राजगढ़05मार्च*मंदबुद्धि बालिका के साथ ज्यादती करने वाले आरोपी को आजीवन कारावास।*
*ठाकुर हरपाल सिंह परमार*
राजगढ। जिला न्यायालय राजगढ में पदस्थ अपर सत्र न्यायाधीश डॉ. श्रीमती अंजली पारे राजगढ ने अपने न्यायालय के प्रकरण क्रमांक 223/18 में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुयेें एक अल्पबुद्धि पीडित बालिका के साथ जबरदस्ती बलात्कार करने वाले पंकज (परिवर्तित नाम) को धारा 376(2)(ठ) भादवि में आजीवन कारावास तथा 25 हजार रूपये के जुर्माने से दण्डित किया गया ।
घटना का संक्षेप में विवरण इस प्रकार है कि फरियादी पीडिता की मां ने थाना खिलचीपुर में रिपोर्ट लिखाई कि घटना दिनांक को मेरी लड़की छत पर टहल रही थी। एक डेढ घंटे बाद जब मैने लडकी को आवाज लगाई तो उसने नहीं सुनी, मैने छत पर जाकर देखा तो मेरी लड़की रो रही थी, उसके कपड़े पर खून लगा हुआ था। मैने लड़की से पूछा तो बताया कि पंकज (परिवर्तित नाम) ने उसके साथ बलात्कार किया है। मेरी लड़की दिमाग से कमजोर है। रिपोर्ट पर थाना खिलचीपुर में अपराध क्रमांक 109/18 का अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया। विवेचना पूर्ण होने पर अभियोग पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। जिसमें विचारण के दौरान पीडिता सहित उसके माता पिता, डॉक्टर एवं विवेचना अधिकारियों के साथ-साथ अन्य महत्वपूर्ण गवाहों के न्यायालय में बयान कराये गये। विचारण उपरांत माननीय न्यायालय ने दण्ड के आदेश पारित किये गये है। इस प्रकरण में शासन की ओर से पैरवी जिला अभियोजन अधिकारी आलोक श्रीवास्तव राजगढ ने की है।
*डीएनए रिपोर्ट में पर्याप्त सबूत न होते हुये भी आजीवन कारावास:-*
अभियोजन के द्वारा प्रकरण के विचारण के दौरान पीडित बालिका के प्रदर्श एफएसएल भोपाल रासायनिक परीक्षण हेतु भेजे गये थे इसके उपरांत न्यायालय से अनुमति प्राप्त कर आरोपी के शरीर से तीन एमएल ब्लड ईडीटीए बायल में प्रिजर्व करवाकर एफएसएल भोपाल डीएनए प्रोफाईलिंग के लिए भेजा गया किंतु आरएफएसएल से प्राप्त रिपोर्ट में भेजे गये प्रदर्श अपर्याप्त होने से आरोपी की डीएनए प्रोफाईल प्राप्त नहीं हो सकी । इसके उपरांत भी पीडित बालिका द्वारा न्यायालय के समक्ष अपने संकेतों में साक्ष्य दी गई थी। न्यायालय की संवेदनशील पीठासीन अधिकारी डॉ. अंजली पारे ने पीडित बालिका की साक्ष्य के दौरान न्यायालय में रखी एक डॉल के माध्यम से पीडित बालिका का परीक्षण कर आरोपी आजीवन कारावास से दण्डित किया है।
*आरोपी के द्वारा पीडित बालिका के विश्वास को भी भंग किया गया था:-*
पीडित बालिका आरोपी के पड़ोस में रहती थी। आसपास रहने वाले व्यक्तियों से उनके पड़ोसियों का अनायास ही एक रिश्ता बचपन से ही स्थापित होता है। ऐसे रिश्ते के आधार पर ही पीडित बालिका आरोपी को अपना भाई मानती थी और उसे भैया का संबोधन करती थी। पीडिता के माता पिता भी आरोपी को अपने पुत्र समान मानकर उसके साथ व्यवहार करते थे किंतु इसके उपरांत भी आरोपी ने न केवल पीडित बालिका के विश्वास को भंग किया है बल्कि पीडित बालिका के माता पिता के भी विश्वासिक व्यवहार के विपरीत कार्य किया है जिसे दृष्टिगत रखते हुये माननीय न्यायालय की विदुषी पीठासीन अधिकारी डॉ. अंजली पारे राजगढ ने पीडित बालिका के उक्त विश्वास को तोड़ने को गंभीर मानते हुये आरोपी को अधिकतम दण्ड से दण्डित कर आजीवन कारावास की सजा दी है।
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