October 20, 2025

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दिल्ली20जुलाई25*छात्र-युवाओं को दमन के ज़रिए कदापि खामोश नहीं किया जा सकता !

दिल्ली20जुलाई25*छात्र-युवाओं को दमन के ज़रिए कदापि खामोश नहीं किया जा सकता !

नई दिल्ली20जुलाई25*छात्र-युवाओं को दमन के ज़रिए कदापि खामोश नहीं किया जा सकता !

नागरिक और जनवादी अधिकार फोरम (CDRF) का वक्तव्य

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पुलिस ने एक बार फिर सभी कानूनों और संवैधानिक प्रावधानों को दरकिनार कर छात्रों-युवाओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, सत्ता-विरोधी युवा पत्रकारों पर दमन का सिलसिला शुरू कर दिया है। अवैधानिक तरीके से पकड़-उठा कर, अवैध हिरासत के दौरान शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न कर आतंकित करने की दमनकारी शैली अपनाई जा रही है। नागरिक एवं जनवादी अधिकार मंच (सीडीआरएफ) इसकी कड़ी निंदा करता है और उन छात्र-युवा साथियों को सलाम करता है जो इस फासिस्ट सत्ता के दमन को चुनौती दे रहे हैं।

पिछले कुछ वर्षों से, दिल्ली में आरएसएस/भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार लगातार छात्रों का दमन कर रही है, लोकतांत्रिक प्रतिरोध के अधिकार को कुचला जा रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू, जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, अंबेडकर विश्वविद्यालय छात्र आंदोलन और सरकारी दमन का केंद्र बन गए हैं। सरकार द्वारा मनोनीत विश्वविद्यालयों के कुलपति दमनकारी अफसर में बदल गये हैं, विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक माहौल, स्वतंत्र चिंतन, विचार-विमर्श आदि की हर संभावना को कुचला जा रहा है। विद्यार्थी यूनियनों के साथ-साथ, छात्र संगठन “भगत सिंह छात्र एकता मंच”, “दिशा”,”एसएफआई”, “नज़रिया” पत्रिका और फ़ोरम अगेंस्ट कॉरपोरेट करण और सैन्यीकरण(FACAM) से जुड़े छात्र युवाओं को ख़ास तौर पर निशाना बनाया जा रहा है।

9 जुलाई, 2025 को दिल्ली पुलिस ने “भगत सिंह छात्र एकता मंच” से जुड़ी सक्रिय छात्रा गुरकीरत और उनके साथी गौरव और गौरांग को बिना वारंट या नोटिस के अवैध रूप से गिरफ्तार किया। उन्हें न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी पुलिस स्टेशन में अवैध हिरासत में रखा गया। परिवार और कानूनी परामर्श के अधिकार से वंचित रखा गया। इसके बाद, “फोरम अगेंस्ट कॉर्पोरेट करण और सैन्यीकरण (FACAM) से जुड़े शोधार्थी एत्तमाम-उल-हक़ और मेधावी छात्रा बादल को उनके आवास से अवैध रूप से गिरफ्तार किया। मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कार्यकर्ता सम्राट सिंह को भी दिल्ली पुलिस ने हरियाणा स्थित उनके आवास यमुनानगर से उठा लिया। क्रांतिकारी पत्रिका “नजरिया” की संपादिका वल्लिका को गिरफ्तार किया। अब तक इन सभी को रिहा कर दिया गया है, दिल्ली के जाकिर हुसैन कॉलेज में दर्शनशास्त्र के विद्यार्थी रुद्र, को, जो “नजरिया” पत्रिका से भी संबंधित है, दिल्ली रेल स्टेशन से पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने की अपुष्ट सूचना है। पुलिस ने अवैध हिरासत के दौरान गिरफ्तार छात्र-युवाओं को अत्यधिक शारीरिक और मानसिक यातना दी गई है, उनके सिर पकड़कर कमोड में दबाया गया, यहां तक कि छात्राओं के साथ दुर्व्यवहार और यौन उत्पीड़न भी किया गया। मीडिया ने भी इस अत्याचार की रिपोर्टिंग में कोताही बरती है।

दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है, पुलिस विभाग केंद्रीय गृह मंत्री के अधीन है, स्पष्ट है कि यह सब केंद्र सरकार और गृह मंत्री अमित शाह के आदेशानुसार किया जा रहा है। देश की राजधानी में भी, सामाजिक रूप से जागरूक छात्रों, युवाओं, लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जा रहा है, उन्हें डराने-धमकाने और परेशान करने के लिए इस तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।

आरएसएस/भाजपा का फासीवादी इरादा एक “आज्ञाकारी समाज” बनाने का है। जहां शासन या नीति-निर्माण में जनता की भागीदारी की कोई गुंजाइश नहीं है। इस “आज्ञाकारी समाज” में आंदोलन या जनसंघर्ष अपराध है। ऐसे लोगों को “आंदोलन जीवी” कहकर नकारा जा रहा है। “संवैधानिक लोकतंत्र” (Constitutional Democracy) की वकालत करने वालों को यह समझना चाहिए कि नागरिक नाफरमानी, धरना-सत्याग्रह, अथवा समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया द्वारा जुझारू प्रतिरोध की नीति- “ज़िंदा कौम पांच साल तक इंतज़ार नहीं करती”, “संसद से सड़क तक, धरना-प्रदर्शन आदि “आज्ञाकारी समाज” या वोट पर आधारित चुनावी राजनीति (बहुसंख्यकवाद) के अनुरूप नहीं हैं।

भारतीय संविधान में तथाकथित “मौलिक अधिकारों” के हनन के लिए अनेक प्रावधान है। यह कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के “शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत” पर आधारित नहीं है। यदि शासक वर्ग में अंतर्विरोध तीखे हों और केंद्र सरकार कमजोर हो, तो न्यायपालिका, चुनाव आयोग या मीडिया जैसी संस्थाओं की स्वतंत्रता कुछ हद तक नजर आ सकती है। शक्तिशाली सरकार के मामले में इस स्वतंत्रता को अक्सर विलुप्त होते देखा गया है। अतीत में भी और वर्तमान में आरएसएस/भाजपा सरकार के कार्यकाल में इसे स्पष्ट देखा जा रहा है।

दरअसल, भारतीय संविधान में न्यायपालिका को नियंत्रित करने के कई तरीके हैं। यह पूंजीवादी लोकतंत्र केवल एक चुनावी प्रणाली (वोटतंत्र) है। इसके तहत नागरिक मतदान करते हैं और प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं। शासन करने और नीतियां बनाने के सभी अधिकार इन तथाकथित “जनप्रतिनिधियों” तक सीमित है। चुनाव धनबल, बाहुबल या जाति-धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण के जरिए जीता जा सकता है। “संवैधानिक लोकतंत्र” संसदीय लोकतंत्र बहुसंख्यकवाद का दूसरा नाम है। नागरिक स्वतंत्रता का अर्थ केवल मतदान का अवसर है। शांति भंग की आशंका के नाम पर कार्यपालक मजिस्ट्रेट के आदेश पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को आसानी से बाधित किया जा सकता है।

अब तो, चुनाव में मतदान के लिए नागरिकता का सबूत देना नागरिक के जिम्मे किया जा रहा है। दस्तावेज पूरे नहीं हैं, तो सरकार नागरिकता समाप्त कर देगी। मतदान का भी अधिकार न होगा। बिहार विधानसभा चुनाव में यह एक ज्वलंत मुद्दा है। पहले भी, भाजपा सरकार में उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी यह प्रस्ताव रखते रहे थे कि मतदान न करने वालों की नागरिकता रद्द कर दी जानी चाहिए। मोदी सरकार ने भी लोगों की नागरिकता और मतदान का अधिकार छीनने के उद्देश्य से नागरिकता (संशोधन) अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (सीएए और एनआरसी) पारित किया है।

प्रस्तुत मामले में, दिल्ली में छात्र-युवाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर हुए क्रूर दमन के खिलाफ न्यायपालिका में गुहार बेशक दुरुस्त है। सवाल यह है कि जब न्यायपालिका मणिपुर में जारी हिंसा रोकने के लिए सरकार को विवश करने और जनता के मौलिक अधिकारों की हिफाजत में लगातार हो असहाय साबित हो रही है, अयोध्या के बाबरी मस्जिद मामले में सर्वोच्च न्यायालय के अत्यंत बेतुके फैसले के बाद, जो कानून पर आधारित नहीं बल्कि न्यायाधीश की तथाकथित अंतरात्मा की आवाज़ पर आधारित था, संसद द्वारा पारित “पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991” के अनुसार 1947 के बाद पूजा स्थल वैसे ही रहेंगे यह प्रावधान है। इसके बावजूद बनारस, मथुरा, संभल आदि में सर्वे के नाम पर सांप्रदायिक विवादों को उभारने में न्यायपालिका की भूमिका स्पष्ट है। बस्तर में ऑपरेशन ग्रीन हंट, सूरजकुंड योजना, ऑपरेशन कगार के माध्यम से सैन्य दमन, हवाई बमबारी, मुठभेड़ों के नाम पर न्यायेतर हत्याएं, देश में अघोषित आपातकाल की स्थिति है। कठिन संघर्षों से प्राप्त श्रमिक वर्ग के अधिकार चार श्रम कानूनों के नाम पर छीने जा रहे हैं, किसान आत्महत्या करने तक के लिए विवश हो रहे हैं, जनता भली-भांति जानती है कि न्यायपालिका लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करने में कितनी सक्षम है!

दिल्ली में ही नहीं, बनारस, इलाहाबाद और पूर्वी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब में भी भीमा कोरेगांव मामले की तर्ज पर “लखनऊ षड्यंत्र” के नाम पर एनआईए द्वारा गिरफ्तारियां और छात्रों व कार्यकर्ताओं का लगातार उत्पीड़न जारी है। सरकार का उद्देश्य छात्र-युवाओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति/जनजाति, मजदूर वर्ग, किसानों और व्यापक मेहनतकश जनता के प्रतिरोध को दबाना है।

शासक वर्ग की नज़र में, दिल्ली के छात्र-युवाओं का मुख्य अपराध यह है कि वे पाठ्यक्रम से हटकर देश की समस्याओं के बारे में सोचने का दुस्साहस कर रहे हैं। शासन-प्रशासन, नीति-निर्माण केवल विधानमंडल (संसद) में चुने गए तथाकथित जनप्रतिनिधियों तक ही सीमित है। छात्र-युवाओं का काम परीक्षा पास करक करियर बनाना है। नीतियां, शासन-प्रशासन या राजनीति विद्यार्थी करने लगेंगे तो नेतागण क्या करेंगे? एक “आज्ञाकारी समाज” के लिए “आज्ञाकारी” छात्र-युवाओं की जरूरत है। स्कूलों-कॉलेज, विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम रटने वाले छात्रों की ज़रूरत है, विचारशील, सामाजिक रूप से जागरूक और सरकारी नीतियों के बारे में सोच-विचार करने वाले छात्र बगावत को आमंत्रित करते हैं।

नागरिक एवं जनवादी अधिकार मंच (सीडीआरएफ) दिल्ली में छात्र-युवाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर सरकार के इस जघन्य दमन का प्रबल विरोध करता है।

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नागरिक एवं जनवादी अधिकार मंच (सीडीआरएफ) संयोजक कमल सिंह मो. 9602223145 द्वारा दिनांक 20 जुलाई को जारी।

(The following joint statement was released yesterday, i.e., 19-07-2025, by students from New Delhi. Please share it as widely as possible on social media)

*Joint Statement by Student Organisations of JNU : Condemn the Delhi Police’s Illegal Abductions and Custodial Torture of Activists*

The national capital is witnessing an alarming breakdown of constitutional order. The illegal abduction and custodial torture of student activists and democratic voices by the Delhi Police marks a dangerous new low in state repression. These actions are not only a gross violation of civil liberties and fundamental rights they are a national disgrace. We, the undersigned student organisations, condemn this brutality in the strongest terms and demand urgent accountability and prosecution of those responsible.

Between July 9 and 12, several individuals who have consistently spoken out against the Manuvadi, communal, and pro-corporate policies of the RSS-BJP regime were illegally detained by the Delhi Police. Those targeted include democratic rights activists Ehtmam and Baadal (Forum Against Corporatisation and Militarisation), students Gurkirat, Gaurav, and Gauraang (Bhagat Singh Chhatra Ekta Manch), Valarika (Nazariya magazine), and social worker Samrat Singh. They were held at New Friends Colony Police Station without arrest warrants, denied access to legal aid or family, and never produced before a magistrate a clear violation of all due process norms.

While in custody, they were subjected to brutal and inhuman torture. Reports detail that detainees were stripped naked, electrocuted, beaten, and degraded. Their heads were forced into toilet bowls, and women activists were threatened with sexual violence, including horrifying threats of rape with rods. We have also received disturbing news that Rudra, a philosophy student at Zakir Husain College (Delhi University), has been missing since the morning of July 19. We fear he has been similarly abducted by the Delhi Police Special Cell, continuing the wave of illegal detentions targeting student activists in Delhi.

This is not an isolated incident but part of a broader pattern of state repression. By branding those who speak against government as Urban Naxals, this regime has intensified its crackdown on all forms of democratic dissent. We have seen in recent years how this BJP-RSS controlled regime has tried to suppress voices from Jamia Millia Islamia to JNU by use of brute force. The arrest without trial of students, journalists, union members, and lawyers, this government is determined to silence every voice of resistance. Delhi Police directly under the control of Home Minister Amit Shah has a long history of targeting student movements. But the scale and brazenness of recent acts of violence mark a terrifying escalation.

We, the undersigned student organisations of JNU, affirm our unwavering solidarity with the abducted and tortured activists. We demand:

* An immediate, high-level independent judicial inquiry into the illegal abductions and custodial torture.
* Criminal prosecution of Delhi Police officials responsible for these acts.
* An end to the use of state machinery to silence democratic dissent.

We also appeal to all civil society organisations, democratic collectives, and progressive individuals to rise in solidarity. Let us join forces to resist this repressive machinery that sees students raising their voices as enemies of the state.

This is not just about individual arrests. This is about defending the right to dissent, the right to organise, and the right to imagine a just future.

*AISF – BAPSA – Collective – CRJD – NSUI – PDSU – PSA*

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