October 14, 2025

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भागलपुर22दिसम्बर24*भारत में संस्कृत के सम्मान के बिना संस्कृति की बात करना बेमानी है

भागलपुर22दिसम्बर24*भारत में संस्कृत के सम्मान के बिना संस्कृति की बात करना बेमानी है

भागलपुर बिहार से शैलेन्द्र कुमार गुप्ता यूपी आजतक

भागलपुर22दिसम्बर24*भारत में संस्कृत के सम्मान के बिना संस्कृति की बात करना बेमानी है

भागलपुर बिहार। दर्शन परिषद्, बिहार के 46 वें अधिवेशन का आरम्भ शनिवार को मारवाड़ी महाविद्यालय में हुआ। अधिवेशन का विषय : ‘ चिन्तनधारा : नारी, संस्कृति और प्रकृति ‘ है।

कार्यक्रम का आरम्भ दीप प्रज्ज्वलन, कुलगीत की प्रस्तुति, स्वागत गान के साथ हुआ। ऋषिका ने सिद्धि विनायक गणेश की वन्दना पर नृत्य प्रस्तुति दी। अधिवेशन में उपस्थित अतिथियों के लिए मारवाड़ी महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. शिव प्रसाद यादव ने स्वागत वक्तव्य दिया। इसके बाद अधिवेशन की आयोजन सचिव और मारवाड़ी महाविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग की डॉ. प्रज्ञा राय ने सभी अतिथियों का स्वागत किया।

डॉ. प्रज्ञा राय के स्वागत सम्बोधन के बाद बिहार दर्शन परिषद् की अध्यक्ष प्रो. पूनम सिंह ने अधिवेशन को सम्बोधित किया। अपने सम्बोधन में उन्होंने कहा कि 1949 में पटना विश्वविद्यालय के बी. एन.कॉलेज के प्रो. धीरेन्द्र मोहन दत्त ने दर्शन परिषद् की स्थापना की थी। हमारे बीच जुड़ाव शिक्षा, विमर्श और संवाद के जरिए स्थापित होता है। उसी की स्थापना हेतु अधिवेशन के रूप में संवाद का आयोजन हो रहा है। दर्शन को मानसिक व्यायाम कहा जाता है लेकिन यह तब तक अपना आशय पूरा नहीं करता जब तक दर्शन को हम व्यवहार से न जोड़ लें। दर्शन कोई आकाशी चीज़ नहीं है। यह रोज के व्यवहार का विषय है।

प्रो. पूनम सिंह के सम्बोधन के बाद अधिवेशन की स्मारिका का मंचासीन अतिथियों द्वारा विमोचन किया गया। स्मारिका के बाद ‘दार्शनिक अनुगूंज’ पत्रिका का विमोचन किया गया। पत्रिका के सम्पादक डॉ. नीरज प्रकाश हैं। पत्रिका के लोकार्पण के बाद डॉ. श्यामल किशोर की पुस्तक ‘निगमन तर्क शास्त्र’, डॉ. स्वास्तिक दास की पुस्तक ‘विज्ञान दर्शन विमर्श’, जी.डी विमेंस कॉलेज की प्राचार्य और दर्शन परिषद्, बिहार की कोषाध्यक्ष डॉ वीणा कुमारी की पुस्तक ‘सामाजिक न्याय और शिक्षा’ तथा विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग के डॉ. राहुल कुमार की पुस्तक ‘M K Gandhi : The Prophet of Sustainability’, का लोकार्पण हुआ। डॉ. राहुल कुमार की पुस्तक की भूमिका भागलपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति आर.एस.दूबे ने लिखी है। लोकार्पण के उपरान्त दार्शनिक अनुगूंज पत्रिका के सम्पादक डॉ. नीरज प्रकाश ने अधिवेशन को सम्बोधित किया।

बिहार दर्शन परिषद् के महासचिव डॉ. श्यामल किशोर ने कहा कि परिषद् के 32 वें अधिवेशन का आयोजन भागलपुर विश्वविद्यालय के ही सुन्दरवती महाविद्यालय में हुआ था। परिषद् अब अमृत महोत्सव के आयोजन पर योजना बनाएगा। उन्होंने बताया कि परिषद् के द्वारा प्रत्येक वर्ष दार्शनिक प्रतिभा के धनी विद्वान को ‘लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड’ दिया जाता है। वर्ष 2024 के लिए यह सम्मान तिलका माँझी भागलपुर विश्वविद्यालय के ही पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. केदारनाथ तिवारी को प्रदान किया गया। अस्वस्थ होने के कारण यह सम्मान प्रो. तिवारी के पुत्र ने ग्रहण की। परिषद् की ओर से वर्ष 2024 का सर्वश्रेष्ठ पुस्तक का पुरस्कार प्रो. नीलिमा की पुस्तक को प्रदान किया गया। ‘रवींद्र शांति पुरस्कार’ डॉ. सुधांशु शेखर की पुस्तक ‘गांधी, अम्बेडकर और मानवधिकार’ को प्रदान किया गया।

ICPR, नयी दिल्ली के सदस्य-सचिव और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रो. सच्चिदानन्द मिश्र ने अपने सम्बोधन में कहा कि किसी भी समाज की प्रगति को जानने का एक अच्छा मानक यह है कि देखा जाए कि उस समाज में स्त्रियों की भूमिका क्या है! भारत ऐसा देश है जहां स्त्री में भी देवत्व की कल्पना की गयी। मातृ देवो भवः की संकल्पना के पीछे यही चिन्तन है। हमारी परम्परा में स्त्रियों को शक्ति समझा गया है। अर्धनारीश्वर की दृष्टि संघर्षमूलक दृष्टि नहीं है। वह अनुपूरक रूप में है। यही दृष्टि प्रकृति को लेकर भी है। यहां प्रकृति से अनुग्रह प्राप्त करने की परम्परा रही है। पश्चिम में प्रकृति से संघर्ष की दृष्टि रही है। भारतीय शास्त्र में यह कल्पना की गयी है कि पृथ्वी कामधेनु है और हिमालय उस कामधेनु का बछड़ा है। यह कल्पना पूरक दृष्टि का परिचायक है।

बिहार विधान परिषद् के सदस्य माननीय डॉ. संजीव सिंह ने अपने सम्बोधन में कहा कि हमारी संस्कृति में नारी और प्रकृति को लेकर व्यापक चिन्तन है। धरती को माता की संज्ञा दी गयी है। चन्द्रमा को मामा कहा जाता है। सूर्य को साक्षात देवता की तरह पूजा जाता है। नारी को शक्तिस्वरूपा बताया गया है। संस्कृत जैसे भाषा के प्रति पूर्ण सम्मान और राजकीय सहयोग के बिना संस्कृति की बात करना बेमानी है। मैं बराबर बिहार विधान परिषद् में इस विषय पर बोलता रहा हूँ।

अपने सम्बोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जवाहर लाल ने कहा कि अधिवेशन का विषय प्रासंगिक है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति के उद्देश्यों के अनुरूप है। नारी और प्रकृति दोनों में साम्य है। नारी और प्रकृति दोनों ही सृजन करती है। प्रकृति बहुत सहनशील होती हैं। नारी भी अपनी प्रकृति में सहनशील होती है। प्रकृति जीवों में भेदभाव नहीं करती है। उसी तरह माता अर्थात् नारी अपने संतानों में भेदभाव नहीं करती है। विज्ञान और तकनीक की स्थिति आज से पहले बेहतर थी। इसका प्रमाण हमें रामायण और महाभारत में मिलता है। हमारी संस्कृति बहुत विशिष्ट थी। पश्चिम के अंधानुकरण के कारण हमारी संस्कृति दूषित होती जा रही है। इसको रोकने की आवश्यकता है। मैंने शिक्षक दिवस के सम्मान के अवसर पर कहा कि शिक्षक के साथ उनकी माता का भी सम्मान होना चाहिए। वह माता ही है जिसके कारण एक शिक्षक का निर्माण हुआ है। यह सम्मान नारी की भूमिका का सम्मान है। जहां नारी की पूजा नहीं होती है; वहां विनाश निश्चित है। हमारे सभी पर्व-त्योहार में देवी होती हैं। धन के लिए लक्ष्मी, विद्या के लिए सरस्वती, दुश्मन के नाश के लिए काली, शक्ति की प्राप्ति के लिए दुर्गा की आराधना की जाती है। वैदिक काल में ही नारी को देवी बताया गया है। उत्तर वैदिक काल में नारियों की स्थिति में गिरावट हुई। आज स्वतंत्र भारत में भी प्रतिदिन नारी के शोषण की खबरें समाचार पत्र में भरी रहती हैं। उनके साथ हिंसा होती रहती है। क्या इसे रोकने का कोई रास्ता नहीं है? क्या दर्शन परिषद् इस बारे में कोई विकल्प सुझा सकता है? तीन दिन के अधिवेशन में इस पर विचार किया जाना चाहिए।

कुलपति के सम्बोधन के बाद अधिवेशन को सभापति और ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. अमरनाथ झा, मुंगेर विश्वविद्यालय की पूर्व प्रति-कुलपति प्रो. कुसुम कुमारी, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के प्रो. कृपा शंकर और पटना विश्वविद्यालय के पूर्व प्रो. आर. सी. सिन्हा ने सम्बोधित किया।
अधिवेशन में बिहार के अलावे उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, राजस्थान, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल आदि के राज्यों से आए शोधार्थियों और विद्वानों ने भाग लिया।
भोजनावकाश के बाद कार्यक्रम की शुरुआत साढ़े तीन बजे से शुरू हुई। इस तकनीकी सत्र में विद्वान अतिथियों ने ‘भारतीय ज्ञान परम्परा’ विषय पर अपनी-अपनी राय रखी। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. कुसुम कुमारी और समन्वय डॉ. महेश्वर मिश्र थे। डॉ. अरुण मिश्र, डॉ. मिहिर मोहन मिश्र ‘सुमन’, डॉ. रमेश विश्वकर्मा, डॉ. चन्दन कुमार, डॉ. मनीष कुमार चौधरी, डॉ. दिवाकर कुमार पाण्डेय ने इस सत्र में अपना वक्तव्य दिया।

शाम में 06:30 बजे से मारवाड़ी महाविद्यालय में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें नृत्य, गान, कोरस आदि के द्वारा विभिन्न प्रतिभागियों ने अपनी प्रस्तुति दी।
यह आयोजन मारवाड़ी महाविद्यालय और विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग के तत्वावधान में ICPR के सहयोग से हो रहा है।

कार्यक्रम का कुशल संचालन टी.एन.बी कॉलेज के राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. मनोज कुमार ने किया और धन्यवाद ज्ञापन विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो. एस. डी. झा ने किया।

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