November 16, 2025

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वैकुण्ठ चतुर्दशी कथायें 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ अलग-अलग काल खंड में तथा क्षेत्रीय जन कथाओं के बीच वैकुण्ठ चतुर्दशी कुछ कथाएँ लोकप्रिय है।

वैकुण्ठ चतुर्दशी कथायें 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ अलग-अलग काल खंड में तथा क्षेत्रीय जन कथाओं के बीच वैकुण्ठ चतुर्दशी कुछ कथाएँ लोकप्रिय है।

वैकुण्ठ चतुर्दशी कथायें
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अलग-अलग काल खंड में तथा क्षेत्रीय जन कथाओं के बीच वैकुण्ठ चतुर्दशी कुछ कथाएँ लोकप्रिय है।

पौराणिक कथा 1
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एक बार की बात है नारद जी पृथ्वी लोक से घूम कर वैकुण्ठ धाम पहुँचते हैं। भगवान विष्णु उन्हें आदरपूर्वक बिठाते हैं और प्रसन्न होकर उनके आने का कारण पूछते हैं।

नारद जी कहते है- हे प्रभु! आपने अपना नाम कृपानिधान रखा है। इससे आपके जो प्रिय भक्त हैं वही तर पाते हैं। जो सामान्य नर-नारी है, वह वंचित रह जाते हैं। इसलिए आप मुझे कोई ऐसा सरल मार्ग बताएं, जिससे सामान्य भक्त भी आपकी भक्ति कर मुक्ति पा सकें।

यह सुनकर भगवान विष्णुजी बोले- हे नारद! मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनो, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन करेंगे और श्रद्धा-भक्ति से मेरी पूजा-अर्चना करेंगे, उनके लिए स्वर्ग के द्वार साक्षात खुले होंगे।

इसके बाद विष्णु जी अपने वैकुण्ठ के द्वारपाल जय-विजय को बुलाते हैं और उन्हें कार्तिक चतुर्दशी को वैकुण्ठ के द्वार खुला रखने का आदेश देते हैं। भगवान विष्णु कहते हैं कि इस दिन जो भी भक्त मेरा थोड़ा सा भी नाम लेकर पूजन करेगा, वह वैकुण्ठ धाम को प्राप्त करेगा।

पौराणिक कथा 2
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एक बार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आए। वहाँ मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने 1000 (एक हजार) स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया।

भगवान श्रीहरि को पूजन की पूर्ति के लिए 1000 कमल पुष्प चढ़ाने थे। एक पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा मेरी आंखें भी तो कमल के ही समान हैं। मुझे कमल नयन और पुंडरीकाक्ष कहा जाता है। यह विचार कर भगवान विष्णु अपनी कमल समान आँख चढ़ाने को प्रस्तुत हुए।

विष्णु जी की इस अगाध भक्ति से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव प्रकट होकर बोले- हे प्रिय विष्णु! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब वैकुण्ठ चतुर्दशी कहलाएगी और इस दिन व्रतपूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी।

भगवान शिव ने इसी वैकुण्ठ चतुर्दशी को करोड़ों सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र, विष्णु जी को प्रदान किया। शिवजी तथा विष्णुजी कहते हैं कि इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहेंगें। मृत्युलोक में रहना वाला कोई भी व्यक्ति इस व्रत को करता है, वह अपना स्थान वैकुण्ठ धाम में सुनिश्चित करेगा।

पौराणिक कथा 3
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धनेश्वर नामक एक ब्राह्मण था जो बहुत बुरे काम करता था, उसके ऊपर कई पाप थे। एक दिन वह गोदावरी नदी में स्नान के लिए गया, उस दिन वैकुण्ठ चतुर्दशी थी। कई भक्तजन उस दिन पूजा अर्चना कर गोदावरी घाट पर आए थे, उस भीड़ में धनेश्वर भी उन सभी के साथ था। इस प्रकार उन श्रद्धालु के स्पर्श के कारण धनेश्वर को भी पुण्य मिला। जब उसकी मृत्यु हो गई तब उसे यमराज लेकर गए और नरक में भेज दिया।

तब भगवान विष्णु ने कहा यह बहुत पापी हैं पर इसने वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन गोदावरी स्नान किया और श्रद्धालुओं के पुण्य के कारण इसके सभी पाप नष्ट हो गए इसलिए इसे वैकुंठ धाम मिलेगा। अत: धनेश्वर को वैकुंठ धाम की प्राप्ति हुई।

पौराणिक कथा 4
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सतयुग की एक घटना का विवरण धार्मिक पुस्तकों में मिलता है। इसके अनुसार, जब भगवान विष्णु को अपनी भक्ति से प्रसन्न कर राजा बलि उन्हें अपने साथ पाताल ले गए, उस दिन आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि थी। चार माह तक बैकुंठ लोक श्रीहरि के बिना सूना रहा और सृष्टि का संतुलन गड़बड़ाने लगा। तब माँ लक्ष्मी विष्णुजी को वापस बैकुंठ लाने लिए पाताल गईं। इस दौरान राजा बलि को भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि वह हर साल चार माह के लिए उनके पास पाताल रहने आएँगे। इसलिए भगवान विष्णु हर साल चार माह के लिए पाताल अपने भक्त बलि के पास जाते हैं। जिस दिन माँ लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु बैकुंठ धाम वापस लौटे, उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी। इस दिन भगवान विष्णु के बैकुंठ लौटने के उत्सव को उनके जागने के उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को श्रीहरि जागने के बाद चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव की पूजा के लिए काशी आए। यहाँ उन्होंने भगवान शिव को एक हजार कमल पुष्प अर्पित करने का प्रण किया। ऐसी ही अनेकानेक पोस्ट पाने के लिये हमारे फेसबुक पेज ‘श्रीजी की चरण सेवा’ को फॉलो और लाईक करें तथा हमारा व्हाट्सएप चैनल ज्वॉइन करें। चैनल का लिंक हमारी फेसबुक पर देखें। पूजा-अनुष्ठान के समय भगवान शिव ने श्रीहरि विष्णुजी की परीक्षा लेने के लिए एक कमल पुष्प गायब कर दिया।
जब श्रीहरि को एक कमल कम होने का अहसास हुआ तो उन्होंने कमल के स्थान पर अपनी एक आँख (कमल नयन) शिवजी को अर्पित करने का प्रण किया। जैसे ही श्रीहरि अपनी आँख अर्पित करनेवाले थे, वहाँ शिवजी प्रकट हो गए।

शिवजी ने विष्णुजी के प्रति अपना प्रेम और आभार प्रकट किया। साथ ही उन्हें हजार सूर्यों के समान तेज से परिपूर्ण सुदर्शन चक्र भेंट किया। भगवान शिव के आशीर्वाद और उनके प्रति विष्णुजी के प्रेम के कारण ही इस दिन को हरिहर व्रत-पूजा का दिन कहा जाता है। भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि जो भी मनुष्य कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। इसीलिए इस तिथि को बैकुंठ चतुर्दशी तिथि भी कहा जाता है।
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