लखनऊ*10 SEPTEMBER 2025*यूपीआजतक न्यूज़ चैनल पर🦋 *आज की प्रेरणा* 🦋
भगवान का प्यार सागर की तरह है। उसके आरंभ को देख सकते हैं पर अंत को नहीं।
*आज से हम* भगवान के अनंत प्यार का अनुभव करें…
💧 *TODAY’S INSPIRATION*💧
God’s love is like an ocean. You can see its beginning but not its end
*TODAY ONWARDS LET’S* experience God’s infinite love.
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[10/09, 6:07 am] +91 87658 77512: अभिमान में हृदय कठोर होता है, नम्रता नहीं होती। अकड कर रहता है अभिमान। जैसे मैंने दान दिया है, देने वाला भगवान हैं वह अभिमान करता ही नहीं।
जीव मालिक नहीं हो सकता,जीव तन का भी मालिक नहीं तो धन का मालिक कैसे हो सकता है।जीव कभी मालिक नहीं हो सकता।
यह तन भी हमारा नहीं तो धन हमारा कैसे।फिर हम किस आधार पर कहते हैं मैंने किया। मालिक भगवान हैं और जीव मुनीम है।मस्तक में बुद्धि रहती है और बुद्धि में काम सोया है।
जप तप दान करने से तन से काम का ह्रास होता है बुद्धि का काम कोई निकलता नहीं वह जुगत भिडाता रहता है इस बुद्धि का भ्रम केवल गुरू ही सही मार्ग पर लाते हैं।
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जय श्री राम । जय श्री राम
धर्म की जय हो।
अधर्म का नाश हो॥
प्राणियों में सद्भावना हो।
विश्व का कल्याण हो।
वंदेभारत । शुभ दिवस
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
2025
[10/09, 6:07 am] +91 87658 77512: 1️⃣0️⃣❗0️⃣9️⃣❗2️⃣0️⃣2️⃣5️⃣
*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*
*!! अनुशासन के बिना विकास नहीं !!*
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प्राचीन समय में एक नगर था। वहां एक मठ था। उस मठ में एक वरिष्ठ भिक्षु रहते थे। उनके पास अनेकों सिद्धियां थीं, जिसके चलते उनका सम्मान होता था। सम्मान बहुत बड़ी चीज होती है ये वो जानते थे। इसलिए उनकी महत्वाकांक्षा और कुछ न थी।
एक दिन दोपहर के समय वह अपने शिष्यों के साथ ध्यान कर रहे थे। अन्य भिक्षु शिष्य भूखे थे। तब वरिष्ठ भिक्षु ने कहा, ‘क्या तुम भूखे हो?’ वह भिक्षु बोला, ‘यदि हम भूखे भी हों तो क्या?’ मठ के नियम के अनुसार दोपहर में भोजन नहीं कर सकते हैं।
वरिष्ठ भिक्षु बोले, ‘तुम चिंता मत करो मेरे पास कुछ फल हैं।’ उन्होंने वह फल शिष्य भिक्षु को दे दिए। उसी मठ में एक अन्य भिक्षु थे वह मठ के नियमों को लेकर जागरुक रहते थे। वह एक सिद्ध पुरुष थे। लेकिन ये बात उनके सिवाय और कोई नहीं जानता था।
अगले दिन उन्होंने घोषणा की कि जिसने भी भूख के कारण मठ का नियम तोड़ा है। उसे मठ से निष्काषित किया जाता है। तब उन वरिष्ठ भिक्षु ने अपना चोंगा उतारा और हमेशा के लिए उस मठ से चले गए।
*शिक्षा:-*
अनुशासन के बिना सच्ची प्रगति संभव नहीं है। वरिष्ठ भिक्षु ने ऐसा ही किया। दरअसल यह याद रखना हमेशा जरूर है कि जीवन में जो सफलता या शक्ति हासिल हुई है, वह कठोर अनुशासन के फलस्वरूप ही मिलती है।
*सदैव प्रसन्न रहिये – जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है – उसके पास समस्त है।।*
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