November 17, 2025

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वाराणसी5सितम्बर25*पत्रकारपुरमः बनारस में पत्रकारों के नाम आवंटित भूमि पर जबरिया कब्जा कर रहे दबंग भू-माफिया,

वाराणसी5सितम्बर25*पत्रकारपुरमः बनारस में पत्रकारों के नाम आवंटित भूमि पर जबरिया कब्जा कर रहे दबंग भू-माफिया,

वाराणसी5सितम्बर25*पत्रकारपुरमः बनारस में पत्रकारों के नाम आवंटित भूमि पर जबरिया कब्जा कर रहे दबंग भू-माफिया, बुल्डोजर का धौंस दिखाने वाली योगी सरकार के नुमाइंदे खामोश !*

वाराणसी। वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) द्वारा पत्रकारों को आवंटित जमीन पर भू-माफियाओं का कब्ज़ा दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है। पत्रकारपुरम कॉलोनी के लिए निर्धारित इस जमीन पर बाहरी दबंगों ने जबरिया निर्माण कार्य शुरू कर दिया है। हालात इतने बिगड़ गए हैं कि गिट्टी-बालू और सरिया की गाड़ियां रात-दिन धड़ल्ले से पहुंच रही हैं और ईंट-पत्थरों की दीवारें तेजी से खड़ी हो रही हैं। विडंबना यह है कि इस खुलेआम अवैध गतिविधि को रोकने के लिए न तो वीडीए प्रशासन कोई ठोस कदम उठा रहा है और न ही पुलिस हरकत में आ रही है।
पत्रकारपुरम से जुड़े भूखंडों पर अवैध निर्माण को लेकर वी.डी.ए. द्वारा नोटिस जारी किए गए हैं। कागज़ी कार्रवाई में यह साफ लिखा गया है कि निर्माण कार्य रोक दिया जाए और कब्ज़ाधारियों को जवाब देना होगा। मगर जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। दबंग तत्वों ने न केवल नोटिसों की अनदेखी की, बल्कि और तेज़ी से निर्माण कार्य बढ़ा दिया। स्थानीय लोगों का कहना है कि नोटिस तो महज़ औपचारिकता बनकर रह गए हैं, क्योंकि कब्ज़ा रोकने के लिए न तो बुलडोजर चला और न ही पुलिस बल की तैनाती की गई।

*#पत्रकारों में आक्रोश, प्रशासन मौन*

आवंटित भूखंड पाने वाले पत्रकारों का गुस्सा चरम पर है। वरिष्ठ पत्रकार तुषार शर्मा, पंकज रस्तोगी, राकेश सिंह, कौशल पांडेय, विजय सिंह, रमेश सिंह और शरद मौर्य के नाम आवंटित भूखडों पर भू-माफिया जबरिया कब्जा कर रहे हैं। इन पत्रकारों का कहना है कि वर्षों से उन्हें इस कॉलोनी का इंतज़ार था, लेकिन अब जब जमीन आवंटित हुई तो भू-माफिया उनकी ज़मीन पर कब्ज़ा कर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार तुषार शर्मा ने नाराज़गी जताते हुए कहा, “अगर पत्रकारों की कॉलोनी सुरक्षित नहीं है तो आम नागरिक की बस्ती का क्या होगा? आखिर कब तक भू-माफिया अपनी ताक़त से प्रशासन को ठेंगा दिखाते रहेंगे?” पत्रकारों ने आरोप लगाया कि अधिकारियों और पुलिस की चुप्पी महज़ लापरवाही नहीं बल्कि कहीं न कहीं मिलीभगत का नतीजा है।

*#उपाध्यक्ष की बेबसी*

मामला वीडीए उपाध्यक्ष तक कई बार पहुंच चुका है। पीड़ित पत्रकारों ने ज्ञापन सौंपा, मुलाकात की, लेकिन नतीजा सिर्फ़ आश्वासन ही रहा। उपाध्यक्ष की ओर से कहा गया कि अवैध निर्माण रोका जाएगा, मगर मौके पर जाकर देखने से साफ है कि बुलडोजर नहीं चला, न ही कब्ज़ाधारियों पर कोई एफआईआर दर्ज हुई। इस स्थिति ने उपाध्यक्ष की कार्यक्षमता और वीडीए की साख दोनों पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
पत्रकारपुरम प्रकरण ने स्थानीय नागरिकों को भी विचलित कर दिया है। वरिष्ठ पत्रकार शरद मौर्य का कहना है कि अगर पत्रकारों की कॉलोनी पर दबंग कब्ज़ा कर सकते हैं तो फिर आम आदमी की कॉलोनी का क्या होगा। सरकार बुलडोजर की बात करती है, लेकिन यहां बुलडोजर भू-माफियाओं के घरों तक क्यों नहीं पहुंचता? प्रशासन किस दबाव में है?”लोगों में यह भी डर है कि जब कब्ज़ाधारी इतनी तेज़ी से पक्के मकान खड़े कर लेंगे, तो बाद में उन्हें हटाना और भी मुश्किल हो जाएगा।

*#कानूनी पहलू और अगला कदम*

वीडीए के रिकॉर्ड के मुताबिक जिन भूखंडों पर अवैध निर्माण हो रहा है, वे पत्रकारों के नाम से आवंटित किए जा चुके हैं। ऐसे में कब्ज़ाधारियों की गतिविधि न केवल गैरकानूनी है, बल्कि यह कानून-व्यवस्था के लिए खुली चुनौती है। प्रशासनिक खामोशी और पुलिस की उदासीनता ने इस चुनौती को और गंभीर बना दिया है।
बड़ा सवाव यह है कि क्या प्रशासन बढ़ते आक्रोश और पत्रकारों के विरोध के बाद एक्शन लेगा या फिर यह मामला भी वर्षों तक फाइलों में दबा रहेगा। फिलहाल पत्रकारपुरम की जमीन पर चल रहे जबरिया निर्माण ने यह साबित कर दिया है कि वाराणसी में भू-माफियाओं का नेटवर्क प्रशासन और पुलिस से कहीं ज्यादा ताक़तवर है। बुल्डोजर की धौंस देने वाली सरकार भूमाफिया के आगे बौनी नजर आ रही है।