*बिहार 03मई25जिन पत्रकारों की कलम व्यवस्था को दिशा देती है, उन्हीं पत्रकारों की पीड़ा आज उपेक्षा और उपहास का विषय बन चुकी है*
पत्रकार समाज काआईना हैं*
*जिन पत्रकारों की कलम व्यवस्था को दिशा देती है, उन्हीं पत्रकारों की पीड़ा आज उपेक्षा और उपहास का विषय बन चुकी है* : *कृष्णा पंडित*
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, और यह संज्ञा केवल औपचारिकता नहीं बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी का प्रतीक है। पत्रकार वो आईना हैं, जो समाज को उसकी वास्तविकता दिखाते हैं। वे सत्ता से सवाल करते हैं, भ्रष्टाचार पर रोशनी डालते हैं, और उन आवाज़ों को मंच देते हैं जो अक्सर अनसुनी रह जाती हैं। लेकिन विडंबना यह है कि जिन पत्रकारों की कलम व्यवस्था को दिशा देती है, उन्हीं पत्रकारों की पीड़ा आज उपेक्षा और उपहास का विषय बन चुकी है।
इस बाबत *आदर्श पत्रकार संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष कृष्णा पंडित का यह कथन बेहद मार्मिक और यथार्थपरक है कि “पत्रकारों की पीड़ा समाज के किसी भी वर्ग से छुपी नहीं है।” उन्होंने यह स्पष्ट किया कि पत्रकार दिन-रात अपनी जान की परवाह किए बिना सूचनाएं जुटाते हैं, उन्हें प्रसारित करते हैं, ताकि समाज जागरूक रहे और प्रशासन पारदर्शी बना रहे। फिर भी, पत्रकारों को न तो आर्थिक सुरक्षा मिलती है, न सामाजिक सम्मान और न ही प्रशासनिक संरक्षण*।
वास्तव में, जब कोई पत्रकार सच्चाई सामने लाता है, तो वह सबसे पहले सत्ता और प्रभावशाली वर्गों के निशाने पर आता है। कभी उस पर दबाव डाला जाता है, कभी उसके परिवार को धमकाया जाता है, और कभी-कभी उसकी जान तक जोखिम में डाल दी जाती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जो व्यक्ति समाज के लिए लड़ रहा है, उसे समाज से क्या मिल रहा है?
आदर्श पत्रकार संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ठाकुर सोनी ने पत्रकारों की स्थिति को बेहद स्पष्ट शब्दों में व्यक्त करते हुए कहा, “पत्रकार समाज का पथप्रदर्शक है, लेकिन दुर्भाग्यवश उसी पथप्रदर्शक की राह में कांटे बिछे हुए हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि पत्रकार न तो किसी एक वर्ग से बंधा होता है, न किसी राजनैतिक विचारधारा से। उसका धर्म केवल सच्चाई होता है और उसकी पूजा निष्पक्षता। लेकिन आज पत्रकारों को उन्हीं मूल्यों की सज़ा भुगतनी पड़ रही है।
पूर्वी उत्तरप्रदेश अध्यक्ष फणींद्र कुमार मिश्र ने कहा, “पत्रकारों की पीड़ा असहनीय है।” उन्होंने बताया कि खासकर ग्रामीण और जिला स्तर पर काम करने वाले पत्रकारों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। उनके पास न तो पर्याप्त संसाधन हैं, न ही सुरक्षा। ये पत्रकार बहुत कम संसाधनों में बड़ी ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं। वे कई बार पुलिस, प्रशासन और स्थानीय माफियाओं के बीच पिस जाते हैं। बावजूद इसके, उनकी बात न तो मुख्यधारा की मीडिया उठाती है, न ही सरकार।
विश्व पत्रकारिता दिवस के अवसर पर हमें इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए कि आज पत्रकारिता खुद संकट में है। जो पत्रकार लोगों की समस्याओं को दुनिया के सामने लाते हैं, उनकी अपनी समस्याएं कहीं दर्ज ही नहीं होतीं। एक ओर जहां टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया ने पत्रकारिता को विस्तृत मंच दिया है, वहीं दूसरी ओर ‘फेक न्यूज़’ और ‘पेड न्यूज’ जैसे कलंक पत्रकारिता की आत्मा को घायल कर रहे हैं।
पत्रकारों की आर्थिक स्थिति भी किसी दयनीय वर्ग से कम नहीं है। छोटे अखबारों और चैनलों में काम करने वाले पत्रकारों को समय पर वेतन नहीं मिलता। उनकी कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं होती। कई बार तो बीमा तक नहीं होता, और दुर्घटना या मृत्यु की स्थिति में उनके परिवारों को दर-दर भटकना पड़ता है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि पत्रकारों के लिए एक व्यापक और कठोर कानून बने जो उनकी सुरक्षा, सम्मान और अधिकारों की रक्षा करे।
हम यह भी नहीं भूल सकते कि पत्रकारिता केवल एक पेशा नहीं है, यह एक मिशन है। एक सच्चा पत्रकार जब कलम उठाता है, तो वह सिर्फ खबर नहीं लिखता, बल्कि एक विचार, एक चेतना और एक संघर्ष को शब्द देता है। लेकिन जब वही पत्रकार खुद संघर्ष में घिर जाता है, तो क्या हमारा दायित्व नहीं बनता कि हम उसके साथ खड़े हों?
आज पत्रकारों को न केवल प्रशासनिक संरक्षण की आवश्यकता है, बल्कि समाज से भी सहयोग और सम्मान चाहिए। यह समाज उन्हीं की रिपोर्ट्स के जरिए जागरूक होता है। अगर पत्रकारिता निष्पक्ष और निर्भीक बनी रहेगी, तभी लोकतंत्र सुरक्षित रहेगा। इसके लिए पत्रकारों के लिए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष नियामक संस्था होनी चाहिए जो उनकी समस्याओं की सुनवाई कर सके और उचित कार्यवाही सुनिश्चित करे।
ऐसे में आदर्श पत्रकार संघ जैसे संगठनों का दायित्व इस दिशा में और भी बढ़ जाता है। ये संगठन न केवल पत्रकारों की आवाज़ बुलंद करते हैं बल्कि उनकी रक्षा के लिए संस्थागत प्रयास भी करते है। इसके अलावा सरकार को चाहिए कि पत्रकारों के लिए एक विशेष राहत कोष, पेंशन योजना और बीमा सुरक्षा लागू करे। पत्रकारों के परिवारों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं सुनिश्चित की जाएं।
इस विश्व पत्रकारिता दिवस पर केवल भाषण देना पर्याप्त नहीं होगा, हमें पत्रकारों की व्यथा को समझना होगा, उनकी तकलीफों को साझा करना होगा और उनके लिए आवाज़ बनना होगा। जिस दिन पत्रकार को यह विश्वास होगा कि समाज उसके साथ है, उस दिन पत्रकारिता और भी मजबूत होगी। और जब पत्रकारिता मजबूत होगी, तो समाज और देश की बुनियाद और भी मजबूत होगी।
समाज को अब यह समझने की ज़रूरत है कि पत्रकारों की पीड़ा केवल उनका व्यक्तिगत दर्द नहीं, बल्कि यह पूरे लोकतंत्र की कमजोरी का संकेत है। पत्रकारों की सुरक्षा, उनका सम्मान और उनकी स्वतंत्रता – यही लोकतंत्र की सबसे बड़ी गारंटी है। पत्रकार एकता जिंदाबाद आदर्श पत्रकार संघ जिंदाबाद
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