भागलपुर बिहार में आज दिनांक 7 मई 2025 को कलाकेंद्र भागलपुर में रविन्द्र नाथ टैगोर की जयंति
भागलपुर बिहार से शैलेन्द्र कुमार गुप्ता
भागलपुर बिहार में आज दिनांक 7 मई 2025 को कलाकेंद्र भागलपुर में रविन्द्र नाथ टैगोर की जयंति पर ” गुरुदेव को नमन ” कार्यक्रम का आयोजन साहित्य का डॉक्टर योगेंद्र की अध्यक्षता में हुआ ।अध्यक्षता करते हुए डॉ योगेंद्र रबिन्द्र नाथ मनुष्य और प्रकृति के अन्य जीवों में अंतर नहीं करते। उनकी रचना में मनुष्य और प्रकृति एकाकर हो जाता है।
मनुष्य ही एक ऐसा जीव है जो प्रकृति को जीतना चाहता है। अन्य जीव उतना ही उपभोग करते हैं जितनी जरूरत हो। हमें उनसे सीखना चाहिए… दुनियां को बचाने के लिए कला और साहित्य जरुरी है। रबिन्द्र नाथ ठाकुर में लोगों को वैश्विक मानव बनाने की क्षमता है। संस्कृति का मतलब है करुणा, सहयोग, एकता, समन्वय। पर आज उल्टा हो रहा है संस्कृति के नाम पर हिंसा और विभेद फैलाया जा रहा है। हम उम्मीद करते हैं कि एक ऐसी दुनियां बनेगी जहाँ हम वैश्विक नागरिक बनेंगे। संस्कृति कर्मी उदय ने कहा रविन्द्र नाथ टैगोर भारत की महान विभूतियों में एक हैं। महात्मा गांधी ने रविंद्र नाथ टैगोर की तारीफ करते हुए गुरुदेव कहा तो गुरुदेव ने बापू को महात्मा . गुरुदेव रविन्द्र नाथ पहले भारतीय थे जिन्हें नोबेल पुरस्कार मिला . गुरुदेव को साहित्य का नोबेल पुरस्कार उनके कविता / गीत संग्रह गीतांजलि पर मिला है . गीतांजलि प्रकृति प्रेम , कोमल मानवीय भावनाओं , भक्ति और ईश्वर की सर्वव्यापकता को समेटे हुए है . उनके यही उदात्त विचार और दर्शन हर जगह दिखते हैं . गुरुदेव भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शरीक थे लेकिन गांधी के राष्ट्रवाद और स्वदेशी से भिन्न राय रखते थे . वे कहते थे जब तक मैं जिंदा हूं , मानवता पर देशभक्ति की जीत नहीं होने दूंगा . उनके राष्ट्र अर्थ वहां के लोग ,यानि विविध समुदायों की संस्कृति, खान पान और वहां की जलवायु था . इसीलिए वे अपनी गीत में कहते हैं देश की माटी देश का जल , हवा देश की देश के फल , देश के तन और देश के मन देश के घर के भाई बहन सरस बने और विमल बने . कला केंद्र के प्राचार्य राजीव कुमार सिंह ने कहा गुरुदेव का राष्ट्रवाद मानवता पर केंद्रित था , विश्व बंधुत्व की अवधारणा पर कायम था . उनका राष्ट्रवाद अन्तर्राष्ट्रीयतावाद पर कायम था . इसलिए जब उन्होंने शांति निकेतन में अपना शिक्षा केंद्र खोला तो उसका नाम विश्व भारती रखा . केंद्रित राजनीतिक शक्ति और भोगौलिक सीमा के अंदर की संपदा पर आधारित राष्ट्रवाद को संकीर्णतावाद मानते थे . उन्होंने व्यक्तिगत स्वतंत्रता को काफी अहमियत दी इसलिए तो वे कहते हैं ” एकला चलो रे “. कवि कलाकार होते ही हैं उनकी उदारता ही उन्हें महान बनाती है . गुरुदेव दो देशों के राष्ट्र गीत के रचयिता ऐसे ही नहीं हैं . इतिहास में इतने उदार हृदय , कोमल भावनाओं से ओतप्रोत , प्रतिभाशाली और महान व्यक्ति कभी कभी ही पैदा लेते . वे एक साथ , कवि , कहानीकर , उपन्यासकार, गीतकार , संगीतकार , चित्रकार , नाटककार और शिक्षाशास्त्री थे .डॉ दिब्या ने कहा चाहे गरीब हो या अमीर सबकी भावनाएं एक हैं यही उनकी लेखनी में दिखती है। जब हम दुःखी हों या निराश हों तो उनका साहित्य पढ़ना चाहिए.. वे काम में भी सौंदर्य देख लेते हैं। ललन ने कहा कि आज बच्चे बच्चे के पास सूचनाएँ बहुत है पर मनुष्य ख़त्म हो रहा है। आज विश्व विद्यालय ख़त्म हो रहा है.. प्रकृति के सानिध्य में ज्ञान की प्राप्ति हो.. समाज में जो शुभ है, अच्छा है उसे उन्होंने उभारने का प्रयास किया। देश प्रेम की उदात्त भावना की बात रविन्द्र नाथ करते थे। इस अवसर पर चित्रकार विजय साह, पूर्व डी एस डब्लू डॉ योगेंद्र, उदय, ललन, स्वेता शंकर, राजीव कुमार सिंह, मृदुला सिंह, सुभाष प्रसाद, अमित कुमार सिंह, शिशु, मेंहदी हसन, डॉ दिब्या आदि मैं पुष्पांजलि अर्पित कर अपने वक्तव्य रखें ।
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