भागलपुर बिहार से शैलेन्द्र कुमार गुप्ता यूपी आजतक
मुंगेर01जनवरी24* ‘ऋषि कुंड’ का करिश्मा, कैंसर और कुष्ठ रोग होते है दूर, जानिए चमत्कारी रहस्य
मुंगेर बिहार : ऋषि कुंड काफी बड़े क्षेत्रफल में बसा हुआ है. इसके प्रांगण के अलग-अलग हिस्सों में हिन्दू धर्म के कई देवी-देवता का मंदिर है।रामायण काल के तपस्वी ऋषियों केमंदिर सहित कई ऋषियों की समाधि और कई आश्रम मौजूद हैं।
मुंगेर बिहार: मुंगेर का जिक्र करते आपके जहन में अवैध बंदूक की फैक्ट्री की बात कौंधती होगी. जबकि बिहार के मुंगेर का एक दूसरा पहलू आध्यात्मिक भी है. यहां पर एक ऐसा कुंड है जहां मात्र स्नान करने से ही आपके कई रोग छूमंतर हो जाएंगे. आपको थोड़ा आश्चर्य लगेगा पर न्यूज़ 18 लोकल आपको इसकी जानकारी दे रहाहै. बात हो रही है बिहार के मुंगेर जिले के ऋषिकुंड की. जो जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर बरियारपुर प्रखंड क्षेत्र में मड़ता है. यह स्थल पहाड़ों की बीचों बीच है और इसे तपोभूमि कहते हैं. ऋषिकुंड रामायण काल के ऋषि मुनियों के तपस्या की भूमि रही है।ऋषि विभाण्डक ने
यहां कठोर तपस्या की थी। ऋषि विभाण्डक के पुत्र ऋषि शृंग (शृंगी) की जन्मस्थली भी यही है।आज भी
यहां देश के कई कोने से ऋषि मुनि तप कर रहे हैं।यहां कई कुंड है, जहां पहाड़ों के अंदर से गर्म जल
निकलता है।जानिए इसके रहस्य को।कुदरत का करिश्मा इस पुण्य स्थली पर कई जल कुंड हैं, जहां पहाड़ों के अंदर से गर्म जल निकलता है।ऋषि श्रीरामदास जी ने बताया कि मैं 16 वर्ष पहले चर्म रोग और कई गम्भीर बीमारी से ग्रसित हो गया था. मुझे अपने गांव में कोई बैठने नहीं देते थे।तब मैं अपने बाबा चंचल दास जो यहां तपस्या कर चुके हैं. उनकी शरण मे आया और उस चमत्कारी कुंड में नहाया और आज आपके सामने खड़ा हूं. स्वस्थ हूं।आगे उन्होंने बताया कि जिस किसी को भी कैंसर, कुष्ठ या अन्य बड़ी बीमारी हो गयी है वो यहां आकर रहें।यहां के कुंड में स्नान करें. इस पानी को ग्रहण करें, तो उनकी बीमारी दूर हो जाती है. आज भी यहां दर्जन भर से ज्यादा ऋषि बाहर से आकर तपस्या कर रहे हैं।ऋषियों की समाधि और आश्रम
ऋषि कुंड काफी बड़े क्षेत्रफल में बसा हुआ है। इसके प्रांगण के अलग-अलग हिस्सों में हिन्दू धर्म के कई देवी-देवता का मंदिर है। रामायण काल के तपस्वी ऋषियों केमंदिर सहित कई ऋषियों की समाधि और कई आश्रम मौजूद हैं. मान्यता है कि ऋषि कुंड रामायण काल के ऋषि मुनियों कीतपस्या भूमि रही ऋषि विभाण्डक ने यहां कठोर तपस्या की थी. ऋषि विभाण्डक के पुत्र ऋषि शृंग (शृंगी) की जन्मस्थली भी यही है।
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