June 1, 2025

UPAAJTAK

TEZ KHABAR, AAP KI KHABAR

* प्रतापगढ़16मई25*प्राइवेट स्कूलों में एनसीईआरटी की जगह निजी प्रकाशकों की किताबें*

* प्रतापगढ़16मई25*प्राइवेट स्कूलों में एनसीईआरटी की जगह निजी प्रकाशकों की किताबें*

* प्रतापगढ़16मई25*प्राइवेट स्कूलों में एनसीईआरटी की जगह निजी प्रकाशकों की किताबें*

कमीशन के खेल में पिस रहे अभिभावक, शिक्षा विभाग मौन।

प्रतापगढ़ । जिले में नया शैक्षणिक सत्र शुरू होते ही प्राइवेट स्कूलों द्वारा अभिभावकों की जेब पर डाका डालने का सिलसिला तेज़ हो गया है। स्कूलों द्वारा एनसीईआरटी की पुस्तकें लागू करने की जगह निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें अभिभावकों पर थोपी जा रही हैं। इस पूरे खेल में कमीशन की मोटी रकम स्कूल प्रबंधन और किताबों की दुकानों के बीच बंटती है, जबकि शिक्षा विभाग आंख मूंदे बैठा है।

शहर व ग्रामीण क्षेत्रों में कई दुकानों पर स्कूलों के नाम के साथ किताबों की उपलब्धता के बोर्ड भी लगे रहते हैं। इससे साफ है कि स्कूल प्रबंधन ने पहले से ही दुकानों से साठगांठ कर रखी है। अधिकांश स्कूल अभिभावकों को उन्हीं दुकानों से किताबें खरीदने के लिए बाध्य कर रहे हैं, जहां से उन्हें मोटा कमीशन प्राप्त होता है।

*एनसीईआरटी के बजाय निजी किताबें थोपने का खेल*

सरकारी स्कूलों में जहां एनसीईआरटी की किताबों से शिक्षा दी जाती है, वहीं प्राइवेट स्कूल एनसीईआरटी को दरकिनार कर निजी प्रकाशकों की किताबों की सूची थमा रहे हैं। अभिभावकों को डर दिखाकर इन्हीं किताबों को अनिवार्य रूप से खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है।

*तीन से चार गुना महंगे सेट*

एनसीईआरटी की किताबों का सेट जहाँ 250 से 300 रुपये में मिलता है, वहीं निजी प्रकाशकों की किताबों का सेट 800 रुपये से लेकर 5,000 रुपये तक में बेचा जा रहा है। कक्षा आठवीं की किताबों का सेट 5760 रुपये तक पहुँच चुका है। तीसरी कक्षा की किताबों के लिए भी 2000 रुपये तक वसूले जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त डायरी, रजिस्टर और अन्य सामग्री भी चार-पांच गुना कीमत पर दी जा रही है।

*अभिभावक लाचार, विभाग चुप*

जिले में करीब 400 से अधिक निजी स्कूल संचालित हैं, जिनमें एक लाख से अधिक छात्र-छात्राएं नामांकित हैं। हर साल किताबों और वर्दी के नाम पर अभिभावकों को लूटा जाता है, लेकिन शिक्षा विभाग कभी भी इन स्कूलों की जाँच नहीं करता। अभिभावकों का कहना है कि बच्चों के भविष्य की चिंता में वे हर शर्त मानने को मजबूर हैं।

*प्रशासन कब देगा ध्यान?*

प्रश्न यह उठता है कि क्या शिक्षा विभाग की यह चुप्पी मौन स्वीकृति नहीं है? क्या जिला प्रशासन एनसीईआरटी की किताबों को अनिवार्य करने का कोई ठोस आदेश जारी करेगा? जब तक शिक्षा को सेवा की जगह व्यापार माना जाता रहेगा, तब तक इस तरह की लूट रुकना मुश्किल है।

Taza Khabar

Copyright © All rights reserved. | Newsever by AF themes.