हरियाणा11जुलाई25*एचसीएस के भरोसे ‘सिंडिकेट’ को तोड़ना मुश्किल!*
*- स्कूलों में जांच एचसीएस की बजाए कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से कराए सरकार*
*- तकनीकी जांच के लिए हरियाणा सरकार की इवैल्यूऐशन पार्टनर है कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी*
*– पार्ट-3 –*
*अजय दीप लाठर/खबर खखाटा 24❌7*
सरकारी स्कूलों के लिए खरीदे गए स्मार्ट क्लासरूम पर अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निरीक्षण की जिम्मेदारी शिक्षा मंत्री महिपाल ढांडा ने महकमे के 7 एचसीएस अधिकारियों को सौंपी है। लेकिन, इन अफसरों के भरोसे शिक्षा विभाग में खरीद प्रक्रिया के दौरान चलने वाले ‘सिंडिकेट’ को तोड़ना बेहद मुश्किल है। इनके निरीक्षण का जो दायरा तय किया गया है, उसे देखकर लगता है कि खरीद प्रक्रिया में चली कमीशनखोरी तक तो कोई आंच भी पहुंचने वाली नहीं है। प्रदेश सरकार वास्तव में दूध और पानी को अलग-अलग करना चाहती है तो उसे कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय को पूरे मामले की जांच सौंपनी चाहिए।
दरअसल, भारत सरकार ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय को हरियाणा सरकार का इवैल्यूऐशन पार्टनर बनाया हुआ है। केयू को जांच सौंपी जाती है तो फिर तकनीकी जांच की जिम्मेदारी उसकी बनती है, फिर वह चाहे एनआईटी की टीम भेजे या आईआईटी की सेवाएं ले। क्योंकि, इस तरह की जांच में टेंडर स्पेसिफिकेशन का मिलान भी जरूरी हो जाता है। और, तमाम इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से संबंधित जांच तकनीकी दक्षता हासिल टीम ही कर सकती है। फिलहाल जिन एचसीएस अधिकारियों को 15 जुलाई तक निरीक्षण के लिए कहा गया है, उनमें अमृता सिंह, कमलप्रीत कौर, ममता, सुरेंद्र सिंह, संजीव कुमार, मयंक वर्मा, हिमांशु चौहान शामिल हैं।
*खरीद प्रक्रिया में शामिल, कैसे रहेंगे निष्पक्ष?*
एचसीएस अमृता सिंह करीब 6 साल से शिक्षा विभाग में तैनात हैं और लगातार खरीद प्रक्रिया का हिस्सा भी रही हैं। ऐसा नहीं है कि जिस तरीके से अकेडमिक सैल ग्लोबस इंफोकॉम कंपनी पर मेहरबान है और 600 करोड़ रुपये से अधिक का कार्य करवा चुकी है, वह इनकी जानकारी में न हो। संभवत: एक ही स्थान पर सबसे लंबे समय तक तैनात रहने वाली वे हरियाणा की एकमात्र एचसीएस अधिकारी हैं। इनके जिम्मे यमुनानगर व पंचकूला जिला लगाया गया है। लेकिन, इनकी रिपोर्ट निष्पक्ष तैयार होगी, इस पर संदेह बना हुआ है।
*सिर्फ 4 बिंदुओं पर ही निरीक्षण क्यों?*
एचसीएस अधिकारियों को सिर्फ 4 बिंदुओं पर निरीक्षण को कहा गया है, जिनमें डिटिजल बोर्ड का प्रयोग, छात्रों व टीचर्स को दिए टैब का उपयोग, आईसीटी लैब का उपयोग व हालत, लेंग्वेज लैब का प्रयोग शामिल हैं। अगर वास्तव में विभाग स्मार्ट क्लासरूम समेत अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों बारे रिपोर्ट तलब करना चाहता है तो फिर उसे निरीक्षण की बजाए जांच का आदेश देना चाहिए। पता करवाना चाहिए कि हार्डवेयर संबंधी क्या समस्याएं आ रही हैं? उपलब्ध डिजिटल सामग्री, एनिमेशन, वीडियो पाठ व क्विज आदि में क्या कठिनाइयां हैं? विषयवार/कक्षा-वार रिपोर्ट्स तक पहुंच व उनके उपयोग में क्या समस्याएं हैं? क्या शिक्षकों को डैशबोर्ड प्रयोग करने की अनुमति है? क्या खंड/जिला शिक्षा अधिकारियों को भी सभी डिजिटल बोर्डों की रिपोर्ट्स की समीक्षा के लिए डैशबोर्ड उपलब्ध हैं? क्या प्रशिक्षण या पुनः प्रशिक्षण की आवश्यकता एवं समस्याएं बनी हुई हैं? इससे संबंधित समस्त प्रश्नों का एक तालिका स्वरूप में सर्वेक्षण तैयार कर विद्यालयों से सूचनाएं एकत्र कर ये एचसीएस अधिकारी विभाग में जमा कराएं। तभी इस प्रयास का वास्तविक लाभ सामने आएगा और विभाग आगामी प्रोजेक्ट्स के लिए सटीक निर्णय ले सकेगा।
*ऐसे निरीक्षण में अमूमन तैयार होती झूठी रिपोर्ट*
स्मार्ट क्लासरूम सरकारी स्कूलों में स्थापित किए गए हैं और स्कूलों में तैनात स्टाफ को अन्य विभागों के मुकाबले जल्द ही अधिकारियों के दबाव में आने वाला माना जाता है। आम तौर पर शिक्षा निदेशालय से कोई फोन डीईओ/बीईओ को आ जाए तो उनकी हालत देखने वाली होती है। ऐसा ही हाल प्रिंसिपल/हैडमास्टर का उनके पास डीईओ/बीईओ का फोन आने पर होता है। सिर्फ कुछ ही ऐसे होते हैं, जो सही-गलत के लिए टकराने को तैयार हो जाते हैं। ऐसे में ये अपने अधीनस्थ स्टाफ से किसी भी तरह की रिपोर्ट तैयार करवा सकते हैं और खुद तैयार की गई रिपोर्ट पर उनके साइन भी ले सकते हैं। शिक्षा विभाग के अंदरूनी सूत्र आशंका जता रहे हैं कि इस मामले में भी इसी तरह रिपोर्ट तैयार हो जाएंगी और बिना फिजिकल वैरिफिकेशन के विभाग को सौंप दी जाएंगी।
*- अजय दीप लाठर, लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं विश्लेषक हैं।*
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