December 3, 2025

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दिल्ली03सितम्बर 25 विश्वविद्यालय का पतन: आरएसएस की 'निगरानी' ! लेकिन क्या कीमत चुकानी पड़ेगी?

दिल्ली03सितम्बर 25 विश्वविद्यालय का पतन: आरएसएस की ‘निगरानी’ ! लेकिन क्या कीमत चुकानी पड़ेगी?

दिल्ली03सितम्बर 25 विश्वविद्यालय का पतन: आरएसएस की ‘निगरानी’ !
लेकिन क्या कीमत चुकानी पड़ेगी?

आरएसएस को धन्यवाद, जिसकी कड़ी निगरानी में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) की सभी नियुक्तियां हो रही हैं। उम्मीदवार संघ के मापदंडों पर फिट हैं, भले ही फैकल्टी के रूप में पूरी तरह अयोग्य साबित हो रहे हों। परिणाम? खाली पड़ी हजारों सीटें, गलत विषयों के विशेषज्ञ शिक्षक, और एक ऐसा ब्लोटेड सिलेबस जो छात्रों को डुबो रहा है।

क्या डीयू अब वाकई ‘इन डिमांड’ नहीं रहा?

हालिया रिपोर्ट्स से साफ है कि डीयू का गौरवमय दौर खत्म हो चुका है। पहले जहां एडमिशन में 30% ओवर-सब्सक्रिप्शन होता था, अब सेमेस्टर के आधे होने पर भी ‘मॉप-अप राउंड्स’ चला रहे हैं।

हिंदी प्रोफेसर राजीव कुंवर जैसे शिक्षक बता रहे हैं कि क्लासरूम में 40 छात्रों की बजाय सिर्फ 4 आते हैं – बाकी ‘गायब’ हो चुके हैं ! महिला नामांकन 2021 के 61% से गिरकर 54% पर सिमट गया, खासकर परिधीय कॉलेजों में। छात्र CUET की जटिलताओं, कोचिंग की महंगाई और देरी से तंग आकर प्राइवेट यूनिवर्सिटीज (जैसे शिव नादर, अशोका) की ओर रुख कर रहे हैं, जहां अनुशासन और बेहतर एक्सपोजर मिलता है। एक बीएससी छात्र ने कहा, “डीयू में क्लास कैंसलेशन और राजनीति से तंग आकर गुरुग्राम के SGT यूनिवर्सिटी चला गया।”

फैकल्टी भर्ती का हाल तो और भी खराब है। UGC के नए SOP के तहत वीसी द्वारा नियुक्त बाहरी सदस्यों की मौजूदगी से कॉलेजों की स्वायत्तता खतरे में है। हिंदू कॉलेज के शिक्षक चेतावनी दे रहे हैं: “अगर आप वर्तमान सत्ता से जुड़े हैं, तो डीयू में पढ़ाने का टिकट मिल जाता है।”

योग्यता की जगह विचारधारा हावी – गैर-डोमेन एक्सपर्ट कोर्स पढ़ा रहे हैं, जैसे ज्यूरिस्प्रूडेंस में “AIDS असली बीमारी नहीं” जैसी बकवास। RSS-संबद्ध प्रोफेसर भी मानते हैं, “हमारे पास अब अयोग्य शिक्षकों का ढेर लग गया है।” 2022-23 की भर्ती में लंबे समय से अस्थायी शिक्षकों को हटाया गया, जिससे असुरक्षा बढ़ी और हाल ही में सितंबर 2025 में RSS-समर्थित NDTF ने DUTA चुनाव भी जीत लिया, तीसरी बार लगातार – यह ‘भगवाकरण ‘ का साफ संकेत है।

NEP 2020 के तहत FYUP ने सिलेबस को ‘मल्टीडिसिप्लिनरी’ बनाने के नाम पर बर्बाद कर दिया। ऑनर्स कोर्स के कोर सब्जेक्ट्स (जैसे इकोनॉमिक्स में इन्फ्लेशन) हटा दिए गए, जबकि अनावश्यक AEC, SEC, VAC कोर्स थोपे गए – जैसे ‘डिजिटल एम्पावरमेंट’ में Gmail साफ करना या ‘स्वच्छ भारत’ में झाड़ू बांटना बिना पॉलिसी डिस्कशन के। छात्रों का बोझ 5-8 घंटे क्लास रोज, लेकिन गहराई शून्य। इकोनॉमिक्स स्टूडेंट कृष ने शिकायत की, “कोर सब्जेक्ट्स को बाएं-दाएं काटा जा रहा है।” गणित के 52 फैकल्टी ने विरोध किया, लेकिन व्याख्यान 5 से घटकर 3 रह गए। आलोचना के बिना अर्थशास्त्र पढ़ाना, हिंदी साहित्य में गहराई न देना – सब कुछ सेंसर हो रहा, जैसे इजरायल-फिलिस्तीन या कश्मीर पर क्लास। केवल 30% छात्र चौथे साल तक पहुंचे!

क्या यह आरएसएस की ‘रिक्लेमिंग’ का हिस्सा है, जहां लेफ्ट बस्तियन को राइट-विंग में बदलने के चक्कर में क्वालिटी कुर्बान हो रही है ?

गाय-कुंभ जैसे इवेंट्स पर फोकस, लेकिन लैंड राइट्स या ब्राह्मण वेलफेयर पर सेंसरशिप? क्या यह दलित-आदिवासी छात्रों को और अलग-थलग करेगा, जहां CUET जैसी बैरियर्स पहले ही गरीबों को बाहर कर रही हैं? डीयू का भविष्य क्या – एक विचारधारा का प्रचार केंद्र या शिक्षा का मंदिर?

समय है जागने का। छात्र, शिक्षक, अभिभावक – NEP की समीक्षा, पारदर्शी भर्ती और सिलेबस सुधार की मांग करें। डीयू को बचाना है, तो आवाज उठाएं!

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