September 16, 2024

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छतरपुर15अगस्त24*!!.बुंदेलखंड में आजादी की गौरव गाथा:

छतरपुर15अगस्त24*!!.बुंदेलखंड में आजादी की गौरव गाथा:

छतरपुर15अगस्त24*!!.बुंदेलखंड में आजादी की गौरव गाथा:

गोकशी को लेकर फिरंगियों के खिलाफ बगावत पर उतरे बुंदेले एवं घाघरा पलटन ने निभाई थी अहम जिम्मेदारी.!!*
*अमर तिरंगा स्वाभिमान से दुनिया भर में डोलेगा जहां गिरेगा लहू हमारा वंदे मातरम् बोलेगा*
*पंकज पाराशर छतरपुर✍️*
बुंदेलखण्ड की प्रचलित कहावत” पानीदार यहां का पानी” को चरितार्थ करते हुए बुंदेलों ने 1857 से पहले ही ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया था l स्वतंत्रता संग्राम की बलिदानी गाथाओं में बुंदेलखण्ड की भूमिका भले ही इतिहास के झरोखों में कैद हो गई हो लेकिन उसी इतिहास के झरोखों की दरकती दीवारों पर बुंदेलों की वो वीर गाथाएं अंकित हैं, जिससे यह पता चलता है कि बुंदेलखण्ड की प्रचलित कहावत” पानीदार यहां का पानी” को चरितार्थ करते हुए बुंदेलों ने 1857 से पहले ही ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया था. उस समय न तो कोई हिन्दू था न कोई मुसलमान बल्कि फिरंगियों के खिलाफ बगावत की धधकती ज्वाला लिए वो हिंदुस्तानी था जो उनके अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाकर उन्हें यह एहसास दिलाया था कि आने वाले समय में इसी हिंदुस्तान की धरती पर क्रांतिकारियों का जन्म होगा और क्रांति की मशाल जलेगी l
*गोकशी के खिलाफ बगावत पर उतरे बुंदेले*
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में इतिहास के पन्नों में दर्ज 1857 से 15 साल पहले 1842 में बुंदेलखण्ड में अंग्रेजों की हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की ज्वाला भड़की थी, ये ज्वाला भी उसी विषय को लेकर धधकती हुई ब्रिटिश हुकूमत को जलाकर राख करने के लिए आगे बढ़ रही थी l जिस विषय को लेकर मेरठ में सन् 1857 में मंगल पाण्डेय ने बर्तानियां हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था l उस समय कारतूस में गाय की चर्बी के प्रयोग के खिलाफ विद्रोह भड़का था l वर्ष 1857 से पहले 1842 में बुन्देलखण्ड में अंग्रेजों द्वारा गोकशी किए जाने को लेकर ज्वाला भड़की थी l
*बुंदेलों में सुलगी बगावत की चिंगारी*
बुंदेली रणबांकुरे इतिहास के आईने में भले ही ओझल हो गए हों लेकिन तत्कालीन ब्रिटिश अफसरों ने बांदा गजेटियर 1842 में कई घटनाओं का उल्लेख किया है जो उनके खिलाफ बुंदेलों के विद्रोह को दर्शाता है l विद्रोह की एक ऐसी ही चिंगारी भड़की थी गायों की हत्या के खिलाफ, अंग्रेजों द्वारा चित्रकूट के मंदाकिनी तट पर गोकशी की जाती थी और उसके मांस को बिहार और बंगाल में भेजकर उसके बदले रसद और हथियार मंगाए जाते थे l एक तो गुलामी और उस पर आस्था पर चोट बुंदेलियों को सहन न हुई और अंदर ही अंदर बगावत की चिंगारी सुलगने लगी l तत्कालीन मराठा शासकों और उस समय की नया गांव रियासत के राजाओं से लोगों ने इसे रोकने की फरियाद लगाई सबने फिरंगियों के खिलाफ मुखालफत करने से इंकार कर दिया l अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के लिए हिन्दू मुसलमान एक होने लगे l
*घाघरा पलटन ने निभाई अहम जिम्मेदारी*
6 जून 1842 ये वो तारीख और सन् था जिसने आने वाले क्रांति की झलक फिरंगियों को दिखला दी थी l चित्रकूट की मऊ तहसील में हजारों की संख्या में एकत्रित लोगों जिनमें बुर्कानशीं महिलाएं भी शामिल थीं l जिन्हें घाघरा पलटन भी कहा जाता, मऊ तहसील को घेरते हुए अंग्रेजों के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी l खास बात यह कि इस विद्रोह में हिन्दू मुस्लिम समुदाय की बराबर की भागीदारी थी l जनता ने 5 अंग्रेज अफसरों को बंधक बनाते हुए उन्हें पेंड़ पर फांसी के फंदे से लटका दिया l जनांदोलन के तहत अंग्रेज अफसरों को खदेड़ा गया l

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