October 25, 2024

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रायबरेली25अक्टूबर24*टूक गांव में फल फूल रहा सूदखोरी का धंधा प्रशासन मौन

रायबरेली25अक्टूबर24*टूक गांव में फल फूल रहा सूदखोरी का धंधा प्रशासन मौन

रायबरेली25अक्टूबर24*टूक गांव में फल फूल रहा सूदखोरी का धंधा प्रशासन मौन

महराजगंज/रायबरेली। क्षेत्र के टूक गांव में बिना लाइसेंस सूदखोरी का धंधा जोरों पर फल फूल रहा है जिसमें गांव के ही दबंग लोगों द्वारा गरीब व असहाय लोगों को पैसा देकर ज्यादा पैसा वापसी लेना व जमीन पर जबरन कब्जा की चर्चा संपूर्ण क्षेत्र में जोरों पर है। आपको बता दे की कोतवाली पुलिस को दी गई तहरीर में टूक गांव निवासी रामशंकर पुत्र स्वर्गीय दाताराम ने कहा है कि गांव के ही निवासी छोटे सिंह पुत्र मुनीष सिंह चंद्रभान सिंह पुत्र स्वर्गीय शिव शंकर सिंह द्वारा मुझ प्रार्थी को एक वर्ष पहले लगभग ₹40000(चालिस हजार) 15% (पन्द्रह प्रतिशत) ब्याज पर दिया था इसके बदले मुझ प्रार्थी का पन्द्रह विश्वा खेत भी रेहन रखा था। जिस पर फसल लगाकर फसल काटने का भी काम करते रहे हैं। जबकि दिनांक 22 अक्टूबर024 को मुझ प्रार्थी द्वारा छोटे सिंह व चंद्रभान सिंह को₹100000(रुपए एक लाख) ब्याज सहित वापस कर दिया फिर भी दबंग प्रतिपक्षी गण खेत नहीं छोड़ रहे हैं और मना करने के बाद भी जबरन खेत जोत कर कब्जा कर लिए हैं ।जबकि मुझ प्रार्थी के घर पर आकर आज दिन बृहस्पतिवार को गाली गलौज कर जान से मारने की धमकी भी दी है तथा कहा कि तुमने जो ₹100000(एक लाख) दिए हैं वह गांव के लोगों से क्यों बता रहे हो जबकि मैं प्रार्थी असहाय व गरीब व्यक्ति हूं और दोनों दबंग प्रतिपक्षी गण सरहंग किस्म के व्यक्ति हैं यदि जल्द ही पुलिस प्रशासन ने इन पर कठोर कार्रवाई न की तो कोई अप्रिय घटना घट सकती है।

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Taza Khabar

संस्कृत विभाग की शोध संगोष्ठी संपन्न वाराणसी से प्राची राय यूपीआजतक गाजीपुर। स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गाजीपुर के भाषा संकाय के अन्तर्गत संस्कृत विभाग की पूर्व शोध प्रस्तुत संगोष्ठी का आयोजन विभागीय शोध समिति एवं अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ के तत्वावधान में महाविद्यालय के सेमिनार कक्ष में किया गया। जिसमें महाविद्यालय के प्राध्यापक, शोधार्थी व छात्र- छात्राएं उपस्थित रहे। उक्त संगोष्ठी मे संस्कृत विभाग शोधार्थिनी रजनी सिंह ने अपने शोध-प्रबन्ध शीर्षक ‘‘ब्रह्मवैवर्तपुराण: एक समीक्षात्मक अध्ययन’’ नामक विषय पर शोध प्रबन्ध व उसकी विषय वस्तु प्रस्तुत करते हुए कहा कि ब्रह्मवैवर्त पुराण मुख्यतः वैष्णव पुराण है। इसके प्रमुख प्रतिपाद्य देवता विष्णु-परमात्मा श्रीकृष्ण हैं। यह चार खण्डों में विभाजित है- ब्रह्मखण्ड, प्रकृति खण्ड, गणपतिखण्ड तथा श्रीकृष्णजन्मखण्ड। ब्रह्मखण्ड में सबके बीज रूप परमब्रह्म परमात्मा (श्रीकृष्ण) के तत्त्व का निरुपण है। प्रकृतिखण्ड में प्रकृति स्वरूपा आद्याशक्ति (श्री राधा) तथा उनके अंश से उत्पन्न अन्यान्य देवियों के शुभ चरित्रों की चर्चा है। गणपतिखण्ड में (परमात्मास्वरूप) श्री गणेश जी के जन्म तथा चरित्र आदि से सम्बन्धित कथाएँ हैं। श्रीकृष्ण जन्मखण्ड में (परमब्रह्म परमात्मास्वरूप) श्री कृष्ण के अवतार तथा उनकी मनोरम लीलाओं का वर्णन है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में भगवान श्रीकृष्ण और उनकी अभिन्नस्वरूपा प्रकृति-ईश्वरी श्री राधा की सर्वप्रधानता के साथ गोलोक-लीला तथा अवतार-लीला का विशद वर्णन है। इसके अतिरिक्त इसमें कुछ विशिष्ट ईश्वरकोटि के सर्वशक्तिमान् देवताओं की एकरूपता, महिमा तथा उनकी साधना-उपासना का भी सुन्दर प्रतिपादन है। ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथाएँ अतीव रोचक, मधुर ज्ञानप्रद और कल्याणकारी है। वर्तमान जनमानस में व्याप्त बुराइयों को दूर करने हेतु ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार आचरण करने से लोगों का हृदय आनन्दित होगा और उनमें व्याप्त बुराइयों के शमन में सहायता मिलेगी तथा समाज में चतुर्दिश शान्ति स्थापित होगी और सभी सुखी होंगे। प्रस्तुतिकरण के बाद विभागीय शोध समिति, अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ व प्राध्यापकों तथा शोध छात्र-छात्राओं द्वारा शोध पर विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे गए जिनका शोधार्थिनी रजनी सिंह ने संतुष्टिपूर्ण एवं उचित उत्तर दिया। तत्पश्चात समिति चेयरमैन एवं महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफे० (डॉ०) राघवेन्द्र कुमार पाण्डेय ने शोध प्रबंध को विश्वविद्यालय में जमा करने की संस्तुति प्रदान किया। इस संगोष्ठी में महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफे० (डॉ०) राघवेन्द्र कुमार पाण्डेय, अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ के संयोजक प्रोफे० (डॉ०) जी० सिंह , मुख्य नियंता प्रोफेसर (डॉ०) एस० डी० सिंह परिहार, शोध निर्देशक डॉ० (श्रीमती) नन्दिता श्रीवास्तव, संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ० समरेन्द्र नारायण मिश्र, प्रोफे० (डॉ०) अरुण कुमार यादव, डॉ० रामदुलारे, डॉ० कृष्ण कुमार पटेल, डॉ० अमरजीत सिंह, प्रोफे०(डॉ०) सत्येंद्र नाथ सिंह, डॉ० योगेश कुमार, डॉ०शिवशंकर यादव, प्रोफे० (डॉ०) विनय कुमार दुबे, डॉ० कमलेश, प्रदीप सिंह एवं महाविद्यालय के प्राध्यापकगण तथा शोध छात्र छात्रएं आदि उपस्थित रहे। अंत में अनुसंधान एवं विकास प्रोकोष्ठ के संयोजक प्रोफे० (डॉ०) जी० सिंह ने सभी का आभार व्यक्त किया।
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संस्कृत विभाग की शोध संगोष्ठी संपन्न वाराणसी से प्राची राय यूपीआजतक गाजीपुर। स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गाजीपुर के भाषा संकाय के अन्तर्गत संस्कृत विभाग की पूर्व शोध प्रस्तुत संगोष्ठी का आयोजन विभागीय शोध समिति एवं अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ के तत्वावधान में महाविद्यालय के सेमिनार कक्ष में किया गया। जिसमें महाविद्यालय के प्राध्यापक, शोधार्थी व छात्र- छात्राएं उपस्थित रहे। उक्त संगोष्ठी मे संस्कृत विभाग शोधार्थिनी रजनी सिंह ने अपने शोध-प्रबन्ध शीर्षक ‘‘ब्रह्मवैवर्तपुराण: एक समीक्षात्मक अध्ययन’’ नामक विषय पर शोध प्रबन्ध व उसकी विषय वस्तु प्रस्तुत करते हुए कहा कि ब्रह्मवैवर्त पुराण मुख्यतः वैष्णव पुराण है। इसके प्रमुख प्रतिपाद्य देवता विष्णु-परमात्मा श्रीकृष्ण हैं। यह चार खण्डों में विभाजित है- ब्रह्मखण्ड, प्रकृति खण्ड, गणपतिखण्ड तथा श्रीकृष्णजन्मखण्ड। ब्रह्मखण्ड में सबके बीज रूप परमब्रह्म परमात्मा (श्रीकृष्ण) के तत्त्व का निरुपण है। प्रकृतिखण्ड में प्रकृति स्वरूपा आद्याशक्ति (श्री राधा) तथा उनके अंश से उत्पन्न अन्यान्य देवियों के शुभ चरित्रों की चर्चा है। गणपतिखण्ड में (परमात्मास्वरूप) श्री गणेश जी के जन्म तथा चरित्र आदि से सम्बन्धित कथाएँ हैं। श्रीकृष्ण जन्मखण्ड में (परमब्रह्म परमात्मास्वरूप) श्री कृष्ण के अवतार तथा उनकी मनोरम लीलाओं का वर्णन है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में भगवान श्रीकृष्ण और उनकी अभिन्नस्वरूपा प्रकृति-ईश्वरी श्री राधा की सर्वप्रधानता के साथ गोलोक-लीला तथा अवतार-लीला का विशद वर्णन है। इसके अतिरिक्त इसमें कुछ विशिष्ट ईश्वरकोटि के सर्वशक्तिमान् देवताओं की एकरूपता, महिमा तथा उनकी साधना-उपासना का भी सुन्दर प्रतिपादन है। ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथाएँ अतीव रोचक, मधुर ज्ञानप्रद और कल्याणकारी है। वर्तमान जनमानस में व्याप्त बुराइयों को दूर करने हेतु ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार आचरण करने से लोगों का हृदय आनन्दित होगा और उनमें व्याप्त बुराइयों के शमन में सहायता मिलेगी तथा समाज में चतुर्दिश शान्ति स्थापित होगी और सभी सुखी होंगे। प्रस्तुतिकरण के बाद विभागीय शोध समिति, अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ व प्राध्यापकों तथा शोध छात्र-छात्राओं द्वारा शोध पर विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे गए जिनका शोधार्थिनी रजनी सिंह ने संतुष्टिपूर्ण एवं उचित उत्तर दिया। तत्पश्चात समिति चेयरमैन एवं महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफे० (डॉ०) राघवेन्द्र कुमार पाण्डेय ने शोध प्रबंध को विश्वविद्यालय में जमा करने की संस्तुति प्रदान किया। इस संगोष्ठी में महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफे० (डॉ०) राघवेन्द्र कुमार पाण्डेय, अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ के संयोजक प्रोफे० (डॉ०) जी० सिंह , मुख्य नियंता प्रोफेसर (डॉ०) एस० डी० सिंह परिहार, शोध निर्देशक डॉ० (श्रीमती) नन्दिता श्रीवास्तव, संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ० समरेन्द्र नारायण मिश्र, प्रोफे० (डॉ०) अरुण कुमार यादव, डॉ० रामदुलारे, डॉ० कृष्ण कुमार पटेल, डॉ० अमरजीत सिंह, प्रोफे०(डॉ०) सत्येंद्र नाथ सिंह, डॉ० योगेश कुमार, डॉ०शिवशंकर यादव, प्रोफे० (डॉ०) विनय कुमार दुबे, डॉ० कमलेश, प्रदीप सिंह एवं महाविद्यालय के प्राध्यापकगण तथा शोध छात्र छात्रएं आदि उपस्थित रहे। अंत में अनुसंधान एवं विकास प्रोकोष्ठ के संयोजक प्रोफे० (डॉ०) जी० सिंह ने सभी का आभार व्यक्त किया।

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