नई दिल्ली27मार्च25*डॉनल्ड ट्रंप के प्रभाव से ही भारत और चीन के आपसी रिश्ते तेजी से सुधरने की ओर बढ़ गए हैं.*
*चीन को भारत के करीब ला रहा है अमेरिकी वर्चस्व: बात सुनने में अजीब लग सकती है, लेकिन अभी अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के प्रभाव से ही भारत और चीन के आपसी रिश्ते तेजी से सुधरने की ओर बढ़ गए हैं.*
*Dinesh Singh*
चर्चित अमेरिकी पॉडकास्टर लेक्स फ्रिडमैन के साथ भारतीय प्रधानमंत्री की लंबी बातचीत में चीन से रिश्तों के बारे में लिए गए उनके स्टैंड और फिर अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की प्रमुख -तुलसी गबार्ड- की भारत यात्रा के समय बने माहौल की चीनी मीडिया में बड़ी तारीफ दिखाई पड़ रही है.
चीन के विदेशमंत्री वांग यी ने ‘ड्रैगन-एलिफैंट डांस’ को दोनों देशों की 2 अरब 80 करोड़ से ज्यादा साझा आबादी के भविष्य के लिए ही नहीं, समूचे ग्लोबल साउथ और पूरी दुनिया के लिए भी सुखकर बताया है.
अभी छह महीने पहले तक भारत के बारे में चीनी नेताओं के इतने अच्छे बयानों की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.
इसे उलट कर देखें तो खुद भारत की तरफ से आधिकारिक स्तर पर चीन के लिए ऐसे सौहार्दपूर्ण बयान शायद थोड़ा और वक्त गुजर जाने के बाद ही देखे जा सकेंगे.
कड़वाहट की कई वजहों के बावजूद रिश्तों में दुतरफा तौर पर ऐसी मिठास की खास वजह यह है कि ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (MAGA)’ के आगे टिकने का यही अकेला रास्ता दोनों देशों को दिख रहा है.
अक्टूबर 2024 के आखिरी हफ्ते में रूस के कजान शहर में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान नरेंद्र मोदी और शी चिनफिंग की शिखर वार्ता रंग ला रही है. बहुत बुरी तरह अटके हुए कुछ मामले भी धीरे-धीरे करके सुलटते जा रहे हैं.
बीते दिसंबर में भारतीय सुरक्षा सलाहकार NIA अजित डोभाल और चीनी विदेशमंत्री वांग यी की पेइचिंग में हुई बातचीत में कैलाश मानसरोवर यात्रा और सीमा के आर-पार व्यापार की बहाली के साथ ही यह स्पष्ट हो गया था कि बात अब आगे बढ़ने लगी है. यूं कि दोनों देशों के आपसी रिश्ते पटरी पर लाने से पहले LAC पर दोनों फौजों की स्थिति को गलवान टकराव (15-16 जून 2020) से पहले की दशा में लाने की शर्त ढीली करने को भारत तैयार है.
बीते साढ़े चार वर्षों में भारत और चीन की एक लाख फौज पूर्वी लद्दाख में आमने-सामने लगी रही और माइनस 40 डिग्री तापमान में भी वहां का जमा हुआ माहौल छोड़कर फौजी कहीं दूर नहीं गए.
लेकिन इस अवधि में चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के अपनी तरफ वाले इलाके में काफी सारे फौजी और सिविल निर्माण किए और भारत ने भी सड़कें, पुल और एक-दो हवाई अड्डे बनाने का अपना काम जारी रखा.
गलवान की घटना से पहले के दौर की तुलना करें तो LAC पर दोनों देशों की तैयारी अभी काफी ज्यादा है और अचके में कोई बड़ा नुकसान करा बैठने का खतरा किसी को नहीं है. अलबत्ता बीच की ‘नो मैन्स लैंड’ अभी कितनी सुरक्षित है, इसपर चुप्पी है.
इस तरह का संतुलन भी दो देशों के बीच लंबे समय तक बना रह सकता है, सो इसे ‘जमा हुआ तनाव’ कहना जरूरी नहीं है. अलबत्ता, चाइना-पाक इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) जब भी भरपूर पैमाने पर अमल में उतर आएगा, तब उसका पाक-अधिकृत कश्मीर से गुजरना दोनों देशों के बीच फिर से तनाव भड़कने का कारण बनेगा
इस कॉरिडोर को तिब्बत से जोड़ने वाली सड़क अक्साई चिन से ही होकर गुजरती है और पेइचिंग-ल्हासा रेलवे लाइन को भी यहीं से गुजारते हुए पाकिस्तान में उतारने की योजना चीन ने 2017 से घोषित कर रखी है. अभी CPEC बलूचिस्तान में बुरी तरह फंसा हुआ है, लेकिन जब भी इस तरफ हरकत बढ़ेगी और पाकिस्तान को इसका रणनीतिक फायदा होता दिखेगा, पूर्वी लद्दाख में LAC पर दी गई मामूली छूटें भी भारत को बहुत परेशान करेंगी.
बहरहाल, वह दूर का मामला है और रणनीतिकार ऐसा कह सकते हैं कि द्वितीय विश्वयुद्ध में एक-दूसरे को लगभग तबाह कर चुके फ्रांस और जर्मनी जब एक-दूसरे के गहरे दोस्त बन सकते हैं तो कभी न कभी भारत, पाकिस्तान और चीन का त्रिकोण भी साथ मिलकर अपनी उलझनें सुलझाने की तरफ बढ़ सकता है.
पास का मामला यह है कि डॉनल्ड ट्रंप ने चीनी सामानों पर आयात कर 10 पर्सेंट से सीधा बढ़ाकर 20 पर्सेंट कर दिया है और आगामी 2 अप्रैल से भारत को लेकर अपनी कराधान नीति को वे ‘रेसिप्रोकल’ बनाने जा रहे हैं. रेसिप्रोकल, यानी जितना टैक्स हमारे सामानों पर आप लगाएंगे, उतना ही आपके सामानों पर हम भी लगाएंगे.
यह जबर्दस्ती है, क्योंकि अमेरिकी भारत से उगाही सामान बेचकर कम, अपने बैंकों, बीमा कंपनियों और अन्य पूंजी उपायों के जरिये कहीं ज्यादा करते हैं.
वैसे भी, किसी भी तरह की निर्भरता को साथ लेकर बराबरी का व्यापार संभव ही नहीं है.
पदभार ग्रहण करने के बाद ट्रंप ने भारत के सामने यह प्रस्ताव रखा था कि वह चाहे तो चीन से उसका मामला सुलझाने में वे कुछ मदद कर सकते हैं.
इस बारे में कुछ न बोलकर भारत ने बहुत अच्छा किया, क्योंकि हमारे जैसी क्षेत्रीय शक्ति के लिए एक बार अपनी गर्दन किसी के हाथ में दे देने का मतलब वैदेशिक मामलों में अपनी स्वाधीनता गिरवी रख देने जैसा ही होता.
2017 में भूटान की उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर बने डोकलाम तनाव से लेकर हाल-हाल तक पूर्वी लद्दाख में फौजों की तैनाती तक चीन यह समझ चुका है कि संसाधन और हौसला, दोनों ही दृष्टियों से भारत उसके बरक्स कमोबेश बराबरी की हालत में है.
सीमा पर यह सजगता हमारी राष्ट्रीय दिनचर्या का अंग होनी चाहिए. वहां से आगे, हर देश की तरह भारत का लक्ष्य भी अपने समाज को प्रगति की ऊंचाइयों पर ले जाना है.
यह तभी संभव है जब हमारी पूंजी लड़ाई के बजाय शिक्षा, स्वास्थ्य और विभिन्न विकास कार्यों में लगे.
चीन के साथ व्यापार घाटा हमारे लिए जरूर एक बड़ी समस्या है, लेकिन वहां से आए इंटरमीडियरी गुड्स का हमारे निर्यात में बहुत बड़ा योगदान भी है.
भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की ट्रंप-राज में कड़ी परीक्षा होनी है. ऐसे में चीन से बनाकर चलने की नीति बुरी नहीं रहेगी.
More Stories
कानपुर नगर8जुलाई25*कानपुर CMO सस्पेंशन मामले में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, 19 जून के निलंबन आदेश पर रोक.*
कानपुर नगर8जुलाई25*गरीब बेटियों की शादियों में अब और ज़्यादा खुशियाँ जोड़ रही सरकार*
दिल्ली8जुलाई25*विश्व युद्व करीब, दुनियां परमाणु तबाही के मुहाने पर खड़ी*..