झाँसी21अगस्त*दलहनी फसलों को मोजिक पीला सफेद मक्खी से बचाय किसान कृषि विज्ञानिक अरुण बौद्ध।
झांसी। 20 अगस्त। इस वर्ष खरीफ फसलों के अनुसार मौसमी बारिश नही होने से सबसे अधिक सफेद मक्खी कीट का प्रकोप दलहनी फसलों में लगने से सर्वाधिक नुकसान किसानों को पहुंचा रहा है। जिसका उपाय व उपचार ग्राम पठा निवासी कृषि क्षेत्र में शोध कर रहे छात्र अरुण बौद्ध ने अपने ग्राम पठा मऊरानीपुर झांसी में आकर किसानों से अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि सफेद मक्खी मुख्य रूप से उस्धनकतिवंदीय एवं गर्म समशितोषण क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। जिससे इस वर्ष बरसाती खरीफ फसलों के अनुसार मौसमी बारिश बहुत कम होने से इसका प्रकोप मुख्यतः अगस्त, सितंबर,अक्टूबर माहों के बीच उर्द, मूंग, अरहर की फसलों में सर्वाधिक पाया जाता है। सफेद मक्खी के निम्फव्यस्क न केवल पौधों की पत्तियों का रस चूसते है। बल्कि पीला मोजैक विषाणु जनित रोग को भी तेजी से फैलाने का काम करते है। जिससे पत्तियों का रस चूसने की वजह से पौधों की पत्तियों कमजोर होकर सिकुड़ जाती है जिस कारण से पौधों की वृद्धि रुक जाती है और उत्पादन नाम मात्र का होता है जिससे किसानों को 15 से 75 फीसदी तक की आर्थिक क्षति पहुंची है। चंद्रशेखर कृषि आजाद शोध केंद्र कानपुर में अध्ययन शोध छात्र अरुण कुमार ने किसानों को कीट संबंधी सफेद मक्खी पीला मोजैक रोग के वाहक की पहचान के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि सफेद रंग की मक्खी आकार में छोटी एवं त्रिकोणीय होती है। जो पौधों की पत्तियों के निचले हिस्सों में समूह के रूप में बैठ जाती है इसके पंख सफेद रंग के होते है और जब किसान फसल के अंदर जाते है तो यहीं मक्खी खेतों में सफेद धूल की तरह उड़ती दिखाई देती है यह वाहक कीट प्रायः दिन के समय में सक्रिय रहते है। उन्होंने कहा कि जब फसल 35 से 45 दिन के बीच की हो जाए तो उनका उपाचार अजेड़ीरैक्टिन 17.8 एसएल की 0.3 ग्राम मात्रा को प्रिटिलिटर पानी में घोलकर छिड़काव करके किया जा सकता है जिससे बढ़ रहे कीटों की वृद्धि रुक सकती है। इस तरह अपने प्रकार के अन्न उपाय भी है जो किसान आसानी सुविधानुसार आसानी से अपना सकते है।
संवाददाता। सुरेन्द्र द्विवेदी यूपी आजतक।
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