नई दिल्ली27मई25*दुनिया के तमाम देशों में गर्वोन्नत नेहरूजी की प्रतिमाऐं आज भी विद्वता और स्वाभिमान की प्रतीक मानी जाती है.
औक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज जैसे विश्वविद्यालय जिसे अपना चांसलर बनाना चाहते थे, दुनिया के तमाम देशों में गर्वोन्नत जिसकी प्रतिमाऐं आज भी विद्वता और स्वाभिमान की प्रतीक मानी जाती है. जिसकी लिखी किताबें दुनिया के तमाम विश्वविद्यालयों में आज भी पढ़ी और पढाई जाती है.
आज उस अजीम देशभक्त की पुण्यतिथि है.
पंडित नेहरू ! वो लीडर !!
जिन्होंने भारत की आजादी के आन्दोलन में ही भाग नहीं लिया बल्कि अंग्रेजों के घर में घुस कर आयरलैंड के सिनफेन आंदोलन में भी हिस्सेदारी कर साम्राज्यवाद की नीव हिलाने का दुस्साहस किया.
नेहरू के निधन पर भारत के पहले भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवतर्ती सी0 राजगोपालाचारी ने कहा था कि दुनिया ने आज अपने दौर का सबसे सभ्य आदमी खो दिया.
अंग्रेजों से लुटापिटा देश जब नेहरू के हाथ आया तब इस देश में सुई भी नहीं बनती थी, आम आदमी की जेब में एकन्नी और दुवन्नी होना रईसी का रौब पैदा करता था, तब नेहरू ने अपनी 196 करोड़ की सम्पत्ति देश को दान कर दी.
WhatsApp पर बैठ कर नेहरू को मां बहन की बकने वाले अंधभक्तों! जब नेहरू ने अपनी निजी सम्पत्ति में से 196 करोड देश को दान किये थे, तब घी का कनस्तर 7 आने का आता था. कल्पना करो तो आज के दौर में कितने की सम्पत्ति है वो ? तुम नफरत के जमातियों की कल्पना से भी परे है वो जज्बा, वो देशप्रेम !!
नेहरू बैरिस्टर थे, खूब अमीर परिवार था उनका, ऐसा परिवार, जिन्हें खानदानी रईस कहा जाता है. (ये नंगे भिखमंगे गिरोह के लिये चिढ का सबसे बड़ा कारण रहा, और दूसरा कारण रहा उनका कश्मीरी ब्राह्मण होना) गांधी के असर में नेहरू फ्रीडम स्ट्रगल में शामिल हुए, 1922 में पहली बार जेल जाने और 1945 में आखिरी बार रिहा होने के बीच वो कुल 9 बार जेल गए, सबसे कम 12 दिनों के लिए, सबसे ज्यादा 1,041 दिनों तक, वो अंग्रेजों की जेल थी और उनकी सजा में सश्रम कारावास भी था.
नेहरू भारत के वास्तविक लीडर थे. इस देश को आजाद कराने में उन्होंने बहुत बड़ी भूमिका निभाई, केवल आजाद नहीं कराया, बल्कि आजादी के बाद के सबसे शुरुआती, सबसे कच्चे सालों में भारत का नेतृत्व भी किया. उनके योगदान को किसी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है.
नेहरू भगवान नहीं थे ना ही खुदा थे, एक इंसान थे बेहद संजीदा और कर्मशील इंसान. “वह शांति के साधक थे तो साथ ही क्रांति के अग्रदूत भी थे. वह अहिंसा के भी साधक थे, लेकिन हथियारों की वकालत की और देश की आजादी और प्रतिष्ठा की रक्षा की. वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के समर्थक थे, साथ ही आर्थिक समानता के पक्षधर थे. वह किसी से भी समझौता करने से नहीं डरते थे, लेकिन उन्होंने किसी के भय से समझौता नहीं किया. ” – — ये शब्द मेरे नहीं, वरन माफीवीर दल के अप्रतिम नेता अटल बिहारी बाजपेई के हैं जो उन्होने नेहरू के निधन पर संसद में कहें थे, राज्य सभा की कार्यवाही में आज भी अंकित है
भुवनेश्वर में हार्ट अटैक आने के बाद से नेहरू बेहद अस्वस्थ थे, 23 मई 1964 को वे स्वास्थ्य लाभ के लिये देहरादून आये , 27 मई से संसद का 7 दिवसीय विशेष सत्र बुलाया गया था, 26 मई 1964 को शाम 5 बजे नेहरू अपनी बेटी इंदिरा के साथ देहरादून से दिल्ली के लिये चले थे, पूरी रात दर्द से कटी और 27 मई को उनका देहान्त हो गया!
न्यूयार्क टाइम्स, गार्जियिन, आबजर्वर जैसे दुनिया के बड़े अखबारों ने नेहरू पर अतिरिक्त अंक निकाला, दुश्मन देश के डॉन जैसे अखबार ने लिखा– “दुनिया से एक खूबसूरत रोशनी खत्म हो गयी!”
27 मई को देश में शादियों का बहुत बड़ा साया था, शादियां तो हुई लेकिन न बैण्ड बजे ना बाजे. देश के बडे से लेकर छोटे छोटे शहरों में खाने के लाले पड गये, किसी ने चूल्हा तक न जलाया, किन्तु एक कौम थी देश में छिः छिः मै भी किनका जिक्र कर रहा ……..
महान वैज्ञानिक आइस्टीन ने बताया था कि “उन्होने अपने वैज्ञानिक गुरूओं की तस्वीर हटा कर, गांधी जी और अल्बर्ट श्वाइटजर की तस्वीर क्यों अपने कक्ष में लगाई. उन्हाने कहा कि “”जीवन के निचोड के रूप में यह पाया है कि हमें सफलता के बजाय सेवा की तस्वीर लगानी और देखनी चाहिए , मेरा दुर्भाग्य है कि मैने गांधी को तस्वीर में ही देखा किन्तु नेहरू के साथ बैठ कर मैने गांधी और अल्बर्ट श्वाइटजर दोनों को एकसाथ साक्षात देखा, समझा और महसूस किया है, ये मेरा सौभाग्य है!
चाचा नेहरू आप दिलों में आज भी जिन्दा हैं !
नमन श्रद्धांजलि !!!
चित्र: – अपनी बहन, बेटी और आंइस्टीन के साथ नेहरू जी ।👇
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