लखनऊ25अक्टूबर25**🦋आज की प्रेरणा🦋*
सिर्फ कार्यों को तब श्रेष्ठ रूप से करना जब कोई हमें देख रहा हो, ये साधारण है पर तब भी कार्यों को श्रेष्ठ रूप से करना जब कोई भी हमें नहीं देख रहा हो, ये महानता है।
*आज से हम* बिना किसी उम्मीद के श्रेष्ठ रूप से कार्य करें…
*💧TODAY’S INSPIRATION💧*
Performing well when someone is watching is ordinary; performing well when no one is watching is extraordinary.
*TODAY ONWARDS LET’S* perform well without any expectations.
[25/10, 6:04 am] +91 87658 77512: *जीवन में हमेशा ऐसे व्यक्ति को संभालकर रखना चाहिए जिसने हमें ये तीन भेंट दी हों साथ,समय और समर्पण। खुद को महत्व दो, यहाँ हर समय कोई और हमें देनेवाला नहीं है। अपने आप को महत्व दें.*
*यहाँ दूसरे हम पर पांव रखकर आगे निकल जाने वाले लोग है, दूसरों के लिये हर समय अपने को जाया नही करना है, अपनी जिंदगी खुद जीना है, हमारे निर्णयों पर हमारे व्यक्तित्व की मोहर होनी चाहिये। बाकी कर्म करते समय अधिक की इच्छा करना और फल भोगते समय संतुष्ट रहना यहीं संतोष की नीति है।*
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*जय श्री राम । जय श्री राम*
*धर्म की जय हो।*
*अधर्म का नाश हो॥*
*प्राणियों में सद्भावना हो।*
*विश्व का कल्याण हो।*
*वंदेभारत । शुभ दिवस*
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
*2025*
[25/10, 6:04 am] +91 87658 77512: *🏵️सूर्य किरण चिकित्सा के लाभ और विधि🏵️*
*सूर्य किरण चिकित्सा क्या है ?*
*सारी सृष्टि को ऊर्जा प्रदान करने वाले भगवान सूर्य की किरणों में अपार रोगनाशक शक्ति छुपी होती है। इसलिए ऋग्वेद में सूर्य को रोगनाशक कहा गया है अथर्ववेद में सर्य को औषधिकारक कहा गया है-सूर्यः कृणोतु भेषजं। जिसमें सूर्य चिकित्सा के सिद्धान्त को प्रतिपादित करते हुए सूर्य किरणों से विभिन्न रोगों का इलाज बताया गया है। सूर्य उपासना व सूर्य को जल देना सूर्य किरण चिकित्सा के ही रूप हैं। सूर्य की किरणों में नीला, लाल व हरा ये तीन रंग प्रमुख हैं। शेष बैंगनी, आसमानी, पीला व नारंगी ये उपरोक्त तीनों रंगों के मिश्रण है। रंगों में प्रमुख गुण भी भिन्न-भिन्न हैं*
*1.नीला-आसमानी-बैंगनी-ठण्डक एवं शांति प्रदान करते हैं।*
*2. लाल-पीला-नारंगी-गर्मी एवं उत्तेजना।*
*3. हरा-सभी रंगों के मध्य संतुलन बनाये रखता है व रक्त शोधक वर्तमान में सूर्य किरण चिकित्सा में सात रंगों के स्थान पर प्रत्येक समूह में से एक रंग का ही उपयोग अधिक प्रचलित है; जिससे चिकित्सा पद्धति अधिक सरल बन गयी है। प्रथम तीन रंगों के समूह में से प्रायः नीला रंग, अन्तिम रंगों के समूह में से नारंगी एवं बीच के हरे रंग का अधिकतर उपयोग किया जाता है। सूर्य किरण चिकित्सा के लिए सूर्य किरणों से तप्त पानी उपयोग करने की विधि सर्वाधिक प्रचलित है।*
*1. नीला पानी*
*नीला रंग ठण्डा, शान्तिदायक, कीटाणुनाशक गर्मी के प्रकोप से उत्पन्न रोगों में विशेष प्रभावशाली होता है।*
*• इसके उपयोग से मानसिक तनाव कम होता है।*
*• कीटाणु नाशक होने के कारण मवाद पड़ने की अवस्थाओं में काफी लाभप्रद होता है।*
*• शरीर की गर्मी, हाथ पैरों की जलन, प्यास की अधिकता, तेज़ बुखार, हैजा, अजीर्ण, दस्त, अनिद्रा, मिरगी, पागलपन, हिस्टीरिया, उच्च रक्तचाप, मूत्रावरोध, मूत्र में जलन, शरीर में किसी प्रकार का जहर फैल जाना, जैसे रोगों में नीले रंग की दवा काफी लाभप्रद होती है।*
*• गले, गर्दन, मुंह, मस्तिष्क एवं सिर से संबंधित रोगों पर नीले रंग का अधिक अनुकूल प्रभाव पड़ता है।*
*सावधानी व उपयोग विधि*
*नीले रंग का प्रयोग सदैव भोजन या नाश्ते के आधा घण्टे पूर्व करना चाहिए। लकवा, सन्धिप्रदाह, जोड़ों का दर्द (गठिया), विभिन्न वात, कम्पनजन्य रोग व ठण्ड से उत्पन्न विकार और अधिक कब्ज़ की शिकायत में नीले रंग का प्रयोग नहीं करना चाहिए।*
*2. नारंगी पानी*
*• नारंगी रंग शरीर के कमजोर तथा निष्क्रिय अंगों को मजबूत एवं गतिशील बनाता है।*
*• पाचन शक्ति सुधारता है। भूख न लगने वाले रोगों को दूर करता है।*
*• इस रंग का प्रभाव गर्म, उत्तेजक शक्तिवर्धक होने से सर्दी से होने वाले रोगों में विशेष लाभदायक सिद्ध होता है।*
*• आमाशय, तिल्ली, लीवर, आंतों, फेफड़ों व हाथ-पैर के रोगों में इसका अधिक अनुकूल प्रभाव पड़ता है।*
*• यह आयोडीन की कमी मिटाता है।*
*• रक्त में लाल कण बढ़ाता है*
*• मांसपेशियां स्वस्थ बनाता है और झुर्रियां मिटाने में सहायक होता है।*
*• रक्त संचालन एवं स्नायु संस्थान को सक्रिय बनाता है।*
*• भूख न लगना, गैस, जोड़ों का दर्द, खांसी, बच्चों की बिस्तर में पेशाब करने की आदत, निम्न रक्त चाप, स्नायु दुर्बलता आदि रोगों को मिटाने की अद्भुत क्षमता रखता है।*
*• नारंगी रंग के सेवन से पेट की गैस दूर होती है।*
*• अम्लता वाले रोगियों को विशेष लाभ होता है।*
*• वृद्धों के लिये ताकत की दवा के समान होता है।*
*सावधानी व उपयोग विधि*
*नारंगी रंग की दवा का प्रयोग सदैव भोजन या नाश्ते के 15 मिनट बाद और 30 मिनट के भीतर करना चाहिये। खाली पेट इसका सेवन नहीं करना चाहिए। छोटे बच्चों के लिए एक चम्मच, किशोरों के लिए चार चम्मच व बड़ों के लिए आठ चम्मच (छोटे चम्मच) मात्रा पर्याप्त रहती है। इसका प्रयोग दिन में दो या तीन बार करना चाहिए, इससे अधिक नहीं व लाभ मिलने पर सेवन बन्द कर देना चाहिए।*
*3. हरा पानी*
*• हरा रंग गर्म और ठण्डे रंग के बीच का रंग होने से गर्मी तथा सर्दी के प्रभावों को संतुलित करता है।*
*• यह शरीर की गन्दगी बाहर निकालने, शरीर का ताप संतुलित रखने, कब्ज़ मिटाने तथा खून को साफ करने में विशेष सहायक होता है।*
*• शरीर के विषैले तत्वों को शरीर से बाहर निकाल फेंकने की अद्भुत क्षमता के कारण छूत की बीमारियों के निवारण में यह बहुत ही उपयोगी होता है।*
*• अल्सर, टाइफाइड, चेचक, सूखी खांसी, खुले घाव, पथरी, रक्तचाप, मिरगी, हिस्टीरिया, मुंह में छाले तथा शरीर के किसी भी भाग में पीली पीब पड़ने की अवस्था में उनको नष्ट करने में काफी लाभप्रद होता है। •आंतों, गुर्दो, मूत्राशय, त्वचा, कमर व पीठ के नीचे के अंगों से संबंधित रोगों में हरा रंग अधिक प्रभावशाली होता है।*
*• शरीर में इस रंग की कमी से विभिन्न चर्म रोग तथा रक्त दोषों की सम्भावनायें बढ़ जाती हैं। नेत्र रोगों में भी यह विशेष लाभकारी होता है।*
*उपयोग विधि*
*हरे रंग की दवा का प्रयोग सदैव प्रात:काल खाली पेट या भोजन के एक घण्टा पहले करना चाहिये। सुबह शाम खाली पेट एक-एक कप सेवन उचित रहता है।*
*रंगीन पानी बनाने की विधि*
*जिस रंग का पानी बनाना हो उस रंग की साफ धुली हुई काँच की बोतल में शुद्ध जल इतना भरें कि एक चौथाई बोतल खाली रहे। बोतल कांच की ही होनी चाहिए, प्लास्टिक की नहीं। यदि बोतल उस रंग की न मिले तो उस रंग का सिलोफेन पेपर सफेद कांच की बोतल पर लपेट देना चाहिए।*
*पानी भर कर ढक्कन, कार्क या लकड़ी का डॉट या टिन का ढक्कन अच्छी तरह लगा कर लकड़ी के एक पटिये (फटटी) पर रख कर धूप में रखें। शीतकाल में 7-8 घण्टे और ग्रीष्मकाल में 5-6 घण्टे रखने से पानी सूर्य की किरणों में तप्त हो कर औषधीय गुण धारण कर लेता है। धूप समाप्त होने से पहले ही बोतल को पटिया सहित उठाकर अन्दर कमरे में पटिये पर ही रखना चाहिए।*
*एक बार तैयार किया हुआ पानी तीन दिन तक गुण-प्रभाव वाला बना रहता है। तीन दिन बाद नया ताजा पानी भर कर फिर से पानी तैयार करना चाहिए। ध्यान रहे, बोतल पर किसी दूसरे रंग की छाया नहीं पड़नी चाहिए।*
*सूर्यतापित नारियल नीला तेल*
*इस तेल को बनाने के लिए नीले रंग की कांच की बोतल में तीन चौथाई नारियल तेल भरकर अच्छी तरह डाट या ढक्कन लगा दें। अगर नीले रंग की बोतल न मिले तो सफेद रंग की बोतल पर नीला सेलोफेम काग़ज़ लपेटकर भी काम चला सकते हैं। आप इस बोतल को लकड़ी के पट्टे पर ऐसे स्थान पर रखें जहां दिन भर धूप रहे*
*बोतल को रोजाना लगभग आठ घंटे धूप में रखें और शाम होने से पहले पट्टे समेत लाकर कमरे में रख लें। धूप में धूल आदि बोतल के ऊपर लगी हो तो उसे भी साफ कपड़े से पोंछ दिया करें।*
*इस तरह लगभग 45 दिनों तक धूप दिखाने पर यह तेल सूर्यकिरणों से साधित हो जाता है और नीले रंग के सभी रोग निवारक गुण इसमें आ जाते हैं।*
*रात को सोने से पूर्व उंगलियों के पोरों से बालों की जड़ों में इस तेल की मालिश करनी चाहिए। इससे बालों का जल्दी सफेद होना, कड़े होना, गिरना व टूटना आदि रुकता है।*
*सिर की त्वचा के विकार जैसे रूसी या सीकरी, खुश्की, फोड़े-फुसियां आदि दूर होते हैं तथा केश काले, लम्बे, घने तथा रेशम की तरह मुलायम होते हैं।*
*नीले तेल की मालिश से सिर में तरावट रहती है तथा नींद अच्छी आती है। इस तेल की विशेषता यह है कि एक बार बनाने के बाद यह तीन माह तक गुणकारी बना रहता है। तीन माह बाद सिर्फ तीन दिन धूप दिखा देने से यह अगले तीन माह के लिए पुन: उपयोगी बन जाता
[25/10, 6:04 am] +91 87658 77512: 2️⃣5️⃣❗1️⃣0️⃣❗2️⃣0️⃣2️⃣5️⃣
*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*
*!! महान सोच !!*
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पति पत्नी दोनों डाक्टर थे। पत्नी ने तलाक़ का मुकदमा दायर कर दिया था। फैमिली कोर्ट में फैसले से एक दिन पूर्व जज ने, एक और अंतिम मौक़ा देते हुए दोनों से पृथक्-पृथक् अकेले में सवाल जवाब किये। जज साहब ने डॉ० पति को तो इस बात के लिए तैयार कर लिया कि वह पत्नी के साथ रहने को तैयार है,किन्तु डॉ० पत्नी को तैयार नहीं कर पाये। आखिर तलाक हो गया। एक दिन अस्पताल में जज साहब और महिला डॉ० मिल गये। औपचारिकतावश महिला डॉ० ने अपने चेम्बर में उन्हें चाय पर आमंत्रित कर लिया। चाय पीते हुए वे बोले- ‘डा० साहिबा, अब यहाँ मैं न जज हूँ, और न आप वादी, आपका तलाक़ हो चुका है, लेकिन मैं आपकी खामोशी का राज़ नहीं समझ पाया। आप द्वारा तलाक़ का मूल कारण वह नहीं था, जो साक्ष्यों और घटनाओं से सिद्ध हुआ है। वह तलाक़ की वज़ह कतई नहीं थे। आपको कोई एतराज न हो, तो मैं अब वास्तविकता जानना चाहता हूँ।’
‘मुझे इससे भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता जज साहब, कल उसके साथ कुछ भी घटे, उसे सज़ा हो, मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मैं बस उस वहशी से मुक्त होना चाहती थी। मैं नहीं चाहती थी कि मेरे तलाक़ के कारण उसका जीवन, उसकी नौकरी ख़तरे में पड़ जाये। मैं घाव को नासूर नहीं बनने देना चाहती थी।’ डॉ० महिला ने कहा।
‘फिर तो अवश्य ही कोई गम्भीर मामला था।’
‘हम दोनों ही डाक्टर हैं, मैं चार माह से गर्भवती हूँ, एक तो मैं नहीं चाहती थी, कि मेरा गर्भ नौ महीने में, मेरे तनाव के कारण अपाहिज या कोई अनोखी बीमारी लेकर पैदा हो। मैं यह समय बहुत ही स्वंस्थम, शांति और खुशी खुशी बिताना चाहती थी। हर तनाव मुझे स्वीकार था, किन्तु हद तो तब हो गयी जब —–‘ वह रुक गई, उसका गला भर्राने लग गया था। संयत हो कर वह फिर बोली- ‘वे लड़का चाहते थे और उसके लिए भ्रूण परीक्षण पर जिद कर रहे थे, जिसे करवाना हमारे लिए बहुत आसान था,लेकिन यह मेरा अपमान था और भ्रूण परीक्षण एक सामाजिक अपराध भी है।’
‘ओह!’ जज साहब के मुँह से निकला।
‘हाँ, इसीलिए मैंने तलाक़ का यह कारण नहीं लिखा था, मुझे तो आसानी से तलाक़ मिल जाता, किन्तु उन्हें सज़ा हो जाती, उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता। अपने पेशे से वे बहुत मेहनती और ईमानदार हैं, इसलिए मैंने मूल कारण को अलग रखा। सज़ा उन्हें दिलवानी थी, उनके पेशे को नहीं। इसके अलावा भी डॉक्टर होने के साथ साथ पारिवारिक सामंजस्यथता के अभाव से भी मैं, उनसे ही नहीं परिवार से भी बहुत प्रताड़ित हो रही थी, इसलिए इस कारण को गौण रखते हुए,मैंने तलाक़ का अन्य कारण लिखा था। यह हथियार तो मेरे पास ब्रह्मास्त्र की तरह कभी भी इस्तेमाल करने के लिए सुरक्षित था।’ डॉक्टर ने कहा।
‘इतना होने पर भी तुमने उस आदमी को बचा लिया, जो भविष्य में किसी दूसरी स्त्री के लिए अभिशाप बन सकता है।’ जज साहब बोले।
‘हम सामाजिक प्राणी हैं, ईश्वर पर आस्था रखते हैं, भविष्य के सुंदर स्वप्न देखते अवश्य हैं, किन्तु जीते वर्तमान में हैं,’कर्मण्ये वाधिकारस्ते—-‘ गीता के इस संदर्भ को ध्यान में रखते हुए भविष्य के अच्छे बुरे कर्मों का हिसाब किताब ईश्वर पर छोड़ देते हैं। मुझे तो बस गर्भ में पल रही इस विलक्षण प्रतिभा के भविष्य के ताने-बाने बुनना है,किंतु वर्तमान तनाव रहित और खुशनुमा जीना है।’ उसने आगे कहा- ‘ऐसी ही अन्य कुरीतियों के लिए नारी को ही पहल करनी होगी।’
ऑपरेशन का बुलावा आ गया था। जज साहब से क्षमा माँगते हुए वह आपरेशन थियेटर की ओर चल दी। जिस समय जज साहब चेम्बर से बाहर निकल रहे थे, वे उसकी महानता के बारे में सोच रहे थे।
*सदैव प्रसन्न रहिये – जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है – उसके पास समस्त है।।*
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