जम्मू कश्मीर18जून25*ईरान, अमेरिका और ताश के जोकर : एक नई युद्ध-बिसात का असली नक़्शा
ईरान आज जो झेल रहा है, वह किसी पुराने जमाने के धार्मिक इंकलाब का नहीं बल्कि नए तकनीकी और भू-राजनीतिक जाल का नतीजा है। इस जाल में सबसे बड़ी बात यह है कि उसे चारों तरफ से घेर कर रखा गया है — अंदर से टूटता हुआ समाज, बाहर से इज़राइली निशाना साधी हुई मिसाइलें, अमेरिकी नाकेबंदी और दुनिया की नई कारोबारी फौजदारी। ऐसे में ईरान की बचत के नाम पर जो दो नाम अक्सर गिना दिए जाते हैं — रूस और चीन — दरअसल यही दो नाम सबसे ज्यादा ओवररेटेड हैं।
रूस ने पिछले कुछ सालों में सीरिया से लेकर यूक्रेन तक बारूद के दम पर अपनी ताक़त दिखानी चाही, पर असलियत यह है कि मास्को की अर्थव्यवस्था और हथियार दोनों में अब उतनी सांस नहीं बची कि वो तेहरान को पूरी ढाल बनकर बचा सके। इराक़ से लेकर फारस की खाड़ी तक रूस के लिए सबसे किफायती सौदा यही है कि ईरान किसी भी हालत में पूरी तरह से न मिटे, ताकि वह पश्चिम को चुपचाप परेशान करता रहे और मॉस्को अपने हथियार बेच सके, डिप्लोमेटिक शोर मचा सके। यानी रूस के लिए ईरान किसी भाईचारे का साथी नहीं — बल्कि एक जरूरी मोहरा है, जिससे दुनिया को उलझाए रखा जा सके।
चीन का खेल और भी दिलचस्प है। चीन के लिए खाड़ी का तेल और ईरान की ज़मीनें कोई पुरानी वैचारिक दोस्ती नहीं — ये उसके लिए सिर्फ बेल्ट एंड रोड की रस्सी के नोड हैं। चीन पूरी ताक़त से चाहेगा कि ईरान जिंदा रहे — ताकि उसका तेल युआन में खरीदा जा सके, डॉलर को धीरे-धीरे पीछे धकेला जा सके, और ग्वादर से लेकर कज़ाखिस्तान तक की पाइपलाइनें उसे ऊर्जा का ‘बैकअप’ दें। पर चीन की सेना फारस की खाड़ी में नहीं उतरेगी। बीजिंग की किताब कहती है कि बारूद दूसरों का, चेकबुक अपनी। हथियार चोरी-छुपे देना, spare parts और सॉफ्टवेयर patch देना — यही असली चीनी मदद है। मिसाइल ढाल या सीधे युद्ध में उतरना? ये चीन कभी नहीं करेगा।
इधर अमेरिका और इज़राइल ने समझ लिया है कि ईरान को सीधे इराक़ या लीबिया जैसा पूरी तरह नेस्तनाबूद करना आसान नहीं। लेकिन उसे अंदर से खूनखराबा करवा कर, missile sites और proxies को बार-बार surgical strikes से तोड़ कर — उसे इतना कमज़ोर कर दो कि वो खाड़ी के राजा-महाराजाओं के लिए कभी स्थायी खतरा न बने। इसके लिए इनका खेल लंबा है, महंगा है, लेकिन रणनीतिक तौर पर साफ़ है — टॉप लीडरशिप मार दी जाए, तो कुछ वक्त का झटका लगेगा, मगर system फिर किसी नए मुल्ला, किसी नए IRGC फेक्शन से बहाल होगा। इसलिए Washington और तेल अवीव का फोकस है कि जड़ें ही बार-बार खोद दी जाएँ — ताकि यह पेड़ बड़ा होकर फिर न उगे।
इस खेल में अरब बादशाहतें ख़ुद जानती हैं कि उनके रेत के महल सिर्फ तभी खड़े हैं जब अमेरिका की नेवी फारस की खाड़ी में तैनात है। रूस या चीन कोई वहां पेट्रोलिंग नहीं करेगा। सब जानते हैं कि आख़िरी बंदूक अमेरिका की ही चलेगी — चाहे राजा कोई भी हो, तेल किसी का भी हो। इसलिए तख़्त संभालने का premium डॉलर में ही चुकाना पड़ेगा।
नतीजा एक लाइन में: ईरान, रूस और चीन एक दूसरे के भरोसे का ढोल बजाते रहेंगे — पर जमीन पर decisive power America-इज़राइल-Arab Dollar Axis के ही हाथ में रहेगी। रूस और चीन की भूमिका इस बिसात में असली शतरंज के राजा-रानी नहीं — ताश की गड्डी के जोकर हैं, जो कभी-कभार रंगीन ताश निकाल कर माहौल गरमाते रहेंगे, bargaining chips बढ़ाते रहेंगे। असली स्कोर वही तय करेगा जिसके हाथ में सैटेलाइट इमेजरी, drone swarm और Dollar oil circuit की चाबी है।
जो इस हकीकत को समझ गया, वही आज की Middle East की बिसात पढ़ सकता है — और जो पुराने इंकलाबी नारों में फँसा है, उसके लिए जंग सिर्फ शहादत के पोस्टर में बंद कहानी है
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