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लखनऊ25अक्टूबर25*🚩🌺नज़र का ऑपरेशन हो सकता है लेकिन नजरिए का नहीं*
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*🚩🌺यह विषय “नज़र का ऑपरेशन हो सकता है लेकिन नजरिए का नहीं” एक गहन जीवन दर्शन को व्यक्त करता है। यह वाक्य केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि मानवीय सोच, दृष्टिकोण और मानसिकता की वास्तविकता का दर्पण है।*
*🚩🌺नज़र यानी आंखों की दृष्टि चिकित्सा विज्ञान से सुधारी जा सकती है, परंतु नजरिया – यानी देखने, समझने और परखने का तरीका – यह व्यक्ति के अनुभव, संस्कार, शिक्षा और आत्मबोध से ही विकसित होता है। इसे किसी अस्पताल या सर्जरी से नहीं बदला जा सकता।एक इंसान दो आंखों से दुनिया देखता है, परंतु उसका नजरिया ही तय करता है कि वह क्या देखेगा। उदाहरण के लिए, बारिश में कोई व्यक्ति कीचड़ देखता है, तो कोई हरियाली।*
*🚩🌺कोई सूरज की तेज़ किरणों को झुलसाने वाली मानता है, तो कोई उन्हें जीवनदायी ऊर्जा समझता है। यही फर्क नज़र और नजरिए में है। नज़र केवल बाहरी रूप देखती है, नजरिया भीतर छिपे अर्थ को पहचानता है।*
*🚩🌺नज़र का ऑपरेशन डॉक्टर कर सकता है, लेकिन नजरिए का नहीं, क्योंकि नजरिया आत्मा के भीतर की समझ, विचारों की पवित्रता और हृदय की गहराई में बसता है। जिस व्यक्ति का दृष्टिकोण सकारात्मक होता है, वह कठिन परिस्थितियों में भी अवसर खोज लेता है।*
*🚩🌺वहीं नकारात्मक दृष्टिकोण वाला व्यक्ति आरामदायक स्थिति में भी शिकायत करने का कारण ढूंढ लेता है। यह मनुष्य की सबसे बड़ी विडंबना है कि वह दूसरों को बदलना चाहता है, पर खुद के नजरिए को नहीं।मनुष्य के जीवन में नजरिया ही उसकी दिशा तय करता है।*
*🚩🌺सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति असफलता में सीख देखता है, और आलोचना में सुधार का अवसर। जैसे महात्मा गांधी ने अंग्रेज़ों की कठोरता को घृणा से नहीं, बल्कि करुणा और अहिंसा के नजरिए से देखा—इसलिए वे विश्वभर के लोगों के प्रेरणास्रोत बने।*
*🚩🌺वहीं यदि उनका नजरिया भी प्रतिशोध से भरा होता, तो इतिहास की दिशा कुछ और होती।नजरिया केवल व्यक्तिगत जीवन में नहीं, समाज और राष्ट्र निर्माण में भी निर्णायक भूमिका निभाता है। जब समाज का सामूहिक नजरिया सकारात्मक होता है, तब विकास संभव होता है।*
*🚩🌺लेकिन जब दृष्टिकोण संकीर्ण, विभाजक या स्वार्थपरक हो जाता है, तब प्रगति ठहर जाती है। यही कारण है कि शिक्षा का असली उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि सोचने का तरीका बदलना होता है।*
*🚩🌺यदि हम परिवार, मित्रता, या कार्यस्थल की बात करें, तो वहां भी नजरिए का प्रभाव सबसे अधिक होता है। एक ही घटना को दो व्यक्ति अलग-अलग दृष्टिकोण से देखते हैं। उदाहरणस्वरूप, किसी का कड़ा सुझाव किसी को आलोचना लगता है, तो किसी को सुधार का अवसर। यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम चीज़ों को किस नजरिए से देखते हैं। वास्तव में, रिश्ते तब बिगड़ते नहीं जब नज़र में खोट आती है, बल्कि जब नजरिए में संकीर्णता आ जाती है।*
*🚩🌺नजरिया अक्सर अनुभवों से बनता है। इसलिए इसे बदलना आसान नहीं, परंतु असंभव भी नहीं। जैसे शरीर की मांसपेशी अभ्यास से मजबूत होती है, वैसे ही मन का नजरिया सकारात्मक चिंतन, सत्संग, ध्यान, और आत्ममंथन से विकसित होता है। जब व्यक्ति स्वयं को समझने लगता है, तब उसका नजरिया बदलने लगता है। जब कोई व्यक्ति दूसरों की भावनाओं को समझना आरंभ करता है, तब उसका दृष्टिकोण मानवीय बन जाता है।धार्मिक ग्रंथों में भी दृष्टिकोण के महत्व का उल्लेख है।*
*🚩🌺भगवद् गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्धभूमि पर शरीर से नहीं, बल्कि आत्मा के नजरिए से देखने का उपदेश दिया था। वही नजरिया अर्जुन को भ्रम और मोह से बाहर लाया। इस प्रसंग से यह स्पष्ट होता है कि जब दृष्टिकोण आध्यात्मिक होता है, तो व्यक्ति कर्म करते हुए भी शांत रहता है।*
*🚩🌺आज के युग में जब तनाव, तुलना और नकारात्मकता बढ़ रही है, तब जरूरत नज़रों के इलाज की नहीं, नजरिए के परिवर्तन की है। हमें यह समझना होगा कि समस्याएं हमारी सोच से बड़ी नहीं होतीं, बल्कि हमारा नजरिया उन्हें बड़ा बना देता है। यदि हम अपने नजरिए को सुधार लें, तो जीवन अपने आप संवर जाता है।*
*🚩🌺अतः यह कहा जा सकता है कि आंखों की रोशनी खोना उतना बड़ा दुख नहीं, जितना दृष्टिकोण खोना। क्योंकि नज़र हमें दुनिया दिखाती है, लेकिन नजरिया हमें जीवन का अर्थ सिखाता है। नज़र की सीमा शरीर तक है, नजरिए की पहुंच आत्मा तक।*
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