पूर्णिया बिहार17जून25 *अररिया-गलगलिया रेल ट्रायल में तस्लीमुद्दीन का नाम ग़ायब! कांग्रेस नेता इन्तेखाब आलम ने जताई आपत्ति*
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पूर्णिया बिहार। अररिया-गलगलिया रेल लाइन पर ट्रायल ट्रेन के सफल संचालन और फोर-लेन सड़क परियोजना को लेकर सीमांचल में खुशी का माहौल है, लेकिन इन उपलब्धियों को लेकर उठी सियासी बहस भी अब ज़ोर पकड़ रही है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य इन्तेखाब आलम ने कहा कि जिस ऐतिहासिक परियोजना की नींव मरहूम तस्लीमुद्दीन साहब ने रखी थी,आज उसकी चर्चा से उनका नाम तक ग़ायब कर दिया गया।
इन्तेखाब आलम ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस रेल परियोजना के लिए तस्लीमुद्दीन साहब ने वर्षों संघर्ष क्रांति मोर्चा के बैनर तले इस लड़ाई में वर्तमान सांसद भी मौजूद थे।
श्री आलम ने कहा कि सीमांचल की आवाज़ हमेशा क्रांति मोर्चा के बगैर तले वह तमाम साथी शामिल रहे जो किसी एक पार्टी के विशेष ना होकर क्षेत्र की विकास के लिए क्रांति मोर्चा में शामिल हुए थे उसमें भाजपा, कांग्रेस ,आरजेडी समाजवादी जनता पार्टी, समता कम्युनिस्ट और सीमांचल का एक बड़ा बुद्धिजीवी वर्ग जो हमेशा मरहूम तस्लीमुद्दीन के इर्द-ग्रह करके सलाह मशवरा करता रहा उनका भी योगदान भी सराहनीय है।
इंतखाब आलम ने जोर देकर कहा कि क्रांति मोर्चा एक ऐसा संगठन था जो सीमांचल के दावे कुछ लेने की आवास बनाकर हमेशा उभरती थी उसी क्रम में यह रेल परियोजना की भी लड़ाई लड़ी गई थी।
उन्होंने कहा कि तस्लीमुद्दीन साहब केवल एक व्यक्ति नहीं थे, बल्कि सीमांचल के लाखों ग़रीबों की उम्मीद का नाम थे। उन्होंने न केवल इस रेल लाइन की परिकल्पना की, बल्कि इसकी मंज़ूरी के लिए लगातार केंद्र सरकार से संवाद किया और दिल्ली स्थित बिहार निवास में रात-रात भर ड्राफ्ट की तैयारी होती रही।
इन्होंने कहा की फोर-लेन सड़क परियोजना को लेकर भी क्रांति मोर्चा का ही बैनर सबसे पहले आवाज़ बुलंद किया था।
आज जब इन परियोजनाओं के ट्रायल और उद्घाटन जैसे पल आए हैं, तो उनका नाम तक न लिया जाना दुर्भाग्य और राजनीतिक ओछापन है।
कांग्रेस नेता ने कहा कि राजनीति में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन जब बात किसी क्षेत्र के विकास और उसके असली सूत्रधार की हो, तो वहां राजनीतिक शिष्टाचार निभाना ज़रूरी होता है। सीमांचल की जनता भली-भांति जानती है कि इन विकास कार्यों की नींव किसने रखी, संसद में आवाज़ किसने उठाई और किसने इसे मंज़ूरी तक पहुंचाया।
इन्तेखाब आलम ने इस मौके पर यह भी मांग की कि सरकार और रेल विभाग अधिकारी को चाहिए कि तस्लीमुद्दीन साहब के योगदान को आधिकारिक रूप से स्वीकार करे और अररिया-गलगलिया रेलखंड या फोर-लेन सड़क परियोजना को उनके नाम से जोड़ा जाए। इससे सीमांचल की जनता को यह संदेश मिलेगा कि संघर्ष और योगदान को भुलाया नहीं जाता।
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