April 18, 2025

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राजस्थान*10अप्रैल25*घनश्याम दास बिड़ला

राजस्थान*10अप्रैल25*घनश्याम दास बिड़ला

राजस्थान*10अप्रैल25*घनश्याम दास बिड़ला

का जन्म 10 अप्रैल 1894 को राजस्थान के पिलानी गांव में हुआ था। वे भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति और बिड़ला समूह के संस्थापक थे। उनका परिवार मारवाड़ी व्यवसायी वर्ग से संबंधित था और पारंपरिक रूप से व्यापार में सक्रिय था।

उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी का समर्थन किया और देश के औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। बिड़ला जी ने कई उद्योग स्थापित किए, जिनमें कपड़ा, सीमेंट, चीनी, एल्यूमीनियम और शिक्षा के क्षेत्र शामिल थे। उन्होंने बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (BITS Pilani) और अन्य कई शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना में भी सहयोग किया।

घनश्याम दास बिड़ला का निधन 11 जून 1983 को हुआ। उनके योगदान के कारण वे भारत के प्रमुख उद्योगपतियों में गिने जाते हैं।

घनश्याम दास बिड़ला का जीवन “सादा जीवन, उच्च विचार” के सिद्धांत पर आधारित था। उन्होंने सरल जीवनशैली अपनाई और अपने व्यवसायिक और सामाजिक कार्यों में उच्च आदर्शों का पालन किया। उनके इस सिद्धांत को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:

1. सादा जीवन

बिड़ला जी अत्यधिक संपत्ति होने के बावजूद दिखावे और विलासिता से दूर रहे।

वे अनुशासित दिनचर्या का पालन करते थे और सादगी से रहते थे। उनकी वेशभूषा और खान-पान सामान्य था, और वे भारतीय संस्कृति और परंपराओं के प्रति निष्ठावान थे।

2. उच्च विचार
3. वे महात्मा गांधी के समर्थक थे और उनके आदर्शों पर चलते थे। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार कार्यों में योगदान दिया। शिक्षा के प्रसार के लिए कई संस्थान खोले, जैसे BITS Pilani । व्यापार को केवल लाभ कमाने का साधन नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण का एक जरिया माना।

उन्होंने श्रमिकों और कर्मचारियों के हितों का ध्यान रखा और सामाजिक उत्थान में योगदान दिया।

3. दानशीलता और समाजसेवा

उन्होंने अस्पताल, विद्यालय और धर्मशालाओं की स्थापना की। भारतीय संस्कृति और धर्म के प्रति उनका गहरा लगाव था, इसलिए कई मंदिरों का निर्माण भी करवाया। देश के औद्योगिक विकास में योगदान देकर हजारों लोगों को रोजगार दिया।

निष्कर्ष

घनश्याम दास बिड़ला ने यह सिद्ध कर दिया कि सादा जीवन जीकर भी ऊँचे आदर्शों के साथ समाज और देश की सेवा की जा सकती है। उनका जीवन आज भी प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।

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