नई दिल्ली31जनवरी24*भाजपा के सदस्य ईवीएम बनाने वाली कम्पनी में शामिल! ईवीएम पर कतई भरोसा नहीं किया जा सकता! जनता को ईवीएम का बहिष्कार करना होगा!
29 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशान्त भूषण के ट्विट से यह ख़बर सामने आयी कि चार भाजपा के सदस्यों को भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) के बोर्ड में “स्वतंत्र” निदेशक के रूप में नामित किया गया है। चुनाव प्रक्रिया में हो रही यह धांधली अब तक कहीं कोई बड़ी ख़बर नहीं बनी है और गोदी मीडिया से तो ऐसी कोई उम्मीद भी नही की जा सकती कि वह इस ख़बर को दिखायेगी। बीईएल इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के लिए सॉफ्टवेयर विकसित करने के अत्यधिक संवेदनशील काम में लगी हुई कम्पनी है। इससे यह बात साफ़ तौर पर सामने आ चुकी है कि चुनाव में वोटिंग मशीन बनने में अब भाजपा सीधा हस्तक्षेप कर रही है। यानी भाजपा बीईएल के कामकाज की निगरानी करती है, जो सीपीएसई के निर्माण में निकटता से लगी हुई है और इसमें ईवीएम में लगने वाले “गुप्त” एन्क्रिप्टेड स्रोत कोड का विकास भी शामिल है जो ईवीएम के मूल को बनाने वाले चिप्स में अंतर्निहित है।
भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) भारत सरकार के स्वामित्व वाली एयरोस्पेस और रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स कम्पनी है। यह मुख़्य रूप से ज़मीनी और एरोस्पेस अनुप्रयोगों के लिए उन्नत इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद बनाती है। बीईएल भारत के रक्षा मंत्रालय के तहत सोलह सार्वजनिक उपक्रमों में से एक है। इसे भारत सरकार द्वारा नवरत्न का दर्जा दिया गया है। बीईएल के कुल सात स्वतंत्र निदेशकों में से चार- मनसुखभाई शामजीभाई खाचरिया, डॉ. शिवनाथ यादव, श्यामा सिंह और पीवी पार्थसारथी- भाजपा पार्टी से जुड़े हुए हैं। खाचरिया राजकोट जिले में भाजपा अध्यक्ष के पद पर हैं, जबकि शिवनाथ यादव उत्तर प्रदेश भाजपा के पूर्व उपाध्यक्ष थे। श्यामा सिंह बिहार में बीजेपी के उपाध्यक्ष के तौर पर काम कर चुके हैं और पीवी पार्थसारथी बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय सचिव हैं। पार्थसारथी ने आन्ध्र प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष के रूप में भी काम किया है और वह तिरूपति लोकसभा सीट के उपचुनाव के लिए विधानसभा प्रभारी थे। तो सवाल यह उठता है कि ये “स्वतंत्र” निदेशक “स्वतंत्र” कैसे हुए?
यह बात अब साफ़ हो चुकी है कि ईवीएम मशीनों पर कतई भरोसा नहीं किया जा सकता है। पिछले कुछ चुनावों के नतीजों ने इस बात को पुष्ट करने का काम ही किया है।आप ख़ुद सोचिए अगर भाजपा के लोग चुनाव की प्रक्रिया में शामिल होंगे तो चुनावों को निष्पक्ष कहा जा सकता है? सूत्र बताते हैं कि बीते पाँच राज्यों के चुनावों में भाजपा की जीत में ईवीएम की बड़ी भूमिका थी। मध्यप्रदेश में कांग्रेस को पोस्टल बैलट में भाजपा से ज़्यादा वोट मिले। पूरे मध्य प्रदेश में पोस्टल बैलट से एक रुझान सामने आये और ईवीएम से दूसरा रुझान सामने आये। अभी चण्डीगढ़ में हालिया मेयर चुनाव में भी यही घपला सामने आया है विपक्षी पार्टियों के वोट अधिक होने के बावजूद भाजपा का प्रत्याशी चुनाव जीता है क्योंकि चुनाव करवाने वाला प्रिज़ायडिंग ऑफिसर ख़ुद भाजपा का था! बीईएल में भाजपा के सदस्यों को निदेशक बनाना यह दर्शाता है कि भाजपा चुनाव जीतने के लिए अब चुनाव की पूरी प्रक्रिया पर कब्ज़ा करने में लगी हुई है।
दुनिया के तमाम उन्नत देश भी ईवीएम से वापस बैलट पेपर चुनावों पर जा चुके हैं। मोदी सरकार और उसके इशारों पर काम कर रहा चुनाव आयोग ईवीएम को हटाने की बात आते ही उछल-कूद मचाने लगता है और ईवीएम को चुनाव के लिए सबसे सही बताता है। बताते चले कि चुनावों के नतीज़ों को बदलने के लिए केवल 10 प्रतिशत ईवीएम को हैक करने की आवश्यकता है। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सबसे पहले ईवीएम पर सवाल भाजपा ने ही उठाया था। भाजपा जब सत्ता में नहीं थी तब इसके एक नेता ने इस बारे में पूरी किताब ही लिख दी थी कि ईवीएम के ज़रिये चुनाव में घपला कैसे-कैसे किया जा सकता है। इस किताब की भूमिका लालकृष्ण आडवाणी ने लिखी थी! आज वही भाजपा दावा करती है कि ईवीएम में कोई घपला नहीं हो सकता!
दुनिया के सभी उन्नत और तक़नीकी रूप से ज़्यादा आगे चल रहे देशों में ईवीएम मशीनों का नहीं बल्कि अभी भी बैलट पेपर का इस्तेमाल ही होता है, क्योंकि किसी भी इलेक्ट्रॉनिक यंत्र की विश्वसनीयता पर पूरा भरोसा नहीं किया जा सकता है। बैलट पेपर पर जाने के लिए जो ख़र्च है, वह सरकार निश्चित ही कर सकती है क्योंकि यहाँ प्रश्न चुनाव की प्रक्रिया की विश्वसनीयता का है। हमारे देश में स्पष्ट संकेत बार–बार मिल रहे हैं कि ईवीएम पर कतई भरोसा नहीं किया जा सकता है तो फिर भाजपा सरकार और चुनाव आयोग इस पर इस क़दर क्यों अड़े हैं? विभिन्न विपक्षी पार्टियाँ इस सवाल पर मज़बूती से स्टैण्ड लेने का दमखम और साहस नहीं रखतीं। ज़रा सोचिए क्या ऐसे में आम जनता के वोट डालने के अधिकार (जोकि पूंजीवाद के अंतर्गत बहुसंख्यक आम मेहनतकश आबादी के लिए एक औपचारिक बुर्जुआ जनवादी अधिकार है, लेकिन तब भी, यह अधिकार उसे देश का संविधान देता है और फासीवादी भाजपा अब इस औपचारिकता को भी ईवीएम में धांधली के ज़रिये ख़त्म करने पर आमादा है) का कोई औचित्य रह जायेगा, जब चुनाव की पूरी प्रक्रिया में ही धांधली होगी? इसलिए आज ज़रूरत है कि जनता को इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाकर एक जनान्दोलन खड़ा करना होगा और इस बात की गंभीरता को समझना होगा।
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी(RWPI )यह माँग करती है कि:
~ बीईएल से भाजपा से सम्बन्ध रखने वाले पदाधिकारियों को तत्काल निलम्बित किया जाये।
~ ईवीएम पर तत्काल प्रतिबन्ध लगाया जाये और बैलेट पेपर से चुनाव कराया जाये।
◼️Revolutionary workes’ party of India (RWPI)
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