*फतेहपुर19जून25* में एक ही क्षेत्र में वर्षों से जमे लेखपाल, शासनादेश को बना दिया मजाक!😳*
फतेहपुर — जनपद फतेहपुर में राजस्व विभाग की कार्यशैली पर एक बार फिर सवाल खड़े हो रहे हैं। शासन भले ही स्थानांतरण नीति पर सख्ती से अमल करने के आदेश जारी कर चुका हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहानी कह रही है। जिले में ऐसे कई लेखपाल वर्षों से एक ही तहसील या ब्लॉक में जमे हुए हैं, और ऐसा प्रतीत होता है मानो शासनादेश केवल कागज़ी खानापूर्ति बनकर रह गया है।
जहाँ शासनादेश स्पष्ट रूप से यह कहता है कि किसी भी राजस्व कर्मी की एक ही जगह पर दीर्घकालीन तैनाती से पारदर्शिता, निष्पक्षता और प्रशासनिक संतुलन प्रभावित होता है, वहीं फतेहपुर में कुछ लेखपाल एक ही गांव, ब्लॉक या तहसील में पाँच से दस वर्षों से जमे हैं। जनता सवाल पूछ रही है कि जब स्थानांतरण एक नियमित प्रशासनिक प्रक्रिया है, तो इन चुनिंदा कर्मियों को इससे छूट क्यों?
कभी न खत्म होने वाली “सेटिंग”?
स्थानीय लोग यह भी आरोप लगा रहे हैं कि इन लेखपालों की तैनाती सिर्फ योग्यता या सेवा की आवश्यकता के आधार पर नहीं, बल्कि अंदरूनी “सांठगांठ और चढ़ावे” के चलते बनी हुई है। नियमों को ताक पर रखकर, इन्हें वही कार्यक्षेत्र मिलते हैं जहाँ इनके निजी हित या प्रभाव बने हुए हैं।
एक ही क्षेत्र में वर्षों से जमे रहने के कारण: सीमांकन व नामांतरण जैसे मामलों में पक्षपात की शिकायतें आम हो गई हैं,
जनता की शिकायतों पर कार्रवाई के बजाय लीपापोती होती है,
और ग्रामीणों को कई बार न्याय पाने के लिए बार-बार अफसरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं।
*प्रशासन की चुप्पी सवालों के घेरे में !*
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब शासन स्तर पर स्पष्ट स्थानांतरण नीति लागू है, तो फिर जिले के जिम्मेदार अधिकारी इन आदेशों की अनदेखी क्यों कर रहे हैं? क्या उच्च अधिकारियों की मिलीभगत से ही ये कर्मी वर्षों से अपनी “पसंदीदा जगहों” पर टिके हुए हैं?
जिला प्रशासन की यह निष्क्रियता दर्शाती है कि या तो उन्हें हकीकत की जानकारी नहीं है, या जानबूझकर आंखें मूंद रखी हैं।
कब जागेंगे जिम्मेदार?🤔
*अब समय आ गया है कि शासन इन मामलों का संज्ञान ले और ऐसे सभी लेखपालों की सूची बनवाकर उन्हें तत्काल प्रभाव से अन्यत्र स्थानांतरित किया जाए। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि आगे से कोई भी राजस्व कर्मी अपनी होम तहसील या लंबे समय तक एक ही स्थान पर तैनात न रहे!*
*क्योंकि जब प्रशासन ही नियमों का पालन न करे, तो फिर आम जनता से ईमानदारी की अपेक्षा करना केवल एक मज़ाक बनकर रह जाता है!*
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