जम्मू कश्मीर24मई25*शहीद करतार सिंह सराभा या करतार सिंह सराभा या करतार सिंह ग्रेवाल की पुण्यतिथि पर याद किया-योगेन्द्र यादव
जम्मू कश्मीर24मई25*शहीद करतार सिंह सराभा या करतार सिंह सराभा या करतार सिंह ग्रेवाल के जन्म 24 मई 1896 पर अविभाजित भारत की ब्रिटिश प्रेसीडेंसी के इंडियन किंगडम के उत्तरी भाग के दरियाई क्षेत्र के सेंट्रल प्रोविंस की युनाइटेड पंजाब डिविजन के लुधियाना संभाग के सराभा गांव नज़दीक गुज्जरवाल गांव अब सराभा गांव तहसील पक्खोवाल और जिला लुधियाना पंजाब
शहादत 16 नवम्बर 1915, फांसी दी गई, लाहौर सेंट्रल जेल
अविभाजित भारत की ब्रिटिश प्रेसीडेंसी के इंडियन किंगडम के पश्चिमी भाग के दरियाई क्षेत्र के सेंट्रल प्रोविंस की युनाइटेड पंजाब डिविजन के लाहौर संभाग की लाहौर सेंट्रल जेल अब जिला लाहौर पंजाब पाकिस्तान
करतार सिंह सराभा, वह एक महान स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी, लाला हरदयाल वादी,गदरी,पत्रकार और संपादक थे।इनका जन्म अविभाजित भारत की ब्रिटिश प्रेसीडेंसी के इंडियन किंगडम के उत्तरी भाग के दरियाई क्षेत्र के सेंट्रल प्रोविंस की युनाइटेड पंजाब डिविजन के लुधियाना संभाग के सराभा गांव नज़दीक गुज्जरवाल गांव अब सराभा गांव तहसील पक्खोवाल और जिला लुधियाना पंजाब में एक साधन संपन्न जट्ट सिख परिवार में स मंगल सिंह ग्रेवाल और माता साहिब कौर के घर में हुआ था।सराभा ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा लुधियाना में ही प्राप्त की थी।नौंवीं कक्षा पास करने के पश्चात् वे अपने चाचा के पास उड़ीसा चले गये और वहीं से हाई स्कूल की परीक्षा पास की।1905 के बंगाल विभाजन के विरुद्ध क्रांतिकारी आन्दोलन प्रारम्भ हो चुका था जिससे प्रभावित होकर करतार सिंह सराभा क्रांतिकारियों में सम्मिलित हो गये।यद्यपि उन्हें बन्दी नहीं बनाया गया फिर भी क्रांतिकारी विचार की जड़ें उनके हृदय में गहराई तक पहुँच चुकी थीं।1911 में सराभा अपने कुछ सम्बन्धियों के साथ अमेरिका चले गये।इसी समय उनका सम्पर्क लाला हरदयाल से हुआ जो अमेरिका में रहते हुए भी भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रयत्नशील दिखे।उन्होंने सेन फ़्राँसिस्को में रहकर कई स्थानों का दौरा किया और भाषण दिये।सराभा हमेशा उनके साथ रहते थे और प्रत्येक कार्य में उन्हें सहयोग देते थे।देश की आज़ादी से सम्बन्धित किसी भी कार्य में वे हमेशा आगे रहते थे।25 मार्च 1913 में ओरेगन प्रान्त में भारतीयों की एक बहुत बड़ी सभा हुई जिसके मुख्य वक्ता लाला हरदयाल थे।उन्होंने सभा में भाषण देते हुए कहा था मुझे ऐसे युवकों की आवश्यकता है जो भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण दे सकें।इस पर सर्वप्रथम करतार सिंह सराभा ने उठकर कहा की मैं तैयार हूं और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच लाला हरदयाल ने सराभा को अपने गले से लगा लिया।इसी सभा में गदर नाम से एक समाचार पत्र निकालने का निश्चय किया गया जो भारत की स्वतंत्रता का प्रचार करे। इसे कई भाषाओं में प्रकाशित किया जाए और जिन जिन देशों में भारतवासी रहते हैं उन सभी देशों में उनको भेजा जाये।1913 में गदर प्रकाशित हुआ और इसके पंजाबी संस्करण के सम्पादक का कार्य सराभा ही करते थे।सराभा ने गुप्त रूप से क्रांतिकारियों से मिलने का निश्चय किया ताकि भारत में विप्लव की आग जलाई जा सके।इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु उन्होंने सुरेन्द्रनाथ बनर्जी,रासबिहारी बोस,शचीन्द्रनाथ सान्याल आदि क्रांतिकारियों से भेंट की।उनके प्रयत्नों से जालंधर की एक बगीची में एक गोष्ठी आयोजित की गई जिसमें पंजाब के सभी क्रांतिकारियों ने भाग लिया।रासबिहारी बोस ने पंजाब आकर सैनिकों का संगठन बनाया और इसी समय उन्होंने विद्रोह के लिए एक योजना भी बनाई।इस योजना के अनुसार समस्त भारत में फौजी छावनियाँ एक ही दिन और एक ही समय में अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध विद्रोह करेंगी।सराभा ने लाहौर,फ़िरोजपुर,लायलपुर और अमृतसर आदि छावनियों में घूम घूमकर पंजाबी सैनिकों को संगठित करके उन्हें विप्लव करने हेतु प्रेरित किया और सराभा ने पंजाब की समस्त फौजी छावनियों में विप्लव की अग्नि प्रज्ज्वलित कर दी थी।सराभा को गिरफ्तार कर लिया गया।करतार सिंह सराभा पर हत्या,डाका,शासन को उलटने का अभियोग लगाकर लाहौर षड़यन्त्र के नाम से मुकदमा चलाया गया।उनके साथ 63 दूसरे आदमियों पर भी मुकदमा चलाया गया था। सराभा ने अदालत में अपने अपराध को स्वीकार करते हुए ये शब्द कहे मैं भारत में क्रांति लाने का समर्थक हूं और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अमेरिका से यहाँ आया हूं।इनको मौत की सज़ा सुनाई गई और और लाहौर सेंट्रल जेल में उनको 16 नवंबर 1915 को उनको फांसी दे दी गई थी और उनके साथ विष्णु गणेश पिंगले को भी फांसी दे दी गई थी।वह भारत के प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों में से एक थे।उन्हें अपने शौर्य,साहस,त्याग एवं बलिदान के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा।महाभारत के युद्ध में जिस प्रकार वीर अभिमन्यु ने किशोरावस्था में ही कर्तव्य का पालन करते हुए मृत्यु का आलिंगन किया था उसी प्रकार सराभा ने भी अभिमन्यु की भांति केवल उन्नीस वर्ष की आयु में ही हँसते हँसते देश के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया।उनके शौर्य एवं बलिदान की मार्मिक गाथा आज भी भारतीयों को प्रेरणा देती है।
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