मैनपुरी15नवम्बर*मैनपुरी उप लोक सभा से रघुराज सिंह शाक्य का चुनावी मुकाबला होगा अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल से*
*यह वही रघुराज है जिन्हें इटावा विधानसभा से सपा का टिकट नहीं दिया था अखिलेश ने*
*चश्मा(शकुनी) क्या गुल खिलाएगा और कौन सी करेंगे व्यूह रचना, सबकी नजरें हैं उस तरफ*
*मैनपुरी में भाजपा करो या मरो के अंदाज में लड़ेगी उप लोकसभा का चुनाव, अखिलेश यादव और मुख्यमंत्री योगी दोनों की प्रतिष्ठा लग गयी दांव पर*
*शिवपाल सिंह यादव का अजीब संयोग सपा से उनकी बहू डिंपल यादव और भाजपा से उनका शिष्य रघुराज शार्क अब प्रसपा चीफ करेंगे क्या?*
*मैनपुरी का उपचुनाव 2024 के आम लोक सभा चुनाव का है ट्रायल खादिम अब्बास*
इटावा। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में मैनपुरी उप लोकसभा के चुनाव में अपनी पार्टी की ओर से तुरुप का पत्ता पूर्व सांसद पूर्व विधायक रघुराज सिंह शाक्य के रूप में चल दिया है। जिनका सीधा मुकाबला पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी पूर्व सांसद डिंपल यादव से होगा दिलचस्प बात यह है की रघुराज सिंह दो बार समाजवादी पार्टी की तरफ से इटावा लोकसभा सीट के सांसद और एक बार इटावा विधानसभा से विधायक रह चुके हैं। जबकि डिंपल यादव सपा की ओर से कन्नौज लोकसभा सीट संसद सदस्य रह चुकी है। गौरतलब बात यह है कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव के, पूर्व सांसद रघुराज सिंह काफी नजदीक माने जाते हैं, और वह इस बात को खुलेआम कहते भी हैं कि नेताजी के साथ हमें दोनों बार सांसद व एक बार विधायक बनाने में शिवपाल सिंह यादव का बहुत बड़ा योगदान है। अभी हाल में इटावा विधानसभा के हुए चुनाव में रघुराज शाक्य कहते हैं कि शिवपाल सिंह यादव से हमारी नज़दीकियों के कारण हमारा टिकट इसलिए काट दिया था क्योंकि हमें शिवपाल सिंह यादव का खास सिपहसालार माना जाता था। शिवपाल सिंह यादव का अजीब संयोग, सपा से उनकी बहू डिंपल यादव और भाजपा से उनका शिष्य रघुराज मैदान में है। अब क्या करेंगे प्रसपा चीफ
*भाजपा का तुरूप पत्ता*
सपा से डिंपल यादव के नाम की घोषणा हो गई है और उन्होंने मैनपुरी से उप लोकसभा से अपना नामांकन भी दाखिल कर दिया है। वहीं भाजपा से रघुराज सिंह शाक्य नाम की घोषणा शीर्ष नेतृत्व ने कर दी है। अब सपा के दोनों पूर्व सांसदों में आपसी भिड़ंत होने जा रही है फर्क सिर्फ इतना रहेगा कि भाजपा ने अपना कमल को मैनपुरी लोकसभा से अपनी पार्टी के कमल के निशान के लिए रघुराज सिंह शाक्य को अपनी पार्टी के लिए उपयुक्त समझा और उनके नाम की विद्वत सूचना करके अपने तुरुप का पत्ता अखिलेश यादव के सामने फेंक कर चुनावी रणभूमि में उतार दिया। अब उनके डिंपल यादव से दो-दो हाथ होंगे।
*चुनाव को दिलचस्प बनाया*
कुदरत का कैसा करिश्मा है कि डिंपल यादव का मैनपुरी चुनाव में मुख्य मुकाबला अपने ससुर शिवपाल सिंह यादव के सबसे प्रिय शिष्य रघुराज सिंह शाक्य से आमने-सामने होने जा रहा है यह चुनाव वास्तव में कांटे का चुनाव हो गया है। इस चुनाव में खासकर अखिलेश यादव की प्रतिष्ठा दांव पर है। क्योंकि वह डिंपल यादव के पति के साथ समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं इस चुनाव में ऊंट किस करवट बैठता है यह अभी भविष्य के गर्भ में है इस समय तो सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि पूर्व सांसद एवं सपा के नेता रहे रघुराज सिंह को मैनपुरी उप लोकसभा के चुनावी दंगल में उतरने में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व
के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है रघुराज शाक्य के मैदान में आ जाने से यह चुनाव दिलचस्प बन गया है जिसका नजारा मैनपुरी की जनता अब अपनी आंखों से देखेगी। रघुराज सिंह किसी भी परिचय के मोहताज नहीं है उनका भी एक लंबा राजनीतिक जीवन और इतिहास है वह मैनपुरी लोकसभा में पड़ने वाली जसवंत नगर विधानसभा के रहने वाले हैं।
*करो या मरो का चुनाव*
अखिलेश को याद रखना चाहिए कि मैनपुरी का चुनाव भाजपा का शीर्ष नेतृत्व करो या मरो के अंदाज में लड़ेगा। इस चुनाव को जीतने के लिए भाजपा का शीर्ष नेतृत्व साम ,दाम, दंड, भेद जैसे सभी आंकड़ों का इस्तेमाल करेगा उसका मूल कारण यह है कि मैनपुरी का यह अहम चुनाव वह इसलिए भी जीतना चाहेगी कि इस चुनाव से आगामी 2024 में आम लोकसभा चुनाव में भाजपा का भविष्य निर्भर करेगा क्योंकि प्रधानमंत्री बनने का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जाता है बात भी अपने आप में महत्वपूर्ण है कि इस चुनाव में सिर्फ अकेले अखिलेश यादव की ही इज्जत आबरू दांव पर नहीं लगी है, बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है अगर अखिलेश यादव ने धोखाधड़ी और होशियारी दिखाने की कोशिश की तो भैंस गई पानी में। अखिलेश अपनी भैंस को पानी में जाने से बचाएंगे यह उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती है इस मुसीबत से बचने के लिए उन्हें सूझबूझ की अपनाने के साथ 2022 के विधानसभा चुनाव की हार से सबक लेना होगा। उन्होंने अब तक अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव का बहुत अपमान कर लिया अब उन्हें अपनी नादानी और बचकानेपन से तौबा करनी पड़ेगी, तब कहीं जाकर उनकी इज्जत बचेगी।
*आसतीनों के सांपों पर रखें नजर*
इस चुनाव में अखिलेश यादव को आसतीनो के सांपों पर स्वयं नजर रखनी पड़ेगी, जिनके कारण उन्हें दर चुनाव दर चुनाव हार का मुंह देखना पड़ रहा है। अखिलेश 2014 से लेकर 2017 तक का और 2019 से लेकर 2022 के आम चुनाव की तरह जितने भी उत्तर प्रदेश में उप लोकसभा विधानसभा के चुनाव हुए हैं उसमें अखिलेश यादव को मुंह की खानी पड़ी है। जिसकी अखिलेश यादव ने कोई भी इमानदारी से समीक्षा नहीं की है। बस उनका एक सूत्रीय कार्यक्रम रहा कि उन्होंने अपने चाचा शिवपाल सिंह को अपमानित करने के अलावा कोई दूसरा काम नहीं किया वह भाजपा से संघर्ष ना करके सिर्फ अपने चाचा से बेवजह लड़े जा रहे हैं। सभी धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर चाहते हैं कि इस उपचुनाव में अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव विजई हो। लेकिन उनके अहंकार से जीत हर जगह आड़े आ जाती है।
*चुनाव हलवा पूड़ी नहीं*
अखिलेश को यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाए जितने भी चुनाव अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव को नजरअंदाज करते रहे हैं उसमें उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा है। यदि उन्होंने इस महत्वपूर्ण चुनाव में जिसमें उनकी पत्नी डिंपल यादव चुनाव लड़ रही हैं इस चुनाव में वही गलती दोहराई और अपने चाचा के साथ धोखाधड़ी की राजनीति करने का दुस्साहस किया तब अखिलेश यादव कहीं के नहीं रहेंगें। मैनपुरी का चुनाव कोई हलवा पूरी नहीं है जो वह आसानी से खा जाएंगे? इसमें सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। इस चुनाव को जीतने के लिए अखिलेश जी को अपने घमंड भरी राजनीति को त्यागना पड़ेगा तब कहीं जाकर बात बनेगी अगर अखिलेश ने आजमगढ़ और रामपुर की पराजय से सबक नहीं लिया और वह अहंकार के नशे में मदहोश रहे तो समझो सैफई परिवार की भैंस हमेशा हमेशा के लिए पानी में चली जाएगी?
*एकता की है जरूरत*
अखिलेश को समझना होगा कि मैनपुरी का चुनाव छुट्टा मार तरीके से या अकेले गोल मारने के चक्कर से नहीं जीता जा सकता। जब तक सैफई परिवार में ईमानदारी से एकता स्थापित नहीं होगी तब तक यह प्रतिष्ठा का चुनाव अखिलेश जीत नहीं सकते ।उन्हें मालूम होना चाहिए कि अभी तक सैफई के शकुनि ने अपने बाल नहीं मुड़वाए हैं अभी तक शकुनि का लक्ष्य अधूरा है सब जानते हैं कि फिरोजाबाद से लोकसभा का जो चुनाव हुआ था उसमें डिंपल यादव चुनाव हारी नहीं थी बल्कि उन्हें एक षड्यंत्र के तहत चुनाव हरवाया गया था। चश्मा की कूटनीति इतनी हावी रही थी कि डिंपल यादव की करारी हार हो गई। सबको मालूम है कि इसी चश्मा राजनीति फिरोजाबाद जैसी सर जमी पर जहां समाजवादी पार्टी का डंका बजता था वहां अखिलेश जी तमाम तामझाम के बाद सपा के नगाड़े औधे हो गए थे। वहां भी सैफई का सकुनी कामयाब हो गया था। इसके बाद भी चश्मा को कोई सजा नहीं मिल पाई थी। उसको सजा देने का काम डिंपल यादव को चुनाव हरवाने की सजा सैफई के शकुनी को शिवपाल सिंह यादव ने अपने आप को जलाकर रोशनी की और प्रोफेसर रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव को फिरोजाबाद से लोकसभा के चुनाव में हरवा कर डिंपल यादव के साथ की गई गद्दारी का बदला लेकर रामगोपाल के होश ठिकाने लगा दिए थे। लेकिन अखिलेश जी आपने क्या किया अपने पिता श्री मुलायम सिंह यादव के संकट मोचन अपने चाचा शिवपाल के पर कतरना शुरू कर दिए।
*किसी को नहीं बख्शा*
एक कहावत है कि कुत्ते की पूंछ को 100 साल तक दावे रखो लेकिन जब भी निकलेगी वह टेढ़ी की टेढ़ी दिखाई देगी और निकलेगी इटावा नगर पालिका परिषद का चुनाव देश व प्रदेश की जनता को भलीभांति याद है। उस समय सपा के राष्ट्रीय प्रमुख महासचिव रामगोपाल यादव ने सैफई परिवार की मुथरे उस्तरे से सार्वजनिक रूप से सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह जी की नाक काटते हुए देशभर में नेताजी की जग हंसाई करवा कर रख दी थी। विभीषण कोई बाहर का नहीं था बल्कि रावण का भाई था। अखिलेश जी वह दिन याद करो उस समय टीपू प्रदेश के मुख्यमंत्री थे आपके पिताश्री स्वर्गीय मुलायम सिंह जी ने इटावा के सपा शहर अध्यक्ष नफीस उल हसन अंसारी को नगर पालिका परिषद का सपा प्रत्याशी घोषित करते हुए नफीस उल हसन को चुनाव जिताने की जिम्मेदारी अपने छोटे भाई राजपाल सिंह यादव और उनके बेटे अंशुल यादव के ऊपर डाल दी सारा सैफई परिवार नफीस उल हसन अंसारी को जिताने में जुट गया। लेकिन प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने सपा का राष्ट्रीय महासचिव होते हुए भी सपा प्रत्याशी नफीस उल हसन ही क्या सारे सैफई परिवार और मुस्लिम समाज के साथ सार्वजनिक रूप से गद्दारी करके अपने ही पार्टी के उम्मीदवार को डंके की चोट पर हरा दिया आगे चलकर अखिलेश जी नफीस उल हसन के साथ की गई गद्दारी का यह असर हुआ की गद्दारी और अपराध तो रामगोपाल यादव ने किया था 2017 के हुए विधानसभा आम चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं ने अखिलेश यादव को सजा देते हुए उन्हें उत्तर प्रदेश की राजगद्दी से ही उतरवा दिया।
*डंके की चोट पर हर वाया*
पता नहीं अखिलेश जी कौन सी राजनीति कर रहे हैं? सैफई परिवार इस बात के लिए एक जुट था जिसमें शिवपाल सिंह भी शामिल थे, कि स्वर्गीय मुलायम सिंह जी मैनपुरी सीट से तेज प्रताप सिंह उर्फ तेजू यादव चुनाव लड़े उसमें सैफई परिवार की भलाई थी लेकिन डिंपल यादव का नाम किसकी साजिश और सह से सामने आ गया जिसे देखकर सभी हैरान रह गए ,अब डिंपल सामने आ गई हैं ।हम सब की जिम्मेदारी बनती है की फिरका परस्त भाजपा को परास्त करने के लिए अकेले सैफई परिवार को नहीं सभी धर्मनिरपेक्ष सोच के लोगों को उन्हें जिताने के लिए लग जाना चाहिए लेकिन डिंपल यादव जीतेगी कैसे? यह एक महत्वपूर्ण सवाल सबके जेहन में इसलिए है कि वह फिरोजाबाद में डिंपल यादव की हार देख चुके हैं ।जिन्हें सैफई के शकुनि ने डंके की चोट पर हरवा कर अपने बेटे के लिए सीट सुरक्षित कर ली थी जिस सीट पर एक साजिश के तहत डिंपल को चुनाव भरवा कर सैफई परिवार के मान सम्मान के साथ खिलवाड़ किया गया था। वह अवरोध आज भी आम जनता को साफ दिखाई दे रहा है घड़ी की सुई वहीं आकर रुक जाती है और वही कहावत सामने आकर खड़ी हो जाती है की रांड राडापा काट ले जब रडुआ काटन दे। लगता है सैफई परिवार को बर्बाद करने में अभी शकुनि का दिल भरा नहीं है इसलिए सैफई के शकुनि पर पे नजर रखने की जरूरत है तब कहीं जाकर डिंपल यादव को सफलता प्राप्त हो सकती है।
यह चुनाव है होशियार खिलाड़ी कभी भी अपने प्रतिद्वंदी को कमजोर नहीं समझता तथा उसे परास्त करने के प्रयास में रात दिन मेहनत करता है। डिंपल यादव को जिताने के लिए अखिलेश यादव को साफ-सुथरी और ईमानदारी से अपनी रणनीति तैयार करनी पड़ेगी। उन्हें इस चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए कि डिंपल अच्छे खासे वोटों से जीत रही है चिंता की बात नहीं है लेकिन अखिलेश को चिंता करनी होगी और चुनाव जीतने के लिए सभी की और कांटे दुरुस्त करने होंगे ,क्योंकि डिंपल को प्रत्याशी बनाकर उन्होंने अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया है उनकी जरा सी गलती और ओवरकॉन्फिडेंस उनका सब कुछ उजाड़ सकता है। इसलिए उन्हें इस चुनाव में अपने सच्चे दोस्त और दुश्मनों की पहचान करनी होगी, वरना फिरोजाबाद जैसा हश्र हो जाएगा और यही नारा लगता रह जाएगा कि जीत गए भाई जीत गए आस्तीन में छुपा हुआ दुश्मन बहुत शातिर है वैसे भी परिवार को बर्बाद करने के लिए अपना कई बार जलवा दिखा चुका है राजनीति का सच्चा और अच्छा खिलाड़ी वही होता है जो अपने मित्रों की संख्या बढ़ाये और शत्रुओं की संख्या घटाएं जरा सा भी घमंड और अभिमान अहंकार सैफई परिवार के राजनीति को रसातल में ले जा सकता है।
इस फानी दुनिया से मुलायम सिंह जी कूच कर गए हैं, मैनपुरी के चुनाव में मुकाबला वड़ा है शत्रु पार्टी ने अपना जाल बिछा दिया है ,और उसका प्रयास होगा सैफई परिवार का अस्तित्व मिटाना। वह इस प्रयास में एक लंबे समय से लगी है और वह सफल भी हो रही है। इस कूटनीति को स्वर्गीय मुलायम सिंह जी समझ गए थे जिसके कारण उन्हें पार्टी से बाहर होने का दंश भी झेलना पड़ा लेकिन उन्होंने अपने टीपू को नहीं छोड़ा और ना ही उन्होंने अपने लक्ष्मण सरीखे भाई शिवपाल सिंह को अपने से जुदा होने दिया अब संकटमोचक की भूमिका शिवपाल सिंह यादव हनुमान बनकर अपने भतीजे अखिलेश के लिए निभा सकते हैं। उन नेताजी की आंखें बंद होने के बाद मैनपुरी में उप लोकसभा का चुनाव होने जा रहा है। सैफई परिवार की आन बान शान अब सब कुछ दाव पर लगी है इसे बचाने के लिए शकुनी पर विशेष नजर रखनी होगी।
खादिम समझता है कि अगर अखिलेश में सहूर आ जाए तो वह क्षत्रिय और यादव दोनों मतदाताओं पर डिंपल यादव की प्रत्याशी से पकड़ बनाए रख सकते हैं। मेरे ख्याल से उन्होंने इसीलिए डिंपल यादव को आगे रखकर यह गेम खेलने का रिस्क उठाया है। कामयाब होने के लिए उन्हें अपने चाचा शिवपाल यादव से मतभेद मिटाने होंगे तभी उनकी राजनीति परवान चढ़ेगी इसमें धोखाधड़ी कतई ना हो। इस चुनाव में मुख्यमंत्री बाबा योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है, यदि अपने वोट पर डिंपल यादव सेंध लगाने में कामयाब हुई तो बाबा की इसी चुनाव से उत्तर प्रदेश से विदाई तय है। खादिम की इस चुनाव में डिंपल को शुभकामनाएं कि वह अपने मकसद में सफल हो।
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