सहारनपुर27अक्टूबर24*रूह कपा देने वाले इतिहास पर फिर एक लेख…*
*रितिन पुंडीर ✍️*
_______बन्दा सिंह बहादुर_______
कहानी एक राजपूत वीर की जिसने प्रथम सिख साम्राज्य की नीव रखी। ये पंजाब के पहले ऐसे सेनापति थे जिन्होंने मुगलो के अजय होने का भ्रम तोडा।
हम बात कर रहे है वीर बंदा सिंह बहादुर की, बाबा बन्दा सिंह बहादुर का जन्म जम्मू स्थित राजौरी क्षेत्र में 16 अक्टूबर अथवा 27 अक्टूबर 1670 ई. तदनुसार विक्रम संवत् 1727, कार्तिक शुक्ल 13 को हुआ था। वह राजपूतों के (मिन्हास) भारद्वाज गोत्र से सम्बद्ध थे और उनका वास्तविक नाम लक्ष्मणदेव था।
इनके पिता का नाम रामदेव मिन्हास और जन्मस्थान डस्सल अथवा तच्छल गांव था।
15 वर्ष की उम्र में हिरणी का शिकार करने पर वैराग्य जीवन धारण किया, वह जानकीप्रसाद नाम के एक बैरागी के शिष्य बन गए और उनका नाम माधोदास पड़ा।
तदन्तर उन्होंने एक अन्य बाबा रामदास बैरागी का शिष्यत्व ग्रहण किया और कुछ समय तक पंचवटी (नासिक) में रहे। वहाँ एक औघड़नाथ से योग की शिक्षा प्राप्त कर वह पूर्व की ओर दक्षिण के नान्देड क्षेत्र को चले गये जहाँ गोदावरी के तट पर उन्होंने एक आश्रम की स्थापना की।
जब गुरु गोविन्द सिंह जी की चमकौर के युद्ध में मुगलो से पराजय हुयी और उनके दो, सात और नौ वर्ष के शिशुओं की नृशंस हत्या कर दी गयी। इसके बाद विचलित होकर वे दक्षिण की और चले गए। 3 सितंबर, 1708 ई. को नान्देड़ में सिक्खों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह ने इस आश्रम को देखा और वहाँ वो लक्ष्मण देव (बंदा बहादुर) से मिले और उन्हें अपने साथ चलने के लिए कहा और उपदेश दिया की-
“राजपूत अगर सन्याशी बनेगा तो देश धर्म को कौन बचाएगा राजपूत का पहला कर्तव्य रक्षा करना है” गुरुजी ने उन्हें उपदेश दिया “अनाथ अबलाये तुमसे रक्षा की आशा करती है, गो माता मलेछों की छुरियो क़े नीचे तडपती हुई तुम्हारी तरफ देख रही है, हमारे मंदिर ध्वस्त किये जा रहे है, यहाँ किस धर्म की आराधना कर रहे हो तुम एक वीर अचूक धनुर्धर, इस धर्म पर आयी आपत्ति काल में राज्य छोड़कर तपस्वी हो जाय??”
पंजाब में सिक्खों की दारुण यातना तथा गुरु गोबिन्द सिंह के सात और नौ वर्ष के शिशुओं की नृशंस हत्या ने लक्ष्मण देव जी को अत्यन्त विचलित कर दिया। माधोदास से नाम पड़ा गुरु बख्श अमृत चखने के बाद! इतिहास में विख्यात हुए बाबा बन्दा बहादुर के नाम से!
गुरु गोबिन्द सिंह के आदेश से ही वह पंजाब आये, गुरु गोविन्द सिंह ने स्वयं उन्हें अपनी तलवार प्रदान की गुरु गोविन्द सिंह ने उन्हें नया नाम बंदा सिंह बहादुर दिया और लक्ष्मण देव हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए सिख धरम में दीक्षित हुए।इनके साथ बाजसिंह परमार, बाबा विनोद सिंह त्रेहन और कई यौद्धा भी गुरूजी ने भेजे।
इसके बाद छद्म वेशी तुर्कों ने धोखे से गुरुगोविन्द सिंह की हत्या करायी, इस खबर से बन्दा सिंह का निश्चय और दृढ़ हो गया।
बन्दासिंह को पंजाब पहुचने में लगभग चार माह लग गया।बन्दा सिंह महाराष्ट्र से राजस्थान होते हुए नारनौल,हिसार और सोनीपत पहुंचे,और पत्र भेजकर पंजाब के सभी सिक्खों से सहयोग माँगा। सभी शिक्खो में यह प्रचार हो गया की गुरु जी ने बन्दा को उनका जत्थेदार यानी सेनानायक बनाकर भेजा है। बंदा के नेतृत्व में वीर राजपूतो ने पंजाब के किसानो विशेषकर जाटों को अस्त्र शस्त्र चलाना सिखाया,उससे पहले जाट खेती बाड़ी किया करते थे और मुस्लिम जमीदार(मुस्लिम राजपूत)इनका खूब शोषण करते थे,देखते ही देखते सेना गठित हो गयी।
इसके बाद बंदा सिंह का मुगल सत्ता और पंजाब हरियाणा के मुस्लिम जमीदारों पर जोरदार हमला शुरू हो गया।
सबसे पहले कैथल के पास मुगल कोषागार लूटकर सेना में बाँट दिया गया,उसके बाद समाना, कुंजुपुरा,सढ़ौरा,के मुस्लिम जमीदारो को धूल में मिला दिया।
फ़रवरी 1710 में बन्दा सिंह ने सढ़ौरा के 20 km दूर शिवालिक की तलहटी में लौहगढ़ में अपना मुख्यालय स्थापित किया।
====== सरहिंद पर कब्ज़ा ======
मई १७१० ईस्वी में सरहिंद का मशहूर युद्ध छप्पर चिरी क्षेत्र में लड़ा गया। इस युद्ध में बाज सिंह जी बंदा बहादुर जी की सेना में दाहिने भाग के प्रमुख थे। सरदार बाज सिंह जी ने नवाब वज़ीर खान से सीधा मुकाबला किया और
एक बरछे के वार से ही उनके घोड़े को मार गिराया तथा वज़ीर खान को बंदी बनाया।
नवाब जिसने गुरु गोविन्द सिंह के परिवार पर जुल्म ढाए थे उसे सूली पर लटका दिया।इस युद्ध में गुरु गोविन्दसिंह जी को शस्त्र विद्या देने वाले बज्जर सिंह राठौर जी भी बुजुर्ग होने के बावजूद वीरता से लड़ते हुए शहीद हुए।
सरहिंद की सुबेदारी सिख राजपूत बाज सिंह पवार को दी गयी,युद्ध जीतने के बाद , सरदार बाज सिंह परमार ने सरहिंद पर 5 साल राज किया।
बन्दा बहादुर ने सतलुज नदी के दक्षिण में सिक्ख राज्य की स्थापना की। उसने खालसा के नाम से शासन भी किया और गुरुओं के नाम के सिक्के चलवाये। बंदा सिंह ने पंजाब हरियाणा के एक बड़े भाग पर अधिकार कर लिया और इसे उत्तर-पूर्व तथा पहाड़ी क्षेत्रों की ओर लाहौर और अमृतसर की सीमा तक विस्तृत किया। बंदा सिंह ने हरियाणा के मुस्लिम राजपूतो(रांघड)का दमन किया और उनके जबर्दस्त आतंक से जाटों को निजात दिलाई। यहाँ मुस्लिम राजपूत जमीदार जाटों को कौला पूजन जैसी घिनोनी प्रथा का पालन करने पर मजबूर करते थे और हरियाणा के कलानौर जैसे कई हिस्सों में आजादी के पहले तक ये घिनोनी प्रथा कायम रही।
====बंदा सिंह बहादुर का सहारनपुर पर हमला====
यमुना पार कर बन्दा सिंह ने सन् 1710 में सहारनपुर पर भी हमला किया,सरसावा और चिलकाना अमबैहटा को रोंदते हुए वो ननौता पहुंचा,ननौता में पहले कभी गुज्जर रहते थे जिन्हें मुसलमानों ने भगा कर कब्जा कर लिया था,जब गूजरों ने सुना कि बन्दा सिंह बहादुर नाम के सिख राजपूत बड़ी सेना लेकर आये हैं तो उन्होंने ननौता के मुसलमानों से हिसाब चुकता करने के लिए बंदा सिंह से गुहार लगाई,और बन्दा सिंह से कहा कि हम गुज्जर भी नानकपंथी हैं। बन्दा सिंह ने उनकी फरियाद मानते हुए 11 जुलाई 1710 में ननौता पर जोरदार हमला कर इसे तहस नहस कर दिया,सैंकड़ो मुस्लिम मारे गए,तब से ननौता का नाम फूटा शहर पड़ गया।
इसके बाद बंदा सिंह ने बेहट के पीरजादा जो गौकशी के लिए कुख्यात थे उन पर जोरदार हमला कर समूल नष्ट कर दिया,यहाँ के स्थानीय राजपूतो ने बंदा सिंह बहादुर का साथ दिया.इसके बाद बंदा सिंह ने रूडकी पर भी अधिकार कर लिया………
===बन्दा सिंह का जलालाबाद(मुजफरनगर)पर हमला===
मुजफरनगर में जलालाबाद पहले राजा मनहर सिंह पुंडीर का राज्य था और इसे मनहर खेडा कहा जाता था। इनका ओरंगजेब से शाकुम्भरी देवी की और सडक बनवाने को लेकर विवाद हुआ। इसके बाद ओरंगजेब के सेनापति जलालुदीन पठान ने हमला किया और एक ब्राह्मण ने किले का दरवाजा खोल दिया। जिसके बाद नरसंहार में सारा राजपरिवार मारा गया। सिर्फ एक रानी जो गर्भवती थी और उस समय अपने मायके में थी,उसकी संतान से उनका वंश आगे चला और मनहरखेडा रियासत के वंशज आज सहारनपुर के भावसी,भारी गाँव में रहते हैं।
इस राज्य पर जलालुदीन ने कब्जा कर इसका नाम जलालाबाद रख दिया। ये किला आज भी शामली रोड पर जलालाबाद में स्थित है।
जलालाबाद के पठानो के उत्पीडन की शिकायत बन्दा सिंह पर गई और कुछ दिन बाद ही इस काठा क्षेत्र के पुंडीर राजपूतो की मदद से जलालाबाद पर बन्दा बहादुर ने हमला किया। बीस दिनों तक सिक्खो और पुंडीर राजपूतो ने किले का घेरा रखा। यह मजबूत किला पूर्व में पुंडीर राजपूतो ने ही बनवाया था ,इस किले के पास ही कृष्णा नदी बहती थी, बंदा बहादुर ने किले पर चढ़ाई के लिए सीढियों का इस्तेमाल किया। रक्तरंजित युद्ध में जलाल खान के भतीजे ह्जबर खान,पीर खान,जमाल खान और सैंकड़ो गाजी मारे गए। जलाल खान ने मदद के लिए दिल्ली गुहार लगाई, दुर्भाग्य से उसी वक्त जोरदार बारीश शुरू हो गई और कृष्णा नदी में बाढ़ आ गई। वहीँ दिल्ली से बहादुर शाह ने दो सेनाएं एक जलालाबाद और दूसरी पंजाब की और भेज दी। पंजाब में बंदा की अनुपस्थिति का फायदा उठा कर मुस्लिम फौजदारो ने हिन्दू सिखों पर भयानक जुल्म शुरू कर दिए। इतिहासकार खजान सिंह के अनुसार इसी कारण बंदा बहादुर और उसकी सेना ने वापस पंजाब लौटने के लिए किले का घेरा समाप्त कर दिया,और जलालुदीन पठान बच गया।
=====बंदा सिंह बहादुर का दुखद अंत=====
लगातार बंदा सिंह की विजय यात्रा से मुगल सत्ता कांप उठी और लगने लगा कि भारत से मुस्लिम शासन को बंदा सिंह उखाड़ फेंकेगा। अब मुगलों ने सिखों के बीच ही फूट डालने की नीति पर काम किया,उसके विरुद्ध अफवाह उड़ाई गई कि बंदा सिंह गुरु बनना चाहता है और वो सिख पंथ की शिक्षाओं का पालन नहीं करता। खुद गुरु गोविन्द सिंह जी की दूसरी पत्नी माता सुंदरी जो कि मुगलो के संरक्षण/नजरबन्दी में दिल्ली में ही रह रही थी, से भी बंदा सिंह के विरुद्ध शिकायते की गई ।माता सुंदरी ने बन्दा सिंह से रक्तपात बन्द करने को कहा,जिसे बन्दा सिंह ने ठुकरा दिया,
जिसका परिणाम यह हुआ कि ज्यादातर सिख सेना ने उसका साथ छोड़ दिया जिससे उसकी ताकत कमजोर हो गयी,तब बंदा सिंह ने मुगलों का सामना करने के लिए छोटी जातियों और ब्राह्मणों को भी सैन्य प्रशिक्षण दिया।
1715 ई. के प्रारम्भ में बादशाह फर्रुखसियर की शाही फौज ने अब्दुल समद खाँ के नेतृत्व में उसे गुरुदासपुर जिले के धारीवाल क्षेत्र के निकट गुरुदास नंगल गाँव में कई मास तक घेरे रखा। पर मुगल सेना अभी भी बन्दा सिंह से डरी हुई थी।
अब माता सुंदरी के प्रभाव में बाबा विनोद सिंह ने बन्दा सिंह का विरोध किया और अपने सैंकड़ो समर्थको के साथ किला छोड़कर चले गए,
मुगलो से समझोते और षड्यंत्र के कारण विनोद सिंह और उसके 500 समर्थको को निकल जाने का सुरक्षित रास्ता दिया गया।
अब किले में विनोद सिंह के पुत्र बाबा कहन सिंह रह किसी रणनीति से रुक गए,इससे बन्दा सिंह की सिक्ख सेना की शक्ति अत्यधिक कम हो गयी।
खाद्य सामग्री के अभाव के कारण उसने 7 दिसम्बर को आत्मसमर्पण कर दिया।कुछ साक्ष्य दावा करते हैं कि गुरु गोविन्द सिंह जी की माता गूजरी और दो साहबजादो को धोखे से पकड़वाने वाले गंगू कश्मीरी ब्राह्मण रसोइये के पुत्र राज कौल ने बन्दा सिंह को धोखे से किले से बाहर आने को राजी किया,ये दावा करने वाले कहते हैं कि यही गंगू ब्राह्मण और राज कौल दरअसल जवाहरलाल नेहरू के पूर्वज थे,किन्तु इस विषय पर जब तक ठोस साक्ष्य नही मिल जाते कुछ भी अधिकारपूर्वक नही कहा जा सकता।
फरवरी 1716 को 794 सिक्खों के साथ वह वीर सिख राजपूत दिल्ली लाया गया। उससे कहा गया कि अगर इस्लाम धर्म गृहण कर ले तो उसे माफ़ कर दिया जाएगा, मगर उस वीर राजपूत ने ऐसा करने से इनकार कर दिया,जिसके बाद उसके पुत्र का कलेजा निकाल कर बंदा सिंह के मुह में ठूस दिया गया। मगर वो सिख यौद्धा बंदा सिंह अविचलित रहा। फिर जल्लादों ने उसके शरीर से मांस की बोटी बोटी नोच कर निकाली। 5 मार्च से 13 मार्च तक प्रति दिन 100 की संख्या में सिक्खों को फाँसी दी गयी। 16 जून को बादशाह फर्रुखसियर के आदेश से बन्दा सिंह तथा उसके मुख्य सैन्य-अधिकारियों के शरीर काटकर टुकड़े-टुकड़े कर दिये गये।
बाबा विनोद सिंह भी दिल्ली आ गए और माता सुंदरी ने बन्दी सिक्खों में से विनोद सिंह के पुत्र कहन सिंह को मुगलो से कहकर बचवा लिया,बन्दा सिंह और बाकि सिक्खों की कोई मदद नही की।
बन्दा सिंह जी की शहादत के कुछ ही दिन बाद बन्दा सिंह के बचे हुए अनुयायियों को बाबा विनोद सिंह ने अमृतसर में काट दिया।
लेकिन कुछ ही वर्ष बाद बाबा विनोद सिंह और उनके समर्थक सिक्खों को भी मुगल सेना ने कत्ल कर दिया।
सिक्ख इतिहास में बाबा बन्दा सिंह बहादुर का बलिदान अविस्मरणीय है लेकिन उन्हें सिक्ख इतिहास में वो सम्मान नही मिला जिसके वो हकदार हैं।
200 वर्षों तक बाद के सिक्ख राजाओं/नेताओ ने बन्दा सिंह को कभी सम्मान नही दिया,
किन्तु अब जाकर सिक्खों ने इन्हें सम्मान देना शुरू किया है क्योंकि बन्दा सिंह का छुपा हुआ इतिहास शोधकर्ताओं द्वारा सामने लाया जाने लगा है जिससे स्पष्ट होता है
कि बन्दा सिंह बहादुर ही वो वीर राजपूत यौद्धा थे जिसने सिक्ख राज्य की नीव रखी थी,जिस वीर यौद्धा को सिक्ख इतिहास में झूठे आरोप लगाकर भुला दिया गया था आज अचानक से सिक्खों द्वारा इनको याद कर सम्मान दिया जाने लगा है क्योंकि इतिहास के छुपे अध्याय अब सामने आने लगे हैं।
==बंदा सिंह बहादुर की सैन्य सफलताओं के परिणाम==
1-सिंह बहादुर ने थोड़े ही समय में मुगल सत्ता को तहस नहस कर दिया,जिससे दक्षिण भारत से मराठा शक्ति को उत्तर भारत में बढ़ने का मौका मिला।
2-उसके बलिदान ने सिख पंथ को नया जीवनदान दिया,पंजाब में मुगल सत्ता इतनी कमजोर हो गयी कि आगे चलकर सिख मिसलो ने पुरे पंजाब पर अधिकार कर लिया।
3-बंदा सिंह ने हरयाणा पंजाब में मुस्लिम राजपूतों(रांघड) की ताकत को भी कुचल दिया,जिससे सदियों से उनके जबर्दस्त आतंक में जी रहे और कौला प्रथा जैसी घिनोनी परम्परा निभा रहे किसानो को बहुत लाभ हुआ। बंदा सिंह ने जट्ट किसानो को सिख पन्थ में लाकर सैन्य प्रशिक्षण देकर मार्शल कौम बना दिया।
4-बन्दा सिंह ने यमुना पार कर सहारनपुर,मुजफरनगर क्षेत्र में भी मुस्लिमो की ताकत को कुचल दिया जिससे इस क्षेत्र में गूजरों को अपनी ताकत बढ़ाने का मौका मिला और आगे चलकर गूजरों ने नजीब खान रूहेला से समझौता कर एक जमीदारी रियासत लंढौरा की स्थापना की।
*आगे जारी है…*
*रितिन पुंडीर ✍️*
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