प्रयागराज14अगस्त25*हाईकोर्ट ने कहा- अपराध की गंभीरता किशोर को जमानत देने से इनकार करने का आधार नहीं_*
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रेप के एक मामले में आरोपी किशोर की जमानत मंजूर करते हुए कहा कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2000 के तहत किसी किशोर की जमानत अर्जी पर फैसला करते समय अपराध की गंभीरता प्रासंगिक कारक नहीं है. कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि अपराध की गंभीरता किशोर को जमानत देने से इनकार करने का स्वीकार्य आधार नहीं है.
जमानत देने से इनकार करने के आदेश रद्द: यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने किशोर न्याय बोर्ड वाराणसी और विशेष न्यायाधीश पॉक्सो एक्ट वाराणसी के किशोर को जमानत देने से इनकार करने के आदेशों को रद्द करते हुए दिया. कोर्ट ने कहा कि यह निर्विवाद है कि याची किशोर है और वह अधिनियम के प्रावधानों के लाभ का हकदार है. किसी किशोर की जमानत केवल धारा 12 (1) में निर्धारित तीन विशिष्ट परिस्थितियों में ही अस्वीकार की जा सकती है.
तीन विशिष्ट परिस्थितियों में अस्वीकार की जा सकती है जमानत: पहला यदि रिहाई से उसके किसी ज्ञात अपराधी के संपर्क में आने की संभावना है. दूसरा उसे नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक खतरे में डालने और तीसरा उसकी रिहाई न्याय के उद्देश्यों को विफल कर देगी. साथ ही अपराध की गंभीरता को जमानत अस्वीकार करने का आधार नहीं बताया गया है. किशोर को जमानत देते समय यह एक प्रासंगिक कारक नहीं है.
अदालतों के निष्कर्ष त्रुटिपूर्ण और कानून के विपरीत: कोर्ट ने माना कि उक्त दोनों अदालतों के निष्कर्ष त्रुटिपूर्ण और कानून के विपरीत थे और अधिनियम की धारा 12 के प्रावधानों के अनुरूप नहीं थे. आरोपी किशोर की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका में किशोर न्याय बोर्ड वाराणसी के 23 अक्टूबर 2024 और विशेष न्यायाधीश पॉक्सो एक्ट वाराणसी के 27 नवंबर 2024 के अपीलीय आदेश को चुनौती दी गई थी.
किशोर पर रेप का आरोप, अन्य मामलों में भी आरोपी: याची किशोर वाराणसी के भेलूपुर थाने में रेप व अन्य आरोपों में दर्ज मुकदमे में आरोपी है. वारदात के समय उसकी आयु 17 वर्ष पांच महीने व 25 दिन थी. वह 17 सितंबर 2024 से बाल संरक्षण गृह में था. उसकी ओर से तर्क दिया गया कि वह किशोर है और उसे झूठा फंसाया गया है. उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और उसे अनुचित रूप से लंबी अवधि के लिए बाल संप्रेक्षण गृह में रखा गया है.
मुकदमे के जल्द खत्म होने की उम्मीद नहीं: किशोर के खिलाफ दर्ज मुकदमे के जल्द खत्म होने की कोई उम्मीद नहीं है. कहा गया कि जिला परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट में केवल सामान्य और अस्पष्ट अवलोकन थे और किशोर न्याय अधिनियम, 2000 की धारा 12 के तहत जमानत से इनकार करने की कोई भी शर्त इस मामले में नहीं थी. राज्य सरकार की ओर से शासकीय अधिवक्ता ने पुनरीक्षण याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि वारदात सच्ची थी. आरोप झूठे या प्रेरित नहीं थे.
हाईकोर्ट ने कहा- किशोर आपराधिक प्रवृत्ति का नहीं है: हाईकोर्ट ने पाया कि किशोर आपराधिक प्रवृत्ति का नहीं है. उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और वह लंबे समय से हिरासत में है. किशोर के पिता ने उसकी रिहाई पर किशोर की सुरक्षा और कल्याण के संबंध में वैधानिक चिंताओं को दूर करने का वचन दिया था.
किशोर न्याय बोर्ड, विशेष न्यायाधीश का आदेश रद्द: हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि निचली अदालत के निष्कर्ष जमानत देने के उद्देश्य से कानून में स्थापित सिद्धांत के साथ विरोधाभास में हैं और इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के विरुद्ध और त्रुटिपूर्ण हैं. नतीजतन उन आदेशों को बरकरार नहीं रखा जा सकता है. इसी के साथ कोर्ट ने किशोर न्याय बोर्ड और विशेष न्यायाधीश के आदेशों को रद्द कर दिया.
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