारतीय खाद्य निगम (FCI) के गोदामों का हाल देखिए। अनाज किसान उगाते हैं, मेहनत जनता करती है, पर गोदाम—जमीन समेत—अडानी के पास जा रहे हैं। सरकार का तर्क है कि इससे स्टोरेज बेहतर होगा। सही बात है, लेकिन जब अनाज का भंडारण निजी हाथों में जाएगा, तो कीमतें और मुनाफा किसके हिस्से में आएगा? जनता को लगता है कि उनकी मेहनत का फल अब किसी और की थाली में सज रहा है। क्या ये वाकई “आधुनिकीकरण” है, या सिर्फ एक नया खेल?
*डिफेंस, रेलवे, कैंटोनमेंट: क्या ये भी बिकेगा?*
रेलवे की जमीनें, डिफेंस के इलाके, और कैंटोनमेंट क्षेत्र—इन सब पर भी निजीकरण की नजर है। रेलवे स्टेशनों का पुनर्विकास हो रहा है, ट्रैक निजी हाथों में जाने की बात चल रही है। सरकार कहती है, “सुविधाएँ बढ़ेंगी।” हो सकता है, पर टिकट के दाम बढ़े तो जनता की जेब पर बोझ कौन उठाएगा? डिफेंस की जमीनें भी अगर निजी प्रोजेक्ट्स के लिए खुलीं, तो सवाल उठता है—सुरक्षा पहले या मुनाफा पहले? जनता बस इतना पूछ रही है कि ये सब किसके फायदे के लिए है।
*अडानी का स्वर्ण युग, जनता का इंतजार*
तो ये है निजीकरण का तमाशा—हवाई अड्डे, बंदरगाह, हाइवे, गोदाम—सब कुछ एक तरफ जा रहा है। अडानी का स्वर्ण युग चमक रहा है, और जनता इंतजार कर रही है कि उसकी बारी कब आएगी। सरकार “विश्वगुरु” बनने की बात करती है, पर आम आदमी सोचता है कि कहीं ये “जमीन गुरु” बनने की कहानी तो नहीं। सवाल छोटा सा है—जो टैक्स हम देते हैं, जो मेहनत हम करते हैं, उसका फायदा हमें कब मिलेगा? या फिर हमें बस “विकास” के नारे सुनते रहना है, जबकि असली खेल कुछ और ही चल रहा है?
*सत्यापन*
▪️ *हवाई अड्डे*: अडानी समूह को 6 बड़े हवाई अड्डों (मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद आदि) का संचालन अधिकार मिला है (AAI और सरकार के दस्तावेज)।
▪️ *बंदरगाह*: मुंद्रा पोर्ट अडानी समूह का है, और कई अन्य बंदरगाहों में उनकी हिस्सेदारी है।
▪️ *हाइवे*: NHAI के तहत कई हाइवे प्रोजेक्ट्स निजी कंपनियों को दिए गए हैं, और 100 मीटर का नियम लागू है।
▪️ *FCI गोदाम*: अडानी एग्री लॉजिस्टिक्स ने FCI के लिए गोदाम बनाए और संचालित किए हैं (सरकारी रिपोर्ट्स)।
▪️ *रेलवे/डिफेंस*: रेलवे स्टेशनों का निजीकरण और डिफेंस जमीनों के उपयोग की चर्चा चल रही है (नीति आयोग प्रस्ताव)।
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